काव्य-रचना

काव्य-रचना

   हाशिए पर हसरत    

पत्तल की पहचान
न तो सरकारी ठेकेदार हैं 
न इंजिनियर हैं
न विधायक हैं
न सांसद हैं
न कर्मचारी हैं
न किसान हैं
वे महज़ जीने का अधिकार चाहने वाले इनसान हैं

सभ्य समाज की हयादार तसवीरें
नहीं होती हैं वायरल
उनका वायरल होना
उत्तर में मूँड़ कर के सोना है
या फिर किसी का रोना है!

मुसहरिनें 
गेहूँ की बालियाँ बीन रही हैं
वे मूसकइल मिट्टी में
स्व की खोज़ में संघर्षरत हैं
उनके पास न ज़मीन, न छत है
हाशिए पर 
उनकी हसरत है

उनके मर्द माँद खोद रहे हैं
कहीं कोई गोह पकड़ रहा है
कहीं कोई मूस
उनके बच्चे घोंघा बीन रहे हैं
और बच्चियाँ
खाना बनाने के लिए
लकड़ी!

 

गोलेन्द्र पटेल