वीसी साहब के ठेंगे पर नियम-कानून और सीएम !

- सीएम साहब आते हैं, अपनी सुनाते हैं और वीसी साहब एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं
- कुंभकर्ण की नींद और वीडीए के वीसी साहब की चुप्पी के चर्चाओं का बाजार गर्म
- जोनल संजीव कुमार के चाय की ऐसी स्वाद की वीसी साहब के ओंठ ही चिपक गए
- जोनल के साथ मिलकर शहर में चप्पे चप्पे के अवैध निर्माण का ठेकदार बने हैं वीसी साहब
- जोनल सहित वीसी ने भी बना ली है आय से अधिक संपति, कौन करेगा जांच यह सबसे बड़ा सवाल!
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): पावन नगरी काशी का यह दुर्भाग्य ही है कि जहां एक ओर इस पतित नगरी से लगायत गंगा की धारा अविरल बहती हैं वहीं दूसरी ओर इस नगर के विकास की दुंदुभी बजाने वाली प्रमुख संस्था में भ्रष्टाचार की गंगा भी अपने ऊफान पर है। जी हां हम वाराणसी के उसी चर्चित एवं सरकार के प्रमुख विभाग की बात कर रहे हैं जिसे वाराणसी विकास प्राधिकरण के नाम से जाना जाता है। हां हां हम उसी विकास प्राधिकरण की बात कर रहे हैं जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सुशासन वाले सपने को सच करने की नियत और भ्रष्टाचार पर वार के साथ जीरो टॉलरेंस लागू करने वाले अरमान के साथ अपने बेहद चहेते एवं करीबी नौजवान को मनोनित करके कुर्सी पर बैठा दिया। अरेरेरेरेरे ! वाह गुरु आप लोग तो बिल्कुल सही पकड़े है हम भी उसी अम्बरीष सिंह की बात कर रहे है जिसे सीएम साहब ने जाने अनजाने में भोला समझने की भूल कर दी।
जब सीएम की सीधी चेतावनियों के बावजूद उनके ही अधीनस्थ विभाग में बैठे अफसरान नियम और कानून का खुलेआम मखौल उड़ाकर सीधे तौर पर यह बता रहे है कि मुख्यमंत्री के आदेश भी उनके ठेंगे पर हैं। जब वीसी पुलकित गर्ग ने खुलेआम गंगा किनारे से लेकर शहर के हर एक क्षेत्र तक अवैध निर्माण को बेतहाशा छूट दे रखी है, तो फिर यह साबित हो जाता है कि सत्ता की मौन सहमति और प्रशासन के खुले संरक्षण से ही प्राचीनतम नागरी काशी की आत्मा को चोट पहुंचाई जा रही है। वीडीए का भ्रष्टाचार केवल नोटों के गठ्ठों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने गंगा की मर्यादा, गरीबों के अस्पताल, धार्मिक स्थलों, सार्वजनिक चबूतरों, पौराणिक तालाबों सहित जनता की उम्मीदों तक को तहस नहस करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभायी है। वाराणसी विकास प्राधिकरण आज कुछ भ्रष्ट अफसरों और उनके दलालों का अड्डा बन चुका है, जहां नगर के सुनियोजित विकास की योजनाओं से ज्यादा नगर की सूरत-ए-हाल बिगाड़ने वाली साजिशों पर मुहर लगायी जाती हैं।
कड़वा मगर सच यही है कि सरकार ने यदि अब भी वाराणसी विकास प्राधिकरण के वीसी पुलकित गर्ग और ज़ोनल संजीव कुमार जैसे भ्रष्ट अफसरों पर कठोरतम कार्रवाई नहीं की तो न केवल गंगा किनारे बसा यह प्राचीन नगर बर्बादी के मुहाने पर आकर खड़ा हो जाएगा बल्कि सूबे की सरकार पर खोखले दावे करने का पुख़्ता आरोप भी इसी शहर में मढ़ा जायेगा।
मुख्यमंत्री की चेतावनी और वीसी की ढिठाई
उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक गौरव, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की विशेष निगरानी में रखा गया शहर वाराणसी। लेकिन इसी शहर के विकास की जिम्मेदारी जिस संस्था, वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के हाथों में है, वही संस्था आज भ्रष्टाचार, अनदेखी और मिलीभगत का पर्याय बन चुकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समय-समय पर वाराणसी का दौरा करते हैं। अधिकारियों को निर्देश देते हैं कि अवैध निर्माणों पर सख्त कार्रवाई की जाए। गंगा किनारे अतिक्रमण रोका जाए और प्राधिकरण पारदर्शिता से काम करे। लेकिन सीएम के आदेशों की गूंज वीडीए के उपाध्यक्ष साहब के कानों तक पहुंचती ज़रूर है, मगर असर नहीं करती। कहा जाता है कि वे एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं। अफसरशाही की इस ढिठाई ने वाराणसी को अवैध निर्माणों का शहर बना दिया है।
कुंभकर्ण की नींद में डूबा वीसी और ज़ोनल अधिकारी
विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष (वीसी) और ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार की जोड़ी आज शहर के हर गली-कूचे में चर्चित है। चर्चित इसलिए नहीं कि इन्होंने कोई विकास कार्य किया है, बल्कि इसलिए क्योंकि इनकी मिलीभगत से हर मोहल्ले में बहुमंज़िला इमारतें, अवैध होटल, अपार्टमेंट, गेस्टहाउस और कॉम्प्लेक्स खड़े हो रहे हैं। कहावत बन गई है....जहां ज़ोनल की नज़र पड़ी, वहां नक्शा पास हो या न हो, इमारत ज़रूर खड़ी होगी। बहरहाल यह तो अब स्पष्ट है कि वीसी साहब की चुप्पी कोई रहस्य नहीं रही। विभागीय कर्मचारियों की मानें तो यह चुप्पी संजीव कुमार के साथ वाली चाय की प्याली में घुल चुकी है। ज़ोनल संजीव कुमार के साथ बैठकों और 'मुलाक़ातों' के बाद वीसी साहब कुछ भी बोलने से कतराते हैं। कई बार ऐसा देखा गया है कि पत्रकारों द्वारा पूछे गए तीखे सवालों पर वे मुस्कुराकर टाल जाते हैं, या फिर ज़ोनल को बोलने का इशारा कर देते हैं।
वीसी और जोनल कर रहे पीएम के क्षेत्र का चप्पा-चप्पा नीलाम
ज़ोनल संजीव कुमार की चाय में आखिर ऐसा क्या है ?
नगवा, अस्सी, रथयात्रा, शिवाला, भेलूपुर, सुंदरपुर, वाराणसी के ये नाम अब केवल मोहल्लों के नहीं, बल्कि बिके हुए ज़मीर की पहचान बनते जा रहे हैं। गंगा किनारे नो कंस्ट्रक्शन ज़ोन में भी बहुमंज़िला होटल, गेस्टहाउस और शो-रूम बनते जा रहे हैं। इनमें से कई निर्माण न तो ज़ोनल नक्शे में दर्ज हैं, और न ही उनके पास एनओसी है। फिर भी निर्माण कार्य दिन-रात जारी है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि हर निर्माण कार्य के पीछे वीडीए के भीतर की एक सिंडिकेट काम कर रही है। इस सिंडिकेट में वीसी, ज़ोनल, जूनियर इंजीनियर, दलाल और फर्जी दस्तावेज तैयार करने वाले गिरोह के लोग शामिल हैं। पैसे का लेन-देन होता है और नियम-कानून ताक पर रख दिए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि पिछले एक साल में वाराणसी विकास प्राधिकरण से पास हुई कई फ़ाइलों की जांच में पाया गया है कि नक्शे जाली हैं, मुहरें असली नहीं हैं और दस्तखत फर्जी हैं। इसके बावजूद निर्माण कार्यों को रोकने के बजाय आगे बढ़ने दिया गया। सवाल यह उठता है...जब दस्तावेज़ ही फर्जी हैं तो निर्माण की अनुमति कैसे मिली ? एक वीडीए के जानकार (नाम नहीं लिखने के शर्त पर) ने बताया कि बिल्डर पहले दलाल से मिलता है। दलाल उसे ज़ोनल तक पहुंचाता है। ज़ोनल काम करवाने की गारंटी देता है और फर्जी नक्शा तैयार करवा देता है। सब कुछ ऊपर तक बंटता है।
वीसी और ज़ोनल की आय से अधिक संपत्ति, लेकिन कोई जांच नहीं
सूत्रों के अनुसार, ज़ोनल संजीव कुमार और वीडीए के वीसी साहब दोनों ने पिछले कुछ वर्षों में ज़मीन, फ्लैट, कार, गहने और बैंक खातों में बेतहाशा बढ़ोतरी की है। एक स्थानीय आरटीआई कार्यकर्ता ने दावा किया है कि वीसी के पास वाराणसी और लखनऊ में कई फ्लैट हैं, जबकि ज़ोनल के परिवार के नाम पर करोड़ों की संपत्ति खरीदी गई है। इन सबके बावजूद न तो विजिलेंस जांच हो रही है, और न ही लोकायुक्त की कोई सक्रियता दिखती है। क्यों? क्या इन अफसरों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है ? या फिर इनके कमिशन का हिस्सा ऊपर तक पहुंचता है ? वाराणसी विकास प्राधिकरण का मुख्यालय अब विकास का नहीं, बल्कि वसूली का केंद्र बन चुका है। सुबह से लेकर शाम तक वहां नक्शा बनवाने वाले, फर्जी दस्तावेज़ लाने वाले और काम करवाने के नाम पर दलालों की लाइन लगी रहती है।
इन दलालों को न रोका जाता है, न टोका। दरअसल, इन्हीं के ज़रिए पूरा सिस्टम चलता है। एक नक्शा पास करवाने से लेकर निर्माण रोकने के आदेश रुकवाने तक के हर काम का रेट कार्ड तय है। सूत्र बताते हैं कि जो व्यक्ति बिना पैसे दिए वीडीए में कोई काम करवाना चाहता है, उसे महीनों दौड़ाया जाता है। जबकि जो दलाल के साथ आता है, उसका फर्जी नक्शा भी 10 दिन में पास हो जाता है।
वीसी साहब की चुप्पी और मीडिया से दूरी... आखिर क्यों !
एक जिम्मेदार अफसर की पहचान होती है...जब सवाल उठते हैं, तो वो जवाब देता है। लेकिन वीडीए के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग ने जैसे मीडिया से दूरी बनाना ही बेहतर समझ लिया है। जब भी उनसे सवाल किए जाते हैं, जैसे अवैध निर्माणों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई, कोर्ट के आदेशों का पालन क्यों नहीं हुआ, ज़ोनल अधिकारी पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही... तो या तो वे फोन नहीं उठाते, या फिर जांच जारी है कहकर बात टाल देते हैं। स्थानीय पत्रकारों का आरोप है कि वीसी साहब जानबूझकर प्रेस से कतराते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि सवालों के जवाब उनके पास नहीं हैं, और जो हैं भी, वो जवाबदेही से ज्यादा बचाव वाले हैं।
वीडीए में अंदरखाने चल रही 'हिस्सेदारी व्यवस्था'
जैसे किसी व्यापारी का मुनाफा बंटता है, ठीक वैसे ही वीडीए में हर अवैध निर्माण से होने वाली ‘कमाई’ की हिस्सेदारी तय है। नक्शा पास करवाने से लेकर निर्माण रुकवाने या चालान से बचने तक, हर स्टेज पर पैसे का लेन-देन होता है। एक विश्वसनीय सूत्र ने बताया कि अगर किसी निर्माणकर्ता को अवैध रूप से तीन मंज़िल बनानी है, तो वह सबसे पहले ज़ोनल से बात करता है। ज़ोनल की फीस तय होती है। इसके बाद फाइल वीसी के पास जाती है। वहां एक ऊपर की रेटिंग के हिसाब से हिस्सा पहुंचता है। तभी जाकर काम चलता है। इस व्यवस्था में क्लर्क, जेई, एई, नक्शा विशेषज्ञ और यहां तक कि बिल्डिंग इंस्पेक्टर भी शामिल होते हैं। सबका हिस्सा तय है, और हर हफ्ते बंटवारा होता है।
क्या मुख्यमंत्री योगी को गुमराह किया जा रहा है?
यह सबसे बड़ा और संवेदनशील सवाल है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समय-समय पर वीडियो कांफ्रेंसिंग और वाराणसी प्रवास के दौरान अधिकारियों से रिपोर्ट लेते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है...क्या उन्हें असल हालात की जानकारी दी जाती है? या फिर वीसी साहब और ज़ोनल अफसर कागज़ी कार्रवाई दिखाकर उन्हें गुमराह कर रहे हैं ? शहर में हर रोज़ नए अवैध निर्माण शुरू हो रहे हैं, कोर्ट के आदेशों की अवहेलना हो रही है, गंगा किनारे निर्माण हो रहे हैं, नक्शे फर्जी पास हो रहे हैं। फिर भी मुख्यमंत्री को ‘सभी कार्यवाही नियमानुसार’ का भरोसा दिलाया जाता है। यह गुमराह करना न केवल प्रशासनिक अपराध है, बल्कि यह मुख्यमंत्री की छवि पर भी आघात है। शहर की जनता अब सवाल कर रही है... अगर वीसी और ज़ोनल जैसे अफसर ही भ्रष्ट हैं, तो जांच कौन करेगा ? कब होगा इस सिंडिकेट का पर्दाफाश ? किस एजेंसी को इतनी ताक़त है कि वो वाराणसी विकास प्राधिकरण की परतें खोल सके ?
पार्ट-22
रणभेरी के सोमवार के अंक में पढ़िए.......