होलिका दहन आज: शीतला घाट पर जलाई जाती है पहली होलिका, कल उड़ेंगे रंग और गुलाल
- शिव की नगरी में जीवित हैं प्राचीन परंपराओं की होलिकाएं,
- आज भद्रा समाप्ति के बाद रात 12.57 बजे से होलिका दहन
- शहर के 1642 स्थानों पर सजी होलिका
वाराणसी (रणभेरी): काशी की होली ही नहीं होलिकाएं भी देश भर में अनूठी हैं। रंगभरी में जहां भगवान शिव राजराजेश्वर स्वरूप में भक्तों संग होली खेलते हैं तो वहीं दूसरे दिन भूतभावन अपने गणों संग चिता भस्म की होली खेलकर राग और विराग के अंतर को मिटाते हैं। बात जब होलिका की होती है तो यहां 14वीं शताब्दी से भी अधिक प्राचीन होलिकाओं का इतिहास मिलता है। काशी में कई होलिकाएं ऐसी भी हैं जो कई सदियों से जलती आ रही हैं। बनारस में होलिकाएं गंगा घाट से लेकर वरुणा पार तक अपनी प्राचीनता के साथ आज भी उसी अंदाज में जलाई जाती हैं। शीतलाघाट की होलिका जहां गंगा से भी प्राचीन मानी जाती है वहीं कचौड़ी गली की होलिका 14वीं शताब्दी से जलती आ रही है। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 17 मार्च को रात 1 बजे के बाद शुरू होगा। वहीं काशी में होली 18 मार्च को और दूसरी जगहों पर होली 19 मार्च को मनाई जाएगी। ये बातें काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के ज्योतिषाचार्य प्रोफेसर सुभाष पांडेय ने कही। उन्होंने कहा कि इस साल होली अत्यंत शुभ फल देने वाली है। बताया कि रात्रि 1 बजे के तक भद्रा का काल है। इसमें होलिका दहन नहीं होता। वहीं जहां होली 19 मार्च को मनाई जाएगी, वहां पर 18 मार्च को कभी भी होलिका का दहन किया जा सकता है। बताते हैं कि होलिका दहन हमेशा फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में भद्रा रहित मुहूर्त में ही किया जाना चाहिए। अगर प्रदोष काल में भद्रा है, तो भद्रा समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन हो सकती है। भद्रा को ज्योतिष शास्त्र में अशुभ माना गया है। इस दौरान शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है।
इको फ्रेंडली हुई होलिका
वाराणसी में इस बार होलिका इको फ्रेंडली हो गई है। लकड़ी, कूड़ा-करकट और पत्ते छोड़कर इस बार गोबर की कंडी से होलिका जलाई जाएगी। होलिका की रात को धुआं रहित करने का यह प्रयास बागबरियार सिंह और हरिश्चंद्र घाट तिराहे पर किया गया है। वहीं, बीएचयू गेट के पास मालवीय मूर्ति के ठीक सामने भी गोहरी को होलिका को आकार दे दिया गया है। इस बार आसपास के हर नागरिक ने रीति के मुताबिक पांच-पांच कंडे होलिका दहन के लिए इकट्टा किया है। गोहरी की होलिका और उनकी गोद में भक्त प्रह्लाद बैठे दिखाए गए हैं। इस साल हर तीसरी होलिका पर भक्त प्रह्लाद की प्रतिमा रखी गई है। शिल्पी गोपाल डे ने बताया इस छोटी बड़ी मिला कर 34 और शिल्पी शंकर दास ने प्रह्लाद की 28 प्रतिमाएं की है।
शहर के विभिन्न क्षेत्रों और चौराहों पर सजी होलिका, तैयारियां पूरी
काशी में आज होलिका दहन के लिए शहर के विभिन्न क्षेत्रों में और चौराहों पर होलिका सज गई हैं। वहीं इस बार कई जगहों पर लकड़ी के बजाय गोबर के उपलों की होलिका भी सजी दिख रही है। अस्सी घाट पर गाय के गोबर के उपलों की होलिका सजाई गई है। पौराणिक मान्यताएं के अनुसार, पर्यावरण की दृष्टि से भी ये गोबर से बने उपले काफी उपयोगी हैं। जब इन उपलों को आग में जलाया जाता है तो इससे पर्यावरण में व्याप्त बहुत से जीवाणु और कीटाणु मर जाते हैं और हमारा पर्यावरण काफी हद तक प्रदूषण रहित हो जाता है।
लोग होलिका में रबड़ के टायर, प्लास्टिक भी डाल देते हैं, जिससे पर्यावरण के साथ स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचता है। होलिका पर लोगों को गोबर के उपलों का प्रयोग करना चाहिये, जो हर तरह से लाभकारी है।
होलिका दहन के पहले सड़क पर उतरी कमिश्नरेट पुलिस
होलिका दहन के एक दिन पहले बुधवार देर शाम कमिश्नरेट पुलिस क्षेत्र में उतरी। मुख्य सड़कों के साथ ही गली-मुहल्लों, भीतर के बाजारों में भ्रमण कर शांति पूर्वक त्यौहार मनाने की अपील की। इस दौरान एसीपी दशाश्वमेध अवधेश पांडेय ने लक्सा और मदनपुरा में जाम का कारण बने 25 वाहनों का चालान कराया। चौक क्षेत्र में इंस्पेक्टर शिवाकांत मिश्रा ने मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों, ठठेरी बाजार, सराफा बाजार, दालमंडी, हड़हा सराय, पियरी क्षेत्र, भूलेटन में लाउड हेलर पर अनाउंसमेंट किया। रूट मार्च कर शांति और सौहार्द से पर्व मनाने की अपील की गई। रुट मार्च के दौरान पुलिस ने यह भी हिदायत दी की यदि होली पर्व के दिन कोई भी किसी प्रकार से कानून व्यवस्था बिगाड़ने का प्रयास करेगा तो उसके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।