काव्य-रचना
सोचो मैं सोच चुरा लूं तो?
जीते जैसे सागर निर्भय,
मैं सोच तुम्हारी ले लूं तो
बिन बहती कल कल धारा के
तट पर बस रेत भरा होगा।
सोचो कल्पित एक रचना हो,
मैं परिचय ही चुरा लूं तो
पढ़ने वाला कैसे समझे
क्या कितना तुममे रचा होगा।
हो मुख चंचल,सब बतलाते,
मैं शब्द तुम्हारे ले लूं तो
उस ध्वनि की इच्छा से जग में
कितना ही शोर मचा होगा।
कभी आंधी अपना रुख बदले
व बिजली हल्की भी गरजे
तन भयभित,व्याकुल शून्य मात्र
विचलित स्तब्ध खड़ा होगा।
सोचो किसी रात रागिनिसंग
मैं अगली सांस चुरा लूं तो
धड़ धरा,धरा पर बेबस बिल्कुल
बेसुध मृत पड़ा होगा।।
-अदिति पांडे