दालमंडी की संकरी गलियों से उठती आह...

दालमंडी की संकरी गलियों से उठती आह...

वाराणसी (रणभेरी सं.)। उत्तर प्रदेश के बनारस की दालमंडी, जो अपनी सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक धरोहर के लिए जानी जाती है, आज एक ऐसी स्थिति का सामना कर रही है जो न केवल इसकी भौगोलिक संरचना को बदलने जा रही है, बल्कि हजारों परिवारों की जिंदगी को भी प्रभावित करेगी। दालमंडी, जो पूर्वांचल का सिंगापुर कहलाता था, आज उजड़ने के कगार पर है। इस बाजार में मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय के लोग हर रोज करोड़ों का कारोबार करते हैं।

करीब 10 हजार से अधिक दुकानों वाली दालमंडी गली, जहां हर समय व्यापार की चहल-पहल रहती है, अब बुलडोजर की धमकी के साए में है। काशी विश्वनाथ धाम को जोड़ने के नाम पर इस गली को सड़क बनाने की योजना है।
करीब 8 फीट की गलियों को 23 फीट का आकार दिया जाना है। नौ सौ मीटर लंबी सड़क हजारों व्यापारियों के लिए रोजी-रोटी का जरिया है, लेकिन सरकार की नई योजना अब उनके जीवन का सबसे बड़ा संकट बनकर आई है।

जीलट वाच, जो 129 साल पुरानी घड़ियों की दुकान है। यह ऐसी दुकान है जो समूचे पूर्वांचल और पश्चिमी बिहार को घड़ियों की आपूर्ति किया करती है। जीलट वाच के मालिक जिया काजिम कहते हैं, हमारी चार पीढियों गुजर गईं इसी दुकान से। अब हमारी दुकान का वजूद बच पाएगा अथवा नहीं, यह कह पाना कठिन है।हमने अपना पूरा जीवन इस बाजार को दिया है। यह बाजार सिर्फ हमारा रोजगार नहीं, बल्कि हमारी पहचान है। दुकान टूटी तो हम पूरी तरह बेरोजगार हो जाएंगे, और जिनके मकान हैं, उनका भी कुछ हिस्सा बचना मुश्किल है।
जिया काजिम बताते हैं, मेरे दादा के पिता ने दालमंडी में घड़ियों का बिजनेस शुरू किया था। मैं अब भी घड़ियां बेचता हूं। यह चौड़ीकरण दालमंडी को खत्म कर देगा। यहां की गलियों की रौनक खत्म हो जाएगी। खाने-पीने की दुकानें भी नहीं बच जाएंगी। थोक बाजार का अस्तित्व ही मिट जाएगा।
हमें इस गली को सड़क बनाने का औचित्य समझ में नहीं आ रहा है।हम चाहते हैं कि हमारे साथ इंसाफ हो। अगर हमें उजाड़ा गया तो रो भी नहीं सकते।

अनिश्चित भविष्य

काशी के सौंदर्यीकरण और यातायात सुधार के नाम पर हजारों परिवारों की रोजी-रोटी छीन लेना क्या उचित है? यह सवाल केवल दालमंडी के व्यापारियों का नहीं, बल्कि पूरे समाज का है। सरकारी योजनाओं और विकास की जरूरतों के बीच यह सवाल बना हुआ है कि क्या विकास की कीमत मानवता, संस्कृति और व्यापारिक धरोहर के बलिदान से चुकानी चाहिए? दालमंडी के उजड़ते बाजार और व्यापारियों के चेहरे पर पसरे दर्द को देखकर यह कहना कठिन हो जाता है कि यह विकास है या विनाश? करीब सौ साल पुरानी बाबा सर्राफ 1924 से आभूषण का कारोबार कर रहे जुल्फकार आलम का दर्द उनके शब्दों में झलकता है, हमने यहां अपनी तीन पीढ़ियां खपा दीं। यह सिर्फ बाजार नहीं, हमारी धरोहर है।

दालमंडी की रौनक

यहां के 90 फीसद कारोबारी गली के दोनों तरफ दुकानें लगाते हैं। उनके पास न तो दूसरा ठिकाना है, न कोई और विकल्प। गली का चौड़ीकरण होगा तो वह हजारों लोगों की बबार्दी की वजह बनेगा। दालमंडी, जो कभी पूर्वांचल में व्यापार का केंद्र हुआ करता था, अब केवल कल्पनाओं का बाजार बनकर रह जाएगा। यहां के बाजारों में होली के रंग से लेकर दिवाली के पटाखे, ईद के कपड़े और मकर संक्रांति की पतंगें हर त्योहार का हिस्सा थीं। मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, कपड़े, और हर तरह की चीजें यहां मिलती थीं। यह बाजार बनारस की धड़कन थी, लेकिन अब इसकी गलियों की आवाजें धीरे-धीरे खामोशी में बदल रही हैं। दालमंडी का नाम सुनते ही पूर्वांचल का सिंगापुर याद आता है। यह बाजार, जिसकी गलियों में न केवल कारोबार की चहल-पहल है, बल्कि यहां का हर कोना अपने आप में इतिहास समेटे हुए है। आज यह बाजार विकास की भेंट चढ़ने को मजबूर है। करीब 10,000 दुकानें टूटने की कगार पर हैं। ऐसा इसलिए ताकि काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को सुगम रास्ता मिल सके।

दालमंडी की विरासत पर संकट

यह इलाका कई पीढ़ियों से न केवल काशी के मुस्लिम समाज का, बल्कि पूरे शहर के व्यापारिक जीवन का अहम हिस्सा रहा है। यहां की गलियां महज बाजार नहीं, बल्कि हजारों परिवारों के जीवन का आधार हैं। 
इन तंग गलियों में जो ठेले, दुकानें और गोदाम हैं, वे सिर्फ सामान बेचने की जगह नहीं, बल्कि काशी की गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का प्रतीक हैं। साल 1965 से कपड़ा व्यवसाय कर रहे मोहम्मद ताज बताते हैं, यहां 90 फीसद लोग फुटपाथ पर दुकान चलाते हैं। अगर दुकानें टूटेंगी, तो हम कहां जाएंगे? यह तो हमारी रोजी-रोटी छीनने जैसा है। हमें यहां से हटाकर कहीं और जाने के लिए कहा जा रहा है, लेकिन दूसरी जगह कौन से ग्राहक हमारे पास आएंगे?

सांस्कृतिक गतिविधियों की केंद्र थी दालमंडी

गंगा किनारे बसी काशी का चौक इलाका प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र रहा है। गुलशन कपूर बताते हैं कि चौक न केवल व्यापार का स्थान था, बल्कि देशभर से आने वाले व्यापारियों और श्रद्धालुओं के लिए दालमंडी में ठहरने का स्थान भी था। यह इलाका व्यापारियों के मनोरंजन और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया। गुलशन कहते हैं, यहां संगीतालय खोले गए, जहां सुर और संगीत में निपुण महिलाएं व्यापारियों के सामने अपने हुनर का प्रदर्शन करती थीं। तौकीबाई, हुस्नाबाई, बॉलीवुड अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दनबाई, छप्पन छुरी के नाम से चर्चित जानकीबाई, गौहरजान, रसूलनबाई, सिद्धेश्वरी देवी, विद्याधरी, ये सभी नाम पूरे देश में मशहूर थे और आज भी हैं।

किसी आपदा से कम नहीं चौड़ीकरण 

दालमंडी के व्यापारियों के लिए यह गली का चौड़ीकरण किसी आपदा से कम नहीं होने वाला। यह सिर्फ उनका कारोबार नहीं छीन रहा, बल्कि उनकी पहचान, उनकी जड़ें, और उनके जीवन का आधार भी छीन सकता है। डॉ.दिलशाद अहमद सिद्दीकी की चश्मों की दुकान है। वह कहते हैं,  यहां सवाल सिर्फ विकास का नहीं है, बल्कि उस विकास की कीमत का है। क्या इस कीमत को चुका पाना वाकई संभव होगा? सरकार के लिए यह समय सिर्फ विकास पर ध्यान देने का नहीं, बल्कि इन व्यापारियों के भविष्य के बारे में सोचने का भी है। अगर दालमंडी बाजार उजड़ता है, तो काशी की आत्मा का एक बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए खो जाएगा। दालमंडी के कारोबारी दिलशाद की आवाज में गुस्सा, दर्द और बेबसी साफ झलकती है। वे कहते हैं, छोटे दुकानदार पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे। उन्हें कहीं और जगह नहीं दी जाएगी। जो पीढ़ियों से यहां कारोबार कर रहे हैं, वे दोबारा इस गली के किनारे व्यापार नहीं कर पाएंगे। सरकार को सिर्फ एक-दो फीट अतिक्रमण हटाना चाहिए। लेकिन अगर 23 फीट तक सड़क चौड़ी की गई, तो हमारी जिंदगी उजड़ जाएगी। हम बर्बाद हो जाएंगे।

आवागमन सुगम होगा : पार्षद

दालमंडी जिस वार्ड में आता है, वहां के पार्षद इंद्रेश कुमार का तर्क कुछ और ही है। वह कहते हैं, गली अगर सड़क बन जाएगी तो इमरजेंसी सेवाएं बेहतर हो सकेंगी। एंबुलेंस और दमकल की गाड़ियां आराम से आ-जा सकेंगी। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर तक पहुंचना सुगम होगा। बेनिया की पार्किंग, जिसमें एक साथ 700 वाहन खड़े हो सकते हैं, अब पूरी तरह से इस्तेमाल हो सकेगी। बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए बीते तीन सालों में 19 करोड़ से अधिक श्रद्धालु काशी आए। शहर में लगातार बढ़ते पर्यटकों के दबाव के कारण प्रमुख मार्गों और संपर्क मार्गों का चौड़ीकरण करना अनिवार्य हो गया है। काशी अब सिर्फ स्थानीय लोगों की नहीं, बल्कि पूरे देश की धरोहर है। प्रशासन ने दालमंडी के गली को सड़क में बदलकर विकास का जो खाका तैयार किया है उसके मुताबिक, यहां दिल्ली के पालिका बाजार की तर्ज पर अंडरग्राउंड मार्केट बनेगा। लोक निर्माण विभाग पहले अतिक्रमण तोड़ेगा और फिर 23 फीट चौड़ी सड़क बनाएगा। बाजार में बिजली सप्लाई के लिए अंडरग्राउंड केबिल बिछाई जाएंगी और नई सीवर लाइन डाली जाएगी। इस योजना का मकसद घनी आबादी वाले इस इलाके को बेहतर बुनियादी सुविधाएं देना है। 20 हजार की आबादी अब तक मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। बेनिया के रास्ते से मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओं को 2.5 किलोमीटर घूमकर जाना पड़ता है, लेकिन सड़क चौड़ी होने के बाद यह दूरी घटकर 1 किलोमीटर रह जाएगी। बाजार में पार्किंग की सुविधा नहीं थी और 8 फीट की सड़क पर पुलिस गश्त भी मुश्किल थी। इस विकास कार्य से आवागमन सुगम होगा और व्यापार में भी सुधार होगा।

विकास बनाम मानवता का संघर्ष

दालमंडी सिर्फ एक बाजार नहीं, यह काशी की आत्मा है। इसे बचाना, यहां के हजारों परिवारों को बचाने जैसा है। सरकार को विकास की इस कहानी में मानवता के अध्याय को भी शामिल करना होगा। दालमंडी का यह संघर्ष न केवल बनारस की संस्कृति को बचाने का है, बल्कि उन हजारों परिवारों की जिंदगी को भी बचाने का है, जो पीढ़ियों से इन गलियों में अपना सब कुछ लगा चुके हैं। क्या यह सही मायनों में काशी की नई सुबह होगी? या फिर यह उन अंधेरों की शुरूआत होगी, जो हजारों परिवारों को अपने साथ डुबा लेगी? साभार