काव्य-रचना

काव्य-रचना


         भक्त और भांटों           

भक्त और भांटों में जमकर हाथापाई चल रही है
इल्जाम की अंजाम की लीपापुताई चल रही है ।

ले रही करवट सियासत कुछ लोग ऐसा मानते हैं
सच तो है कि बस सियासी बेहयाई चल रही है ।

जिसकी लाठी भैंस उसकी ये कहावत है पुरानी
पर यहां लाठी बिना ही मन की मिठाई चल रही है ।

बहुत दिनों से जो दबी थीं वो खुल रही हैं फाइलें
धूल के मोटी परत की अब सफाई चल रही है ।

जो करोड़ों हैं डकारे अब लें रहे हैं हिचकियां
उनके पीछे पीछे ईडी सीबीआई चल रही है ।

किसको समझें दूध का धुला हुआ इस दौर में
पेंग पढ़कर खूब वफा का बेवफाई चल रही है।

धुर विरोधी में गले मिलने की जमकर होड़ है
मुंह में बर्फी पड़ी मन में खटाई चल रही है ।

जिसे रौंद कर पैरों तले हैं बड़े मगरूर वो 
उस लहुलुहान लोकतंत्र की दुहाई चल रही है ।

   - रत्नेश तिवारी, "चंचल"