काव्य-रचना
मामूली इंसान
मैं ज़मीं से जुड़ा हूँ
आसमां को छू लिया
लेकिन ज़मीं पर पड़ा हूँ
ऐसा किरदार मेरा
न झुका हूँ न झुकूंगा
घमंड तोड़ दूंगा तेरा
मेरे भी सपने हैं
भूखा न सोऊंगा
मेरे भी अपने हैं
लाख आंधियां चलें
मैं न बुझूं,जलता रहूँगा
कभी तो परेशानियां टले
मेरी जीवन गाथा
है मेरी यात्रा अनवरत
रास्ता तकलीफो ने नाथा
अंदर ब्रह्माण्ड समाया
ठहरा तिलिस्मी रहस्य
मामूली नेक इंसान कहलाया
और अच्छा लगता है
मैं ज़मीं से जुड़ा हूँ
आपको क्या लगता है
सूर्यदीप कुशवाहा