काव्य रचना

काव्य रचना

         है समय बडा़ बलवान           

हो नवयुवक आज तुम तो कल को वृद्ध भी होगे, 
है यह बात अटल सत्य हे मानव! कब समझोगे? 
गर्भ में लेकर जो माँ तुमको 
दिन -रात एक कर जाती थी, 
बिन  सोए-  खाए - पिये
कई दिन तक रह जाती थी, 
था समय जब उनका तो 
तुम जैसे चार - चार को पाला , 
आज पडी़ लाचार है देखो 
खुद से मुंह तक नहीं जाता निवाला , 
 बड़ी बिडम्बना है समय का
 इस बात को तुम लो जान, 
है समय बडा़ बलवान ,
है समय बडा़ बलवान।

 जो पिता जवानी में रहा 
कुटुंब  के लिए सदैव गतिमान, 
जिसके  दृढ़ शक्ति के आगे 
दम तोड़ दे शक्तिमान , 
जो था कभी सबके असंख्य समस्या
 का  एकमात्र अकेला समाधान , 
आज है उसको इतनी पीड़ा 
स्वयं कहता है उठा लिजिए भगवान , 
 समय का  पहिया नहीं है स्थिर
 इस बात को तुम लो मान , 
है समय बडा बलवान, 
है समय बडा़ बलवान। 
जिस वृद्ध माता- पिता को
तुम आज ठुकरा रहे हो, 
उनसे ही है अस्तित्व तुम्हारा 
यह बात क्यों भूला रहे हो, 
न दिखाओ तुम उन्हें आंख 
तुम्हारा भी ऐसा ही दिन आयेगा , 
जिसे तुम संवारने में लगे  हो 
तुम्हारा वही संतान तुम्हें भी ठुकरायेगा, 
अगर चाहते हो तुम्हें भी 
वृद्धावस्था में मिले सेवा -सम्मान , 
तो आज ही इस ईश्वर रुपी
माता- पिता को लो पहचान, 
है समय बडा़ बलवान, 
है समय बडा़ बलवान।
 

 हेमराज वर्मा (शुभम्)