हुजूर! हमारे भी रोजी रोटी का ध्यान कर लीजिए

हुजूर! हमारे भी रोजी रोटी का ध्यान कर लीजिए

अखिल भारतीय ई रिक्शा चालक यूनियन ने 9 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा

वाराणसी (रणभेरी सं.)। यातायात विभाग के द्वारा ई रिक्शा चालकों का मार्ग रोकने या क्षेत्र निर्धारित करने का प्रस्ताव ई रिक्शा चालकों के लिए रोजगार एवं कमाई को खत्म करने वाला साबित होगा। ई रिक्शा चालक पहले ही कमाई कम होने की वजह से अपने ई रिक्शा के बैंक की किस्त जमा कर पाने में असमर्थ है। बढ़ती महंगाई मे घर का खर्च नहीं उठा पा रहा। यदि उसका रुट और एरिया छोटा कर दिया गया तो ऐसी स्थिति में उसकी स्थिति और दयनीय हो जाएगी। इसके साथ ही ई रिक्शा से संबंधित जरूरी कई मांगो को लेकर अखिल भारतीय ई रिक्शा चालक यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण काशी ने 9 सूत्रीय मांग पत्र बनारस के जिलाधिकारी को सौंपी जिसमें यातायात द्वारा रोजगार विरोधी प्रस्तावित एरिया जोन-मार्ग की वापसी, इलेक्ट्रॉनिक बसों को गांव को जोडने एवं नगर के सिर्फ चौड़ी सड़कों पर चलाया जाए, ई-रिक्शा चालकों के लिए अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रम, बैटरी पर 50 फीसद की सब्सिडी, बैटरी को 28 फीसद जी.एस.टी के स्थान पर 5 फीसद वाले स्लैब, मुद्रा लोन को आसान बनाना, बीमा और फिटनेस की दरों में कमी करने, स्टैंड, पार्किंग और चार्जिंग के साथ पुलिस और नगर निगम के उत्पीड़न को रोकना शामिल है।

ई रिक्शा की लांचिंग देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2016 मे बनारस को रोजगार युक्त और प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए शुरू की गई थी। परिणाम स्वरूप आज 25 हजार के करीब ई रिक्शा चला कर लोग अपने घर का भरणपोषण कर रहे। यातायात अधिकारियों के द्वारा बिना किसी शोध के कोई नये नियम का निर्माण प्रधानमंत्री जी के द्वारा शुरू किए गए आत्मनिर्भर मिशन को फेल कर देगा। सरकारी नौकरी की कमी और प्राइवेट नौकरी मे वेतन की कमी अधिकांश लोगों को ई रिक्शा की तरफ आकर्षित कर रही। 

जाम देश के सभी महानगरों मे एक सामान्य बात है। दिल्ली, बम्बई, बैंगलोर और चेन्नई हर शहर में जाम लगते हैं, वहां जाम का कारण ई-रिक्शा नहीं बल्कि लग्जरी कारें हैं । बनारस में जाम के कई सारे कारण हैं जिसमें सबसे प्रमुख कारण बेरोजगारी है जिसकी वजह से 90 फीसद लोगों ने 75 फीसद ई रिक्शा लोन पर लेकर अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे। इसके अलावा ई रिक्शा चालकों मे परिचालन प्रशिक्षण का अभाव है जिसकी वजह से चालक यातायात नियमों का बखूबी से पालन नहीं कर पाते। इसके लिए यातायात विभाग की तरफ से कोई विशेष योजना और कार्यक्रम नहीं है।

कागजों पर पार्किंग स्टैंड 

नगर निगम की जिम्मेदारी स्टैंड और पार्किंग देने की है लेकिन सभी पार्किंग और स्टैंड सिर्फ कागज पर हैं जबकि ई रिक्शा चालकों से स्टैंड और पार्किंग के नाम पर करोड़ों रुपए का राजस्व प्रतिवर्ष वसूला जा रहा है। जाम के समाधान के लिए अखिल भारतीय ई रिक्शा चालक यूनियन अपना समाधान माडल प्रशासन से साझा करना चाहता है लेकिन प्रशासन ने अभी तक यूनियन की नहीं सुनी। यूनियन का कहना है कि यदि ई रिक्शा को रोक देंगे तो भी जाम समाप्त नहीं होगा क्योंकि इसके पीछे बडा कारण बनारस की सडकें हैं जो बहुत कम चौडी हैं। बनारस गलियों का शहर है। यदि ई रिक्शा को मुख्य सडक से हटाया गया तो गलियों में रहने वाले लोगों का जीवन जाम से दूभर हो जाएगा। ज्यादातर बाजार, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षण संस्थान और होटल काशी जोन मे है। तीर्थ यात्री और पर्यटकों का केंद्रीय स्थल सभी मंदिर एवं घाट भी वहीं है इसकी वजह से वहां जाम लगना स्वाभाविक है। यदि बाजार, होटल, स्वास्थ्य और शिक्षण संस्थानों का निर्माण चंडीगढ़ की तरह योजनाबद्ध तरीके से नहीं हुआ तो स्थिति और भयावह होगी।

बर्बादी के मुहाने पर आ जायेंगे ई-रिक्शा चालक 

ई रिक्शा रोजगार का एक ऐसा माध्यम है जिसमें बहुत लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है। यदि इसको समर्थन और सहयोग के स्थान पर कोई नकारात्मक कदम उठाया गया तो इनकी हालत महाराष्ट्र के किसानों की तरह हो जाएगी जहां बहुत बडी संख्या में कर्ज लिए हुए लोगों ने आत्महत्या की। इनकी बैंक की सिबिल खराब हो जाएगी। लोन नहीं भरने एवं परिवार के भरणपोषण का दबाव इन लोगों को अपराध, नशा और आत्महत्या करने के लिए विवश करेगा। इन चालकों को होमगार्ड, पुलिस और नगर निगम सभी से उत्पीड़न के अलावा कुछ नहीं मिलता

ई-रिक्शा चालक ने की थी आत्महत्या 

ई रिक्शा चालकों की कमाई और लागत के बारे में कोई ठोस रिसर्च किये बिना प्रशासन का यह कदम आत्मघाती और एक रोजगार विरोधी साबित होगा। ई रिक्शा चालक हर रोज 300 रुपए बैंक किश्त, 100 रुपए बैटरी चार्जिंग पर खर्च करते हैं, उसके बाद गाडी के कागज, रखरखाव और दैनिक रखरखाव पर 100 रुपए यानी ई रिक्शा चालक की हर रोज की लागत 500 रुपए है। यदि 12 घंटे की मेहनत के बाद वह 900 रुपए कमाता है तब वह लागत निकालने पर सिर्फ 400 रुपए अपने परिवार के लिए  पाता है। पर सच्चाई यह है कि रिक्शा चालक 900 रुपए रोज नहीं कमा पाता है और लागत निकलने के बाद कई बार सिर्फ 100 य 200 रुपए ही बचा पाता है। हरहुआ के एक ई-रिक्शा चालक श्रीनाथ प्रजापति ने आत्महत्या कर ली थी। 

जिलाधिकारी के पास लेकर पहुंचे फरियाद 

फरियाद रैली को रोकने और कार्यालय को बंद करने के लिए आदमपुर थानाध्यक्ष ने देर रात तक कोशिश की। यूनियन से बिना सिर पैर के सवाल और परेशान करने की कोशिश, चालकों को डराने की कोशिश आदमपुर थाने के द्वारा की गई। आज जिलाधिकारी तक 9 सूत्री मांगो को रखने जिलाध्यक्ष बबलू अग्रहरि, शशिकांत, रोमी पाठक, पप्पू यादव, जे पी, अमित, विश्नू, गौतम सैनी, त्रिलोकी विश्वकर्मा, सूनिता पांडे सहित सभी पदाधिकारी एवं सैकड़ों की तादाद में ई रिक्शा चालक जिलाधिकारी के समक्ष अपनी फरियाद ले कर 
पहुंचे।