काव्य-रचना

काव्य-रचना

    लम्हें याद आ गये     

पीछे मुड़कर देखा तो कुछ लम्हे याद आ गए
कुछ दोस्त और कुछ रिश्तेदार याद आ गए

वो स्कूल और कालेज याद आ गये 
वो बचपन के कुछ दोस्त यार याद आ गए

करते थे बचपन में वह बहुत मौज मस्ती
अब वह घर के जिम्मेदार हो गये

घर की कुछ पुरानी तस्वीरों  को देखा 
तो कुछ पुराने ख्याल याद आ गये

जाने क्यों सब मे इतना बदलाव आ गये
जो अपने थे वह आज अनजान हो गये

हर रिश्ते मे बस यही सवाल आ गये 
पीछे  मुड़कर देखा तो कुछ लम्हें याद आ गये

भाई भाई के रिश्तो मे अब तकरार हो गये
मतलब के कुछ दोस्त यार हो गये

जाने क्यों इंसानो मे यह बदलाव आ गये
पीछे मुड़कर देखा तो कुछ लम्हें याद आ गये

महेश कुमार प्रजापति