ये 'स्पेशल' बिगाड़ रहीं ट्रेनों का शेड्यूल
गोरखपुर। गर्मी की छुट्टियों में आने वाली भीड़ को राहत देने के लिए देश भर में लगभग एक हजार समर स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, लेकिन यह सहूलियत ही सिस्टम पर भारी पड़ने लगी है। गोरखपुर-पुणे-गोरखपुर समर स्पेशल एक्सप्रेस ट्रेन सोमवार को गोरखपुर से 34 घंटे की देरी से रवाना की गई। यह ट्रेन पुणे से भी लगभग 26 घंटे की देरी से चली थी। मुंबई-गोरखपुर के बीच चली एक समर स्पेशल में तो एसी इकनॉमी क्लास के कोच की जगह एसी थर्ड का कोच लगा देने से यात्रियों को सीट के लिए जूझना पड़ा था। सोमवार को ही अमरनाथ एक्सप्रेस को भी जल्द चलाने के लिए दूसरी ट्रेनों का अतिरिक्त कोच खोजा जा रहा था। गोरखपुर स्टेशन से हर दिन करीब एक लाख लोग रेल यात्रा करते हैं। विशेष अवसरों पर यह संख्या बढ़ जाती है। इन दिनों चुनाव और गर्मी की छुट्टियों के चलते भीड़ बढ़ी है। इसे देखते हुए पूर्वोत्तर रेलवे समेत सभी रेलवे जोन से समर स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। गोरखपुर से दिल्ली-मुंबई के लिए हर दिन कोई न कोई स्पेशल ट्रेन चलती या गुजरती है। इतनी बड़ी संख्या में स्पेशल ट्रेनों के चलने से यात्रियों को राहत की उम्मीद थी, लेकिन पंजाब में चल रहे आंदोलन ने उत्तर भारत से चलने वाली ट्रेनों का शेड्यूल बिगाड़ दिया। अमृतसर के पास रेल ट्रैक जाम होने के चलते लगभग 22 ट्रेनें डायवर्ट होकर चल रही हैं। वे सभी ट्रेन गोरखपुर आते-आते 6 से 10 घंटे तक लेट हो जाती हैं। बिहार से चलने वाली ट्रेन अपने निर्धारित समय से 10 से 12 घंटे देर से पहुंचती है और जब चलती है तो वहीं 14-15 घंटे लेट हो चुकी होती है। इसका खामियाजा गोरखपुर स्टेशन पर उस ट्रेन का इंतजार करने वाले यात्रियों को भुगतना पड़ता है। पिछले सप्ताह अमरनाथ एक्सप्रेस गोरखपुर से ही 42 घंटे की देरी से गई थी। इसके बाद वापस आने पर यह 44 घंटे लेट हो चुकी थी। रैक बदलकर चलाई गई तो 12 घंटे की कमी आई। सोमवार को फिर यह 20 घंटे की देरी से गोरखपुर पहुंची। इसके बाद कोच बदलकर चलाने का प्रयास किया गया। यह गाड़ी गोरखपुर से सात घंटे की देरी से रवाना हुई।
कोच बदलने के चलते हो चुका है हंगामा
मुंबई से गोरखपुर के बीच चली एक ट्रेन में दो कोच एसी थर्ड के लगे थे, जबकि टिकटों का आरक्षण इकनॉमी क्लॉस के आधार पर किया गया था। ट्रेन चलने के बाद सीट को लेकर हंगामा हुआ तब अफसरों ने ध्यान दिया और किसी तरह से सीट का अरेंजमेंट किया गया। एक सप्ताह बाद फिर वही दिक्कत आई। 16 यात्रियों को फिर सीट नहीं मिली तो किसी तरह से उन्हें दूसरी रिक्त सीटों पर जगह दी गई।
वाशिंग पिट में भी नहीं मिल रही जगह
एक साथ इतनी संख्या में ट्रेन चलाने के लिए रेलवे के सिस्टम को अभी बहुत अधिक अपडेट करने की जरूरत है। वाशिंग पिट से जुड़े एक अफसर ने बताया कि एक ट्रेन को वाशिंग पिट आने पर सफाई और मरम्मत के लिए करीब 6 घंटे लगते हैं। ट्रेन के अंतिम स्टेशन पहुंचने पर करीब आधे घंटे तक ट्रेन को प्लेटफार्म पर रोकना पड़ता है। यात्रियों और सामान उतारने के बाद इसे सीधे वाशिंग पिट भेजें और वापस प्लेटफार्म पर लगा दें, तब भी सात से आठ घंटे का समय लगना तय है। इसीलिए कोई ट्रेन आती है तो उसे तुरंत ही वापस नहीं भेजा जा सकता। वाशिंग पिट की भी अपनी क्षमता है। एक पिट में तीन लाइन है, मतलब यह कि आठ घंटे में तीन ट्रेन ही रवाना करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो सकती है। अन्यथा बिना सफाई कराए और बिना पानी भरे ही ट्रेन चलानी पड़ेगी, जिससे यात्रियों को और अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।