काव्य-रचना
हम वहां भी जाएंगे
हम वहाँ भी जायेंगे
जहाँ हम कभी नहीं जायेंगे
अपनी आखिरी उड़ान भरने से पहले,
नीम की डाली पर बैठी चिड़िया के पास,
आकाशगंगा में आवारागर्दी करते किसी नक्षत्र के साथ,
अज्ञात बोली में उचारे गये मंत्र की छाया में
हम जायेंगे स्वयं नहीं
हमें दुखी करेगा किसी प्राचीन विलाप का भटक रहा अंश,
हम आराधना करेंगे
मंदिर से निकाले गये
किसी अज्ञातकुलशील विवेक की--
अरुणोदय में कई गयी किसी आशा के किरण में पूजा के आरती की
जिससे हमें गर्व के साथ विस्वास हो,,
कि मेरे विवेक का विकास हो--
हम थककर बैठ जायेंगेदूसरों के लिए की गयी
शुभकामनाओं और मनौतियों की छाँह में-
हम वहाँ भी जाएंगे ,
हम वहाँ भी जाएंगे, जो हमे कभी नही चाहेंगे
जहाँ हमे हीन भावना से देखा जाए,,
जहाँ हमे नाही इज्जत की लालसा हो
औऱ ना ही कुछ की अभिलाषा हो,,
हम बिखर जायेंगे पंखों की तरह
पंखुरियों की तरह पंत्तियों और शब्दों की तरह-
हम वहाँ भी जायेंगे जहाँ हम कभी नहीं जायेंगे।
विवेकपाण्डेय