काव्य-रचना
पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं।
चाह नहीं प्रेमी- माला में
बिन्ध प्यारी को ललचाऊ।।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं।
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूं, भाग्य पर इठलाऊं।।
मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ पर जाएं वीर अनेक।।
ज्योति विवेक पाण्डेय