पीएम साहब ! बचा लीजिये युवाओं को बर्बादी से... सट्टे की काली कमाई से खुलती गई लूट की सफ़ेद दूकान ....
पंकज आर्या, बबलू अग्रवाल, आदित्य अग्रवाल, अंशुमान अग्रवाल, सौरभ केजरीवाल और अश्वनी केशरी जैसे लोगों पर आखिर क्यों मेहरबान है योगी की पुलिस ?
विरासत के साथ यह कैसा विकास ?
जानिये ! क्या है करौली का काला कारोबार ?
किसकी शह पर पनप रहा है शहर में सट्टे का गोरखधंधा ?
वाराणसी (रणभेरी)। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सट्टा माफियाओं ने जिस कदर अपना जाल फैलाकर बर्बादी के कगार पर युवाओं को एक लम्बी कतार में खड़ा करना शुरू कर दिया है उससे तो अब ऐसा ही लगता है कि बनारस को बर्बादी की इस लत से बाहर निकाल पाना मुश्किल है। भ्रष्टाचार के खिलाफ कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हुंकार भरने वाले पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भारत का भविष्य कहे जाने वाले नौजवान सट्टा माफियाओं के चंगुल में फसकर बड़ी तेजी से फुटपाथ पर आ रहे हैं और अपना सब कुछ गवाने के बाद ऐसे ही युवा खामोशी के साथ मौत को गले लगाते जा रहे है। हैरत की बात तो यह है कि अपराधियों की पैंट गीली करने का दावा करने वाले सूबे के तेज तर्रार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार भी प्रधानमंत्री की साख को धूमिल होने से नहीं बचा पा रही है। देश की सबसे चर्चित संसदीय सीट वाराणसी में योगी सरकार की पुलिस की मौन सहमति पर संगठित अपराध की जड़े इस कदर गहरी होती जा रही है कि हज़ारों परिवार दिन पर दिन मिट्टी के घड़े सरीखे टूटते जा रहे हैं। सट्टा के खेल में अपना सब कुछ हारने के बाद सटोरियों का क़र्ज़ चुकाने के दबाव में नौजवान इस कदर बेबस और मजबूर हो जा रहे हैं कि अपना घर-मकान-दूकान तक बेच दे रहे है। वहीं जिन्होंने अपना सब कुछ पहले से ही गवा दिया है ऐसे लोग स्थानीय गुंडों के भय से और अपनी बची-कुची इज्जत बचाने के लिए खामोशी के साथ मौत को गले लगा ले रहे हैं। दरअसल सट्टा कारोबारियों के सिस्टम में पहले से ही सेट पुलिस और गुंडों के गठजोड़ के सामने पीड़ित पक्ष को मदद की कोई उम्मीद नहीं रह जाती है। इस काले कारोबार से जुड़े शातिर लोग अपने पीछे मोटे तौर पर कोई सबूत नहीं छोड़ते है जिसकी वजह से तमाम शिकायतों के बावजूद पुलिस हमेशा सेफ जोन में ही रहती है। वही सटोरियों के सिस्टम में खामोशी के साथ अहम किरदार निभाने वाली पुलिस की खुली छुट की बदौलत सट्टा कारोबारियों के लिए वसूली का काम स्थानीय गुंडे आसानी से करते हैं जिन्हें पुलिस के साथ-साथ जेलों में बंद बड़े अपराधियों का संरक्षण भी प्राप्त होता है। बताते चलें कि वाराणसी में अपना पैर जमा चुके तमाम सट्टामाफिया, जेलों में बंद अपराधियों का भी पूरा खर्चा उठाते है। यही वजह है कि सट्टा माफिया बेख़ौफ़ होकर सिस्टम के साथ संगठित अपराध की गहरी जड़ों में पानी डाल कर काली कमाई की लहलहाती फसल काट रहे है। इन सबके बावजूद एक सवाल जिंदा है और हमेशा जिंदा रहेगा कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पुलिस और प्रशासन के साथ-साथ सारे ख़ुफ़िया तंत्र फेल हो चुके हैं ? या मान लिया जाय कि नीचे से लेकर ऊपर तक सब सिस्टम का हिस्सा है। और यदि यही सच है तो प्रधानमंत्री को यह कहना छोड़ देना चाहिए कि “सारे भ्रष्टाचारी जेल में होंगे” और मुख्यमंत्री को भी यह कहना छोड़ देना चाहिए कि “सारे अपराधी जेल में होंगे”।
सट्टा माफियाओं और हवाला कारोबारियों के बीच गहरी है दोस्ती-
सूत्र बताते हैं कि वाराणसी में सट्टा और हवाला जैसे संगठित अपराध में शामिल पंकज आर्या, बबलू अग्रवाल, आदित्य अग्रवाल, अंशुमान अग्रवाल, सौरभ केजरीवाल और अश्वनी केशरी जैसे लोग वो कड़ी हैं जो वाराणसी में रहकर भारत के तमाम प्रान्तों सहित नेपाल, दुबई, श्रीलंका तक लेन-देन करते हैं। शहर में सौरभ के परिवार की महमूरगंज क्षेत्र में इलेक्ट्रानिक सामानों की दूकान है तो अश्वनी का गिरजाघर क्षेत्र में बर्तनों का पारिवारिक व्यापार। वहीं आदित्य अग्रवाल और अंशुमान अग्रवाल वह नाम है जिन्होंने करौली पैथोलॉजी के नाम से शहर के अलग-अलग हिस्सों में कई पैथोलॉजी सेंटर खोल रखा है जिसके जरिये ये ब्लैक मनी को व्हाईट मनी में कनवर्ट कर रहे हैं। बताया जाता है कि शातिर हवाला कारोबारी अश्वनी केशरी और फितरती सटोरिया पंकज आर्या रातों रात करोड़पति बनने की चाहत रखते थें और इन दोनों नें पैसे बनाने के लिए हर गलत रास्ते पर चलने का फैसला कर लिया। आज अश्वनी हवाला कारोबार के जरिये अपनी आर्थिक जड़ों को मजबूत कर चूका है तो वहीं सट्टा के कारोबार में आने के बाद पंकज आर्या ने आर्थिक साम्राज्य को मजबूत बना लिया। दूसरी तरफ आदित्य और अंशुमान ने पैथोलॉजी सेंटर खोलकर अपने काले कारनामों के ऊपर सफेद पर्दा डालने का काम कर लिया है।
हवाला कारोबारी खोल सकता है सटोरियों का काला चिठ्ठा-
माना जा रहा है कि जैसे- जैसे सट्टा का कारोबार इंटरनेट के जरिये आनलाइन प्लेटफार्म पर बढ़ता गया वैसे- वैसे पुलिस की पकड़ कमजोर होती गई। मोबाईल फोन और अलग-अलग कंपनियों के सिम के साथ ही इंटरनेट पर गेमिंग एप के जरिये सट्टा कारोबार इस कदर मजबूत और महफूज हुआ है जिसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। बड़े सट्टा माफियाओं के लिए काम करने वाले सटोरिये अपने बुकी के माध्यम से ग्राहकों को आईडी और पासवर्ड मुहैया कराते हैं। प्रत्यक्ष रूप से इस धंधे के ग्राहकों और सटोरियों के बीच कोइ कनेक्शन नहीं दिखता। और यह साबित होता है कि जैसे उनका इस धंधे से कोई सारोकार ही नहीं। इसके बाद बुकियों और ग्राहकों के बीच जो कुछ होता है उसका कोई सहज सबूत सामने नहीं होता। जीत या हार के बाद रूपयों का लेन-देन स्थानीय स्तर पर बुकी के जरिये नकद हो जाता है वहीं मुम्बई सहित नेपाल, श्री लंका व दुबई में बैठे सट्टा माफियाओं एवं भारत के विभिन्न शहरों में बैठे सटोरियों के बीच बड़ी रकम का आदान-प्रदान हवाला के जरिये ही होता है। ऐसे में यदि हवाला के जरिये सट्टेबाजों की रकम इधर-उधर करने वालों पर - पुलिस अपना शिकंजा कस दे तो न केवल सट्टेबाज पुलिस के शिकंजे में होंगे बल्कि इस संगठित अपराध से जुड़े दर्जनों बड़े से बड़े चहरे भी बेनकाब हो जायेंगे।
कौन है युवाओं के भविष्य को गर्त में धकेलने वाला अश्विनी केशरी-
आपका चहेता अखबार ‘रणभेरी’ लगातार सट्टे के काले कारेबारियों के खिलाफ मुहिम चला कर शहर के हजारों परिवारों की बर्बादी की इबारत लिखने वाले सटोरियों को बेनकाब कर रहा है। इसी कड़ी में हम इस संगठित अपराध के आधार की ओर अपने सुधी पाठकों का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं जिनके जरिए ही शहर के लोगों से सट्टेबाजों द्वारा वसूली गई रकम सरहद पर भेजी जाती है। सूत्रों के हवाले से हमारे कार्यालय को एक ऐसे एक ऐसे हवाला कारोबारों की जानकारी मिली है जो सट्टे के धंधे में लिप्त पंकज आर्या, बबलू अग्रवाल, आदित्य अग्रवाल, अंशुमान अग्रवाल, सौरभ केजरीवाल सहित कईयों के लिए काम करता है । वाराणसी के गिरजाघर क्षेत्र में अपना ठिकाना बनाकर यह व्यक्ति यहां से मुंबई, नेपाल, श्रीलंका और दुबई तक हवाला के जरिए काली कमाई की पलटी करता है। वाराणसी पुलिस के लिए अब भी यह एक बड़ी चुनौती है की आखिरी अश्विनी केशरी नाम यह व्यक्ति कौन है जो यहां के सट्टेबाज़ों के लिए न केवल काम करता है बल्कि एक मजबूत राजदार भी है। यही वजह है कि अश्वनी सटोरियों का बैकबोन कहा जाता है। अगर वाराणसी पुलिस अश्विनी तक पहुंचे तो पुलिस इसके जरिए कई सट्टेबाजों पर शिकंजा कस सकती है। क्योंकि सूत्र बताते है कि अपना शिकंजा कसने में नाकाम वाराणसी पुलिस यदि हवाला के जरिए सट्टेबाजों का पैसा ट्रांसफर करने वाले अश्विनी केशरी तक पहुंच जाए तो उसके ज़रिए दर्जनों सट्टेबाजों का चेहरा बेनकाब हो जाएगा जो वाराणसी पुलिस के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।
...एक पाती पीएम के नाम
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से तीसरी बार नामांकन करने के लिए आपको हार्दिक अभिनंदन
मान्यवर, आपके अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को लेकर आपकी आत्मीयता, प्रेम और समर्पण किसी से छिपी नहीं है। धार्मिक नगरी काशी में विकास के नए-नए सोपान और आगामी योजनाएं जो फलीभूत होनी है, ये बताने को काफी है कि इस सांस्कृतिक नगरी के श्री संवर्धन के प्रति आप कितने सजग व सचेत हैं।
मान्यवर, हम आपको अवगत कराना चाहते हैं की आपके अपने शहर बनारस में आपके प्रयासों से चमकती काशी के बीच कुछ ऐसे भी धब्बे हैं जो आपके कृतित्व में चमक उठी काशी के वैभव को हर दिन धूमिल कर रहे हैं। मान्यवर, हम बात कर रहे हैं सट्टे की उस काले कारोबार की जिसके खतरे को लेकर आपने पिछले साल छत्तीसगढ़ में मंच से ललकार लगाई थी और इसके गंभीरता को लेकर गहरी चिंता जताई थी। महोदय, आपकी यही चिंता आज बनारस वासियों की सामूहिक चिंता बन चुकी है। आपको यह जानकर शायद आश्चर्य हो कि सट्टे की बीमारी कैंसर से भी ज्यादा खतरनाक रूप ले चुकी है। सट्टे का काला कारोबार आज बनारस की सबसे बड़ी सामाजिक समस्या का पर्याय बन गई है, जिसकी वजह से काशी का सामाजिक ढांचा चरमरा उठा है। सट्टे का यह कारोबार पारिवारिक संरचना को दीमक की तरह चाटने लगा है। इस मनहूस कारोबार के चपेट में आकर सैकड़ो परिवार टूट कर बिखर चुके हैं। अफसोस की बावजूद इस त्रासदी के प्रशासन की परमहंसी मुद्रा के चलते मौत के सौदागर इन सट्टेबाजों के काले कारनामों पर लगाम नहीं लगाई जा सकी है। जनता के चाहते अखबार ‘गूंज उठी रणभेरी’ ने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करते हुए पिछले कई महीनों से एक लंबा समाचारीय अभियान चलाया। धंधे की राय-रत्ती रहस्य भेदन कर प्रशासन को इस काले धंधे के सौदागरों का नाम तक बताया किंतु न जाने क्यों पुलिस प्रशासन ने इसके खिलाफ प्रभावी कार्रवाई को लेकर अनमनापन दिखाया। नतीजा यह है कि आपके बनारस में चल रहा यह धंधा अपने चरम पर है और बड़ी तेजी से फल फूल रहा है।
मान्यवर, आपके काशी में सट्टे का यह काला कारोबार शहर के नौजवानों को पतन की राह पर ले जा रहा है। सट्टेबाज बनारस की साख पर हर रोज बट्टा लगा रहे है। महोदय, आपके चहेते काशीवासियों को उम्मीद है कि इस संबंध में आप जरूर कोई सार्थक कदम उठाएंगे और देश की सांस्कृतिक राजधानी को इस अभिशाप से मुक्त कराएंगे।
सादर
गूंज उठी रणभेरी
जानिए! कैसी है सटोरियों की दुनिया-
आईपीएल टूनामेंट अब फाइनल की ओर है। आईपीएल फाइनल मैच लेकर क्रिकेट सटोरिए और पंटर पूरी दुनिया में एक्टिव हैं। भारत में सट्टेबाजी अवैध है, लेकिन कई देशों में यह लीगल है। इसी वजह से बरसों से भारत में सट्टेबाजी में लेनदेन कैश में होता रहा है। हालांकि अब इसमें ऑनलाइन पेमेंट भी शुरू हो गई है। लेकिन यह तो कुछ भी नहीं। एक भरोसेमंद सूत्र ने सट्टेबाजी की दुनिया से जुड़े जो खुलासे किए हैं, उन्हें जानकर आपकी आंखें फटी रह जाएंगी। क्रिकेट सट्टेबाजी की दुनिया रहस्यों से भरी हुई है। इसका इतिहास भी बहुत पुराना है। लेकिन, इसके कुछ कायदे-कानून ऐसे हैं, जिनसे बुकी कभी समझौता नहीं करते। ऐसा ही एक कायदा है पेमेंट से जुड़ा। भले ही रोज कितने ही मैचों में सट्टा खेला जाए, लेकिन पेमेंट सप्ताह में एक दिन सोमवार को ही होती है। ऑनलाइन पेमेंट के अलावा जो पहले से परंपरा है, उसमें यदि पंटर सट्टा जीत गया, तो बुकी का आदमी उसके पास आता है और कैश दे जाता है। यदि पंटर हार गया, तो उसे बुकी के आदमी को पेमेंट करनी पड़ती है। यदि पंटर सट्टे में बहुत मोटी रकम जीत गया और रकम 25 या 50 लाख रुपये से ऊपर हुई, तब बुकी इतना कैश देकर अपने आदमी को नहीं भेजता। वह पंटर को किसी हवाला कारोबारी के पास खुद जाने को कहता है और वहां से रकम उठाने को कहता है। हवाला कारोबारी को इस दौरान बुकी का फोन आ ही जाता है।
पुलिस से बचने के लिए अपनाते ये पैंतरा-
पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए सट्टेबाजों ने बेटिंग का पैटर्न बदल लिया है। मोबाइल नंबर ट्रैक हो जाने की वजह से सट्टेबाज इस पूरे गेम का संचालन अब वॉट्सऐप से भी कर रहे हैं। फोन की लाइन देने की बजाय चैट के जरिए ही हर बॉल का हाल बता देते हैं। उसी हिसाब से बुकी आगे भाव बताकर हार-जीत का दांव लगवाते हैं। इसके अलावा बुकी ने सट्टेबाजी की एप्लिकेशन भी तैयार कर ली है। सोशल मीडिया पर अपने बुक के बारे में जानकारी डालते हैं। इसमें जो मोबाइल नंबर होता है, उस पर कॉल की सुविधा नहीं होती है। वॉट्सऐप पर ही बातचीत हो सकती है। वॉट्सऐप पर मैसेज करने पर कई वेबसाइट के लिंक भेजे जाते हैं। इसमें से एक साइट सिलेक्ट करनी होती है। आईडी सिलेक्ट करने के बाद बैंक की डिटेल आती है। जिसमें पैसा जमा करने के लिए बोला जाता है। पैसा जमा करने के बाद आईडी पासवर्ड देते हैं। उसी आईडी पर लॉग इन करना होता है। इसके बाद हर बॉल का भाव मोबाइल की स्क्रीन पर होता है। बस अपनी बेट को टच करना होता है और पैसा लग जाता है।
जानिये ! क्या है करौली का काला कारोबार ?
हर साल अपनी नई नई शाखाओ को खोलने वाले इस डायग्नोस्टिक सेंटर के मालिक है आदित्य अग्रवाल और अंशुमान अग्रवाल। बीते कुछ सालों में वाराणसी में बड़े तेजी से उभरता हुआ एक डायग्नोस्टिक सेंटर इन दिनों चर्चा में है जिसका नाम करौली डायग्नोस्टिक सेंटर बताया जा रहा है। सूत्रों से मिली पुख्ता जानकारी के मुताबिक करौली के मालिकान अदित्य और अंशुमान दोनों भाई हैं और सट्टा कारोबारी पंकज आर्या के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर पूर्वांचल के कई जिलों से सट्टे का धंधा संचालित कर रहे हैं। सट्टेबाजी के काली कमाई से ही इस दोनों भाईयों ने वाराणसी में करौली डायग्नोस्टिक नाम से एक जांच पैथोलॉजी की शुरुआत की ।
सट्टे की काली कमाई से खुलती गई लूट की सफ़ेद दूकान-
सूत्रों की माने तो आदित्य और अंशुमान सट्टे से कमाई काली रकम को सफेद करने के लिए हर साल एक नए आलीशान पैथोलॉजी सेंटर की शुरुआत करते हैं जिसके आड़ में ये अपना गोरख धंधा चलाते हैं। सट्टे की अवैध कमाई से करौली नाम से एक के बाद एक करके कई पैथोलॉजी सेंटर खोले गए । सूत्रों बताते है कि करौली के संचालक आदित्य अग्रवाल व अंशुमान अग्रवाल ने पिछले 5 सालों में सट्टे के अवैध धंधे की बदौलत करोड़ों रुपए कमाए और बड़ी चालाकी से ये ब्लैक मनी को वाइट मनी में कन्वर्ट करके ईमानदारी का नकाब लगाए बैठे हैं । अब देखना यह होगा कि सरकार की नजर इन धूर्त भाईयों पर कब जाती है।
अपने कारनामे से पहले भी चर्चा में था करौली डायाेग्नोस्टिक सेंटर-
करौली डायग्नोस्टिक सेंटर का मालिक पहले भी अपने कारनामों से चर्चा में रहा है। याद होगा कि करौली डायग्नोस्टिक सेंटर पर प्राइवेट वैन को एंबुलेंस बनाकर मरीज ढोने का आरोप लगा था। जिसमें परिवहन विभाग की ओर से नोटिस भी जारी की गई थी। उस समय परिवहन विभाग के नोटिस का जवाब देने के बजाय करौली डायाेग्नोस्टिक सेंटर बहानेबाजी करता रहा। पहले एंबुलेंस प्रकरण में करौली डायाेग्नोस्टिक सेंटर ने परिवहन विभाग को पत्र लिखकर कहा है कि मेरे अधिवक्ता बीमार है। स्वस्थ होने पर जवाब दूंगा। करौली डायाेग्नोस्टिक सेंटर के इस जवाब पर परिवहन अधिकारी ने नाराजगी जाहिर की है। परिवहन अधिकारी ने कहा था कि इस प्रकरण में अधिवक्ता की कोई जरूरत नहीं है। अभी कोई सुनवाई नहीं हो रही जो अधिवक्ता की जरूरत है। पहले यह स्पष्ट करें कि किस अधिकार से आपने ने वाहन का स्वरूप बदला है। इसके अलावा भी कई मरीजों द्वारा इस करौली डायग्नोस्टिक सेंटर पर बड़े गंभीर आरोप लगाए जाते रहे है। हम जल्द ही मरीजों के साथ होने वाले धोखे पर एक विशेष रिपोर्ट अपने पाठकों के बीच लेकर आयेंगे।