काव्य-रचना

काव्य-रचना

  तेरे रूप अनेक हैं मैया   

तेरे रूप अनेक हैं मैया
हर रूप में हमको भाती हो
नवरात्रि में नौ दुर्गा रुप में
हम पर ममता लुटाती हो

तीनो लोक हैं काँपे तुमसे
जब शक्ति रूप धरती हो
चण्‍ड-मुण्‍ड और ऐसे कितने
महिषासुर मर्दन करती हो

तुम बनती हो लक्ष्मी माँ
सारा संसार चलाती हो
धन की वर्षा करती जब
कुटिया भी महल बनाती हो

जब बनती हो वीणापाणि
ज्ञान का दीप जलाती हो
हम जैसे भूले-भटकों को
मंजिल तक पहुँचाती हो

बन कर तुम अन्नपूर्णा माँ
भूखों का पेट भरती हो
पशु पक्षी और मानव जन में
कोई भेद ना करती हो

ममता का प्रतिशोध जब लेती
कालरात्रि बन जाती हो
थर थर काँपे देवता दानव
रौद्र रूप दिखलाती हो

उद्धार करना हो जब भक्तों का
स्वर्ग छोड़ चली आती हो
पतित पावनी हे माँ गंगे
बैकुण्‍ठ भी पहुँचाती हो

कोई परीक्षा लेवे मैया
ज्वाला बनकर दिखलाती हो
बादशाह भी नतमस्तक हो गए
सोने को भी झूठलाती हो

है कोई ढूँढता मंदिर मंदिर
पहाड़ों पर भी मिल जाती हो
सच्चे मन से कोई ढूँढे
अंतर्मन में मिल जाती हो

आशीष कुमार