काव्य-रचना

काव्य-रचना

      मैं भी सांता क्लॉज     

क्रिसमस डे को सुबह सवेरे
मैं भी निकला बन ठन कर
सांता क्लॉज के कपड़े पहन
चलने लगा झूम झूम कर

पीठ पर लिया बड़ा सा थैला
खिलौने रख लिए भर भर कर
लंबी दाढ़ी पर हाथ फेरते
मैं चला बच्चों की डगर

पहुँचा क्रिसमस पार्टी में जब
बच्चों की तैयारी थी जमकर
मुझे देखते दौड़ पड़े सब
सांता सांता बोल बोल कर

मेहनत का हर काम किया पर
उपेक्षा मिलती थी मुझको दर दर
बच्चों ने सर आँखों पर बिठाया
खिले थे चेहरे उनके मुझे पाकर

मिले थे पैसे भूखे पेट भरने भर
खुशियाँ मिली थी दिल खोलकर
ऐसी ही खुशियाँ घर बाँटने को
निकला वहाँ से झोली समेटकर

शाम को जब मैं घर लौटा
उछल पड़े बच्चे मुझे देख कर
दौड़ कर मुझे गले लगाया
मेरे पापा मेरे सांता कह कर

खुशी मेरी मायूसी में तब बदली
थैला था खाली पहुँचते-पहुँचते घर
पोंछ कर मेरे आँसू बच्चों ने कहा
पापा आप हमारे सांता सालों भर

सभी प्यारे सांता की यही कहानी
खुशियाँ देते अपने गम भूल कर
बच्चों की एक हँसी की खातिर
नहीं देखते अपनी जेबें टटोलकर

 

     - आशीष कुमार