काव्य-रचना

काव्य-रचना

  बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ  

बेटियां होती है घर आंगन की लक्ष्मी
लोग इसे क्यों नहीं समझते हैं परिश्रमी
बेटियों को लोग मारते हैं गर्भ में
बेटियों को क्यों नहीं समझते हैं गर्व से
बेटियां ही होती है घर की पत्नी
फिर भी दहेज के लिए मार देते हैं आदमी
बेटियां करती है देश की रक्षा
लोग बेटियों को क्यों नहीं देते हैं सुरक्षा
बेटीयां ही चला रही है संसार
तब भी बेटियों के ऊपर चल रहे हैं तलवार

बेटियां होती है बहन बेटियां होती है मां
बेटियां होती है पत्नी फिर भी बेटियों को 
क्यों नहीं समझते हैं देश के लक्ष्मी।

   सुनीता कुमारी