कथित बाबा संजय सिंह रच रहा क्या कोई साजिश ?

मंत्री जी के दबाव में आकर उसे बता दिया गया बीमार
बुधवार की सुबह कथित बाबा संजय सिंह को गोदौलिया क्षेत्र में देखा गया
एक निजी गेस्ट हाउस में संजय सिंह की आखिर किससे हुई मुलाकात
गंभीर बीमारी से था लाचार फिर भी हिस्ट्रीशीटर शैलेश सिंह के साथ ठेले पर लिया अल्पाहार
वाराणसी (रणभेरी सं.)। काशी की आध्यात्मिक गलियों में इन दिनों एक नया नाम चर्चा का विषय बना हुआ है...कथित बाबा संजय सिंह। दो दिन पहले तक जो व्यक्ति पुलिस की हिरासत में था, वह बुधवार की सुबह गोदौलिया इलाके में चाय की दुकान पर ठेले पर एक हिस्ट्रीशीटर शैलेश सिंह के साथ अल्पाहार लेते हुए देखा गया। जिसे बीमार बताकर पुलिस ने छोड़ दिया, वह पूरे होशोहवास में दिखा। वह गदौलिया क्षेत्र में अलसुबह निजी गेस्ट हाउस में कुछ रहस्यमय लोगों से मिलते देखा गया। इस पूरे घटनाक्रम ने न सिर्फ आम जनता बल्कि पुलिस, प्रशासन और मीडिया की नींद उड़ा दी है। सवाल उठता है क्या संजय सिंह किसी बड़ी साजिश का मोहरा है, या खुद ही कोई षड्यंत्र रच रहा है ? खास बात यह है कि संजय सिंह पर एक छात्रा ने मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का गंभीर आरोप लगाया है, जिसकी शिकायत शिवपुर थाने में दर्ज हुई थी। बाद में न्यायालय के आदेश पर विवेचना सारनाथ थाने को सौंप दी गई थी। विवेचना के दौरान ही सारनाथ पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया, लेकिन गिरफ्तारी के कुछ घंटों के भीतर ही संजय सिंह को गंभीर रूप से बीमार बताकर अस्पताल भेजा गया और वहां से वह जल्द ही बाहर भी आ गया। सूत्रों का दावा है कि एक वरिष्ठ मंत्री के दबाव में पुलिस ने न केवल कार्रवाई धीमी की बल्कि केस को भी हल्के में लेने लगी। अब वही संजय सिंह खुलेआम शहर में घूम रहा है, मुलाकातें कर रहा है, और लोगों के बीच राजनीतिक सरगर्मियां पैदा कर रहा है।
पीड़िता की मां स्वाति सिंह, पत्नी बबीता सिंह एवं हिस्ट्री शीटर शैलेश सिंह के साथ ठेले की दुकान पर नाश्ते के लिए बैठा बाबा संजय सिंह
बाबा संजय सिंह बीमार था या बचाया गया ?
बीते 16 मई को वाराणसी के सारनाथ थाना क्षेत्र में एक बड़ी हलचल हुई। पुलिस ने एक लंबे समय से शिकायतों के घेरे में रहे व्यक्ति, कथित बाबा संजय सिंह, को हिरासत में लिया। यह गिरफ्तारी एक छात्रा की शिकायत के आधार पर हुई थी, जिसमें उसने बाबा पर मानसिक और उत्पीड़न का आरोप लगाया था। गिरफ्तारी के कुछ ही घंटे बाद, सारा घटनाक्रम नाटकीय मोड़ लेने लगा। कुछ ही देर बाद पुलिस ने संजय सिंह को तबियत अस्वस्थ्य बताकर अस्पताल में भर्ती कर दिया। डॉक्टरों से जब पूछा गया कि बीमारी क्या थी, तो कोई स्पष्ट मेडिकल रिपोर्ट नहीं दी गई। अगली सुबह, पुलिस सूत्रों से जानकारी आई कि संजय सिंह को चिकित्सकीय कारणों से रिहा कर दिया गया। पुलिस का कहना था कि सिर्फ पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया था, जबकि पुलिस कभी सरकारी तो कभी निजी गाड़ी से दिनभर लेकर घूमती रही। जब इस पूरे मामले को लेकर पड़ताल की गई तो सूत्रों ने बताया कि पुलिस को उपर से बहुत दबाव था... इसलिए चाहकर भी कुछ नहीं कर पाए। यह ह्लऊपरह्व कौन है, यह खुलासा तो वक्त करेगा लेकिन यह तय है कि बाबा की गिरफ्तारी का मामला सिर्फ पुलिस कार्रवाई नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक शिथिलता की मिसाल बन चुका है। यदि संजय सिंह वाकई गंभीर बीमार था, तो तीन दिन बाद ही कैसे गोदौलिया की सड़कों पर दिखा ? यह गिरफ्तारी नहीं, बल्कि एक सोची-समझी स्क्रिप्ट थी, जिसमें पुलिस ने भूमिका निभाई, डॉक्टरों ने चुप्पी साधी और ऊपर से आए निदेर्शों ने कानून को मोम की तरह मरोड़ दिया।
मंत्री के हस्तक्षेप का दावा, सत्ता की छांव में बाबा ?
वाराणसी के पुलिस महकमे में हलचल तब और बढ़ गई जब बाबा संजय सिंह की गिरफ्तारी के कुछ घंटों के भीतर ही वरिष्ठ स्तर से दबाव आने की फुसफुसाहट तेज हो गई। सूत्रों के अनुसार, जिस दिन संजय सिंह को सारनाथ थाने में हिरासत में लिया गया, उसी दिन एक राज्य सरकार के मंत्री के निजी सचिव का फोन आया। कहा गया कि मामला गंभीर है, लेकिन बाबा को बीमार दिखाकर अस्पताल भेजा जाए। पूछताछ कर छोड़ दिया जाय लेकिन कोई सख्त कार्रवाई न हो। वहीं सूत्रों का यह भी कहना है कि बाबा की राजनीतिक पहुंच किसी एक दल तक सीमित नहीं है। पहले वह एक क्षेत्रीय पार्टी के विधायक के संपर्क में थे, लेकिन हाल के महीनों में उन्होंने एक केंद्रीय मंत्री के नजदीकी लोगों से संबंध बनाए हैं। गेस्ट हाउस में जिन लोगों से मुलाकात हुई वह भी कोई आम आदमी नहीं था। जानने वालों ने बताया कि बाबा संजय सिंह कोई साधु नहीं, बल्कि एक साजिशकर्ता है जिसे सत्ता की छांव में अपराध से बचाया जा रहा है। आज ये मामला दबा तो कल और बेटियाँ शिकार बनेंगी।
गोदौलिया में सुबह की हलचल और बाबा की रहस्यमय वापसी
बुधवार की सुबह, वाराणसी के सबसे व्यस्त और भीड़भाड़ वाले क्षेत्र गोदौलिया चौराहे पर एक अजीब दृश्य देखा गया। जहां आमतौर पर पर्यटकों, साधुओं और दुकानदारों की चहल-पहल रहती है, वहीं एक ठेले के पास खड़ा व्यक्ति कई लोगों की निगाहों में चुभ रहा था। वही था कथित बाबा संजय सिंह। जिसे तीन दिन पहले पुलिस ने छात्रा से उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किया था और गंभीर बीमार बताकर अस्पताल में भर्ती किया गया था, वह उसी शहर की सड़कों पर एकदम सामान्य अवस्था में घूम रहा था। इस पूरे दृश्य में सबसे रहस्यमय बात यह रही कि संजय सिंह अकेला नहीं था। उसके पास उजले रंग की स्कोडा गाड़ी थी, साथ में परिवार के दो सदस्य थे। यह वही स्कोडा गाड़ी थी जो गिरफ्तारी वाले दिन सारनाथ पुलिस के गाड़ी के पीछे पीछे चल रही थी। गाड़ी से उतरकर वह अपने परिवार के साथ एक संकड़ी गली में स्थित एक गेस्ट हाउस में जाता है और वहां घंटों मीटिंग कर वापस आ जाता है। इस तरह खुलेआम शहर में घूमना, ठेले पर खाना, गेस्ट हाउस में जाना ये सब संजय सिंह के बीमारी के झूठ की पोल खोलने के लिए काफी थे। सवाल यह नहीं है कि संजय सिंह गोदौलिया क्यों आया। सवाल यह है कि एक गंभीर मामले में नामजद आरोपी खुलेआम क्यों घूम रहा है ? पुलिस की गिरफ्तारी की प्रक्रिया कहां गई ? और जो मेडिकल रिपोर्ट उसे गंभीर रूप से बीमार बता रही थी, वह रिपोर्ट अब भी कितनी विश्वसनीय है ?
गेस्ट हाउस में हुई मुलाकात, क्या चल रहा है पर्दे के पीछे ?
बुधवार की सुबह गोदौलिया में कथित बाबा संजय सिंह एक निजी गेस्ट हाउस में प्रवेश करते देखा गया । यह कोई आम गेस्ट हाउस नहीं था, इसकी चौकसी, वाहनों की आवाजाही और अंदर-बाहर हो रहे लोगों की गतिविधियाँ साफ इशारा कर रही थीं कि कुछ बड़ा चल रहा है। संजय सिंह के साथ में दो अन्य महिला भी थे। सूत्रों के अनुसार, संजय सिंह ने गेस्ट हाउस में लगभग एक घंटे तक मुलाकात की। फिर एक घंटे के भीतर बाहर निकल गया।
क्या हो रही है केस को कमजोर करने की तैयारी?
छात्रा की शिकायत के बाद दर्ज की गई एफआईआर के बारे में अब तक कोई स्पष्टता नहीं है। आरोपी की गिरफ्तारी के बाद चार्जशीट दाखिल नहीं हुई, और उसे कोर्ट में पेश भी नहीं किया था गया। क्या जानबूझकर केस को धीमा किया जा रहा है ? क्या पीड़िता पर समझौते का दबाव डाला जा रहा है ? क्या गवाहों को प्रभावित किया जा रहा है ? इन सभी सवालों के बीच एक बात साफ है, बाबा संजय सिंह की गिरफ्तारी एक कानूनी कार्रवाई कम, और राजनीतिक नाटक ज्यादा बन गई है।
अस्पताल से सड़क तक... बाबा का नौटंकी या व्यवस्था का मजाक ?
कथित बाबा संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद उन्हें गंभीर बीमारी का हवाला देते हुए अस्पताल में भर्ती कराया गया। पुलिस का दावा था कि उनकी हालत इतनी खराब थी कि पूछताछ तक संभव नहीं। लेकिन महज 72 घंटे बाद वही संजय सिंह ठेले पर नाश्ता करते, गेस्ट हाउस में मीटिंग करते और आसानी से घूमते देखा गया। अब सवाल यह है कि क्या संजय सिंह वाकई बीमार था या यह सब एक पूर्व-निर्धारित ड्रामा था, जो प्रशासन और राजनीति की मिलीभगत से रचा गया? क्या अस्पताल में भर्ती करना मेडिकल जरूरत नहीं, राजनीतिक दबाव के कारण हुआ था ?
नाश्ते के बाद वापस अपने स्कोडा गाड़ी में बैठने जा रहा बाबा संजय सिंह
पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने भी लगाए हैं गंभीर आरोप
शिवपुर थाना क्षेत्र की एक नाबालिग छात्रा द्वारा कथित मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का मामला अब पुलिसिया कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है। छात्रा ने आरोप लगाया था कि तथाकथित बाबा संजय सिंह, उसकी पत्नी बबिता सिंह और दो बेटे निशांत व शीतांशु सिंह ने उसे झूठे यौन शोषण का आरोप लगाने के लिए दबाव डाला, और इंकार करने पर बुरी तरह पीटा।
मामले में शिवपुर थाना पुलिस की उदासीनता के चलते पीड़िता को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी, जिसके बाद मुकदमा दर्ज हुआ और जांच सारनाथ थाना प्रभारी विवेक कुमार त्रिपाठी को सौंपी गई। शुक्रवार सुबह पुलिस ने संजय सिंह को हिरासत में लिया, मगर उन्हें कोर्ट ले जाने के बजाय सीधे अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। रात में उन्हें डिस्चार्ज कर छोड़ दिया गया, जिससे पूरा मामला संदिग्ध हो गया। सवाल उठने लगे हैं कि क्या ये गिरफ्तारी की आड़ में रसूखदार बाबा को बचाने की साजिश थी ?
इस पूरे प्रकरण में अब पूर्व आईपीएस अधिकारी एवं आजाद अधिकार सेना के प्रमुख अमिताभ ठाकुर ने बड़ा खुलासा करते हुए पुलिस पर जीडी में हेराफेरी का आरोप लगाया है। ठाकुर ने दावा किया है कि उन्हें थाना सारनाथ की 16 मई की जीडी संख्या 19 प्राप्त हुई है, जिसमें संजय सिंह की गिरफ्तारी दर्ज है। मगर बाद में थाने से केवल पूछताछ का हवाला देकर उन्हें छोड़ दिया गया। ठाकुर ने इस कृत्य को गंभीर अपराध बताते हुए डीजीपी उत्तर प्रदेश और वाराणसी पुलिस कमिश्नर से उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या रसूखदारों के दबाव में पुलिस न्याय की बलि चढ़ा रही है? अब सवाल यही है कि क्या इस तरह की लचर पुलिसिया कार्रवाई से पीड़िता को न्याय मिलेगा, या फिर यह मामला भी रसूख और राजनीतिक दबाव में दबा दिया जाएगा ।
बीमारी थी फिर भी गोदौलिया पर टहल रहा था ?
यदि संजय सिंह सचमुच गंभीर रूप से बीमार था तो फिर बुधवार सुबह गोदौलिया में कैसे देखा गया ? कैसे वह पैदल चलते हुए ठेले पर नाश्ता करते देखा गया? और यह सब तब, जब पुलिस का दावा था कि वह अस्वस्थ हैं और चल-फिर नहीं सकता। क्या यह पूरा मेडिकल ड्रामा सिर्फ गिरफ्तारी को कमजोर करने, न्यायिक प्रक्रिया को टालने, और सार्वजनिक सहानुभूति बटोरने के लिए किया गया था ? यह घटना साबित करती है कि जब मामला किसी ताकतवर व्यक्ति का होता है, तब प्रशासनिक मशीनरी सिस्टम नहीं, सहयोगी बन जाती है। संजय सिंह का अस्पताल जाना, वीआईपी ट्रीटमेंट मिलना, रिपोर्ट में बीमारी दिखाना, और फिर खुलेआम घूमते दिखना... ये सब व्यवस्था का मजाक ही नहीं बल्कि उसकी बेबसी और भ्रष्ट संरचना का आईना हैं।
गोदौलिया के गली में गेस्ट हाउस की ओर जाते संजय सिंह
सवाल यह है कि आखिर यह बैठक किस लिए थी ?
इस पूरे घटनाक्रम पर स्थानीय पुलिस की चुप्पी सबसे बड़ा संकेत है। गेस्ट हाउस में बाबा की यह मुलाकातें संकेत देती हैं कि मामला सिर्फ एक छात्रा का आरोप नहीं है। इसके पीछे गहरे राजनीतिक और प्रशासनिक समीकरण हैं। गेस्ट हाउस अब किसी अपराध की जांच का हिस्सा नहीं, बल्कि ह्यक्राइसिस मैनेजमेंट सेंटर बन गया है। बाबा संजय सिंह की गिरफ्तारी, फिर अचानक बीमारी, अस्पताल में भर्ती और उसके बाद गेस्ट हाउस में गोपनीय मुलाकातें... इन सबने इस पूरे प्रकरण को एक सामान्य आपराधिक मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण का मामला बना दिया है। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि संजय सिंह को कोई अकेला व्यक्ति नहीं, बल्कि एक संगठित सिस्टम बचाने में जुटा है। सवाल उठता है...कौन है वो ताकतवर शख्स या समूह, जो उसे गिरफ़्तारी के बाद भी आजादी से घुमने, मिलने और छवि संभालने का मौका दे रहा है ? कहीं कोई गहरी साजिश तो नहीं रची जा रही ?
सारनाथ पुलिस के गाड़ी के पीछे गिरफ्तारी वाले दिन यही गाड़ी घूमती रही
सवालों की अदालत... जवाब कौन देगा ?
- अगर बाबा सच में निर्दोष हैं, तो पूरी प्रक्रिया पारदर्शी क्यों नहीं है?
- अगर वो बीमार थे, तो सड़कों पर नाश्ता करते कैसे दिखे ?
- अगर छात्रा झूठ बोल रही है, तो अब तक उसे सजा क्यों नहीं
मिली ? - और अगर वो सच कह रही है, तो अब तक न्याय क्यों नहीं मिला ?