काव्य-रचना
कर्ण
उसे पता था एक रोज सैय्या पर सो जाना है
मृत्यु आँख दिखाए फिर भी रोज रण मे जाना है l
पास उसके हथियारों का लम्बा चौड़ा जत्था है
फिर भी रण मे पहुँचा वो निहत्था है
भरे सभा मे गुरु द्रोण ने जाति पूछ,
खेला उसके संग खेला है
भरे सभा मे हुंकार भर साबित किया
की वह परशुराम का चेला है
केशव भी जानते थे,
महाभारत मे सबने निजी
हित मे बँधकर दाव खेला है
वीरता का प्रमाण देने
कर्ण आया एक अकेला है..
अंकित लिखित