नोटबंदी के 6 साल बाद SC का बड़ा फैसला, दी क्लीन चिट ...
(रणभेरी): मोदी सरकार द्वारा 2016 में में 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट से सोमवार को क्लीन चिट मिल गई है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि सरकार ने आरबीआई से गहन चर्चा के बाद ही यह फैसला लिया है। कोर्ट ने इससे जुड़ी सभी 58 याचिकाओं को खारिज करते हुए केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया। कोर्ट ने ये भी कहा कि नोटबंदी को लेकर सरकार ने सभी नियमों का पालन किया। छह महीने तक सरकार और आरबीआई के बीच इस मसले को लेकर बातचीत हुई और इसके बाद फैसला लिया गया। जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया। कोर्ट ने केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक और याचिकाकर्ताओं की दलीलों को विस्तार से सुनने के बाद पिछले सात दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया कि आरबीआई और सरकार के बीच करीब 6 महीने से इस पर बातचीत चल रही थी। इस फैसले में आरबीआई (RBI) एक्ट के सेक्शन 26(2) का पूरी तरह से पालन किया गया। ऐसा नहीं कि कुछ सीरीज के ही नोटों को वापस लिया जा सकता है। 500 औऱ 1000 रुपये के पुराने नोटों (legal currency) को भी वापस लिया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आरबीआई को 7 नवंबर को एक नोटिस दिया जाता है औऱ इस पर आनन-फानन में मुहर लगा दी जाती है।
सरकार का इस याचिका में लगातार कहना था कि यह नीतिगत फैसला था, सरकार की मंशा काला धन रोकने औऱ भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगाने की थी. उसका कहना है कि नोटबंदी कितनी सफल रही है या नहीं, यह अलग मसला है। सरकार ने तमाम परिस्थितियों को देखते हुए आर्थिक फैसला लिया था और इसमें पूरी तरह वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया गया था. इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट की क्लीनचिट सरकार के लिए बड़ी राहत देने वाली है. विपक्षी दल लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनाव में नोटबंदी से जनता को परेशानी और अर्थव्यवस्था में गिरावट का मुद्दा उठाते रहे हैं, हालांकि राजनीतिक तौर पर भी विपक्षी दलों को कोई फायदा नहीं मिला। अब कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न ये निर्णय अतार्किक था और न ही आनुपातिकता के सिद्धांत के विरुद्ध था. केंद्र सरकार और तत्कालीन रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन की अगुवाई वाले आरबीआई के बीच पर्याप्त विचार विमर्श हुआ था. हालांकि पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagratna) का मत अन्य चार न्यायाधीशों से अलग था. उनका कहना है कि नोटबंदी पूरी तरह गैरकानूनी थी. इस मामले को चिदंबरम के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अन्य ने चुनौती दी थी। नोटबंदी को एनडीए सरकार का मनमाना फैसला बताते हुए विभिन्न याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को 1000 रुपये और 500 रुपये के चलन में रहे नोट को बंद करने का बड़ा ऐलान किया था. सभी को ऐसे पुराने नोट जमा करने का एक महीने का वक्त दिया गया था.उच्चतम न्यायालय ने नोटबंदी के इसी फैसले को चुनौती से जुड़ी याचिकाओं पर अपनी राय दी. जस्टिस एसए नजीर की अगुवाीई वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने इस पर निर्णय़ दिया है.
सुप्रीम कोर्ट की केसेज लिस्ट के अनुसार, इस केस में दो अलग-अलग फैसले हैं. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना एक तरह की याचिकाओं पर निर्णय सुनाएंगे। जस्टिस नजीर, जस्टिस गवई और जस्टिस नागरत्ना के अतिरिक्त पांच जजों की बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार और रिजर्व बैंक (RBI) को 7 दिसंबर को आदेश दिया था कि वो 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद किए जाने के फैसले से जुड़े रिकॉर्ड कोर्ट में पेश करें। बेंच ने सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, रिजर्व बैंक के अधिवक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम व श्याम दीवान समेत तमाम याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकीलों के तर्क सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. पुराने नोटों को बंद करने के फैसले को गलत ठहराते हुए चिदंबरम ने कहा थी कि केंद्र की मोदी सरकार कानूनी निविदा से जुड़े किसी प्रस्ताव को अकेले प्रारंभ नहीं कर सकती।