काव्य-रचना

काव्य-रचना

   झुकी पालकें  

झुकी पालकें थी जरूरी नहीं शराफत का इज़हार था,,,, 
जरूर किसी बात पर वो शख्स शर्मसार था।
 इस क़दर यकीन भी ठीक नहीं था उन पर ,,, 
के उस वक्त..वक्त पड़ने पर वो फरार था। 
पहली बार इस दिल ने पूछा ऐसा सवाल था,,
 क्या सच में उस शख्स को मुझसे प्यार था? 
अकेले तन्हा में ना पूछा जिस ने हाल तक मेरा,,, 
यकीनन झूठा उसका हर मुहब्बत का इज़हार था। 
आज उस के वजूद के तसव्वुर से भी है नफरत,,, 
के जिस के बिन एक पल रहना दुश्वार था।
 अब लगता है क्यों मेरा ही ये हाल था,,? 
क्या सच में हम शख्स को मुझसे प्यार था? 
"धोकेबाज़ है ये" अक्सर कहते हैं लोग,, 
फिर भी हमें उसी पर ऐतबार था। 
करी थी पहले भी दग़ा कई लोगो से उसने। 
बस मेरी नज़र में ही वो वफ़ादार था। 
"कर लो खबर पक्की" सभी का ये ख्याल था।
 क्या सच में उस शख्स को मुझसे प्यार था?
 ज़हन कहता था अक्सर के कुछ ठीक नहीं है,,
पर दिल मेरा उसे बहला देता हर बार था,, 
कई दफा इरादा किया की हक़ीकत से हो वकीफ।
 पर तेरे खफा होने के खौफ से दिल जाता हार था।
 डर तो मुझे भी था भले दावा हज़ार था,,,
 क्या सच में उस शख्स को मुझसे प्यार था?
 खफा तो खुद से भी है के उस के जाने के बाद,,, 
क्यों तेरे लौट आने का इंतजार था? 
तेरे लिए बेशक ये खेल था जज्बातो का,, 
पर तेरे इस खेल में ही कोई रोया ज़ार ज़ार था।
 इस जवाब से रहे महरूम इस बात का मलाल था,,, 
क्या सच में उस शख्स को मुझसे प्यार था...?

रुख़्सान खान