नेता, अफ़सर और दलाल...सबने बिकवा दिया अस्पताल

नेता, अफ़सर और दलाल...सबने  बिकवा दिया अस्पताल

 

  • जिस जगह था गरीबों का अस्पताल वहां बन गया आलिशान होटल
  • आखिर किसके अनुमति से गंगा किनारे बन गया आलिशान होटल
  • पूर्व पार्षद, वर्त्तमान विधायक और वीडीए अफसरों के संरक्षण में रखी गई होटल की नींव
  • एक तरफ जनप्रतिनिधि जनता को करते रहे गुमराह, दूसरे तरफ बिक गया पक्के मोहल्ले का इकलौता अस्पताल 
  • सिर्फ आम जनता के लिए होते है सारे नियम-कानून, धन्नासेठों के आगे बेचारा बन जाते हैं भ्रष्ट अफ़सर 

अजीत सिंह 

वाराणसी (रणभेरी सं.)। गंगा किनारे बसे इस शहर ने न जाने कितने दौर देखे हैं, लेकिन इस बार जो हुआ, उसने काशी की आत्मा को झकझोर दिया है। जिसे "गरीबों का अस्पताल" कहा जाता था, वह अब एक आलीशान होटल में तब्दील हो चुका है। कहने को यह अस्पताल जनता की सेवा के लिए दान में मिला था, लेकिन कुछ नेताओं, दलालों और अधिकारियों की मिलीभगत ने इसे निजी स्वार्थ का ज़रिया बना दिया। वाराणसी नगर निगम के कोतवाली जोन अंतर्गत रामघाट मोहल्ले में स्थापित मेहता अस्पताल कभी इस शहर की सामाजिक आत्मा का प्रतीक हुआ करता था। दानदाता ने इसे गरीबों की सेवा के लिए समर्पित किया था। 1990 के दशक में इस अस्पताल में मुफ्त इलाज होता था। अस्पताल के ट्रस्ट ने यह वसीयत में स्पष्ट किया था कि यह ज़मीन और अस्पताल सिर्फ ग़रीबों की सेवा के लिए रहेगा, किसी भी हालत में इसका व्यावसायिक प्रयोग नहीं होगा। लेकिन बीते एक दशक में धीरे-धीरे यहां इलाज कम और साजिशें ज़्यादा शुरू हो गईं। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, अस्पताल की जमीन पर नज़र गड़ाने वाले कुछ रियल एस्टेट माफिया और होटल कारोबारी वर्षों से सक्रिय थे। गंगा किनारे ऐसी ज़मीन मिलना असंभव जैसा है, लेकिन उन्हें रास्ता दिखाया एक प्रभावशाली स्थानीय विधायक और वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के अधिकारियों ने । होटल निर्माण कर्ताओं और वीडीए अफसरों के बीच की कड़ी बनी इलाके की पूर्व पार्षद एवं वीडीए बोर्ड की सदस्य श्रीमती साधना बेदान्ती।  सबसे पहले साज़िश रचकर अस्पताल को निष्क्रिय घोषित किया गया। इसके बाद अचानक ट्रस्ट के नाम पर दस्तावेज़ों में फेरबदल किया गया और इस ऐतिहासिक एवं प्राचीन इमारत का अवैध तरीके से सौदा कर दिया गया जिसके बाद वीडीए अफसरों को मिलाकर खरीददारों द्वारा ने अस्पताल की इमारत को अन्दर अन्दर ही गिरवाकर निर्माण कार्य शुरू करा दिया गया।

किसने दी गंगा किनारे होटल बनाने की अनुमति ?

उत्तर प्रदेश गंगा नदी अधिनियम 2016 के अनुसार, गंगा नदी से 200 मीटर के भीतर किसी भी प्रकार के व्यावसायिक निर्माण की सख्त मनाही है। यह कानून गंगा की पवित्रता, पर्यावरणीय संतुलन और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए बनाया गया था। लेकिन इस मामले में सभी नियमों को धता बताकर मनमानी की गई। पड़ताल में सामने आया कि वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के तत्कालीन उपाध्यक्ष और ज़ोनल अधिकारी ने पहले मरम्मत के नाम पर गलत अनुमति दी, ताकि कानूनी प्रक्रिया का दिखावा किया जा सके। इसके बाद उसी अनुमति को रिडेवलपमेंट यानी पुनर्विकास में बदल दिया गया, जिससे बहुमंजिला व्यावसायिक इमारत का निर्माण संभव हो सके। यह पूरा खेल नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए किया गया, जिसमें प्रशासनिक मिलीभगत साफ तौर पर नजर आती है। गंगा किनारे इस तरह का अवैध निर्माण न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत के साथ भी गंभीर खिलवाड़ है। जनता के उम्मीदों को कुचलने वाली इस योजना में शामिल हुए नेता, दलाल और वीडीए के जिम्मेदार अफ़सर ।

वीडीए का दोहरा चरित्र...गरीब के लिए डंडा, अमीर के लिए दरवाज़ा खुला

एक ओर वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) गली-गली में घूमकर, गंगा तट के पक्के मोहल्लों में, फूटपाथी दुकानों और सड़क किनारे ठेले वालों पर रोज कार्रवाई करता है। गरीबों के आशियाने बिना किसी रहम के बुलडोजर से ढहा दिए जाते हैं। हर साल सैकड़ों परिवार उजड़ते हैं, उन्हें दोबारा बसाने की कोई योजना नहीं होती। लेकिन जब बात अमीरों और रसूखदारों की आती है, तो नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण है मेहता अस्पताल है, जो कभी गरीबों के इलाज के लिए बना था, लेकिन आज वहां आलीशान होटल खड़ा है। न कोई जांच, न कोई कार्रवाई, सब चुप हैं। आखिर कैसे गंगा किनारे ऐसा निर्माण हो गया, जब कानून इसकी इजाजत नहीं देता ? जनता अब सवाल पूछ रही है—क्या यही है अच्छे दिन ? क्या अच्छे दिन सिर्फ बड़े लोगों की ज़िंदगी मी आने का नारा था, यह विकास तो गरीबों को उजाड़ कर अमीरों को बसाने वाली योजना का नाम है ? क्या यही है शासन और प्रशासन की निष्पक्षता ? क्या यही है सबका साथ सबका विकास ?

जनप्रतिनिधियों ने भी जनता से किया छल

स्थानीय नेताओं ने जनता को कई बार भरोसा दिलाया कि मेहता अस्पताल बंद नहीं होगा। कहा गया था कि इसे एक आधुनिक मॉडल चिकित्सा केंद्र में तब्दील किया जाएगा, जहां गरीबों को बेहतर इलाज मिलेगा। लेकिन हकीकत इससे उलट निकली। नेताओं की बातों के पीछे एक गहरी साजिश चल रही थी, जिसमें दलाल, प्राधिकरण के अधिकारी और धन्नासेठ शामिल थे। धीरे-धीरे अस्पताल की सेवाएं बंद कर दी गईं और आखिरकार उसकी जमीन पर एक आलीशान होटल खड़ा कर दिया गया। सबसे हैरानी की बात यह रही कि कोई भी जनप्रतिनिधि इसके खिलाफ सामने नहीं आया। उनकी चुप्पी बताती है कि इस साजिश में उनकी भी भूमिका थी। साफ है कि जनता से किए गए वादे सिर्फ दिखावा थे। असली सौदा तो पहले ही तय हो चुका था। स्वास्थ्य नहीं, मुनाफा चाहिए था। और यही मुनाफाखोरी आज ‘विकास’ का नया नाम बन गई है।

गंगा के किनारे खड़ा है यह भ्रष्टाचार का स्मारक

मेहता अस्पताल का बिक जाना केवल एक अस्पताल की जमीन के हस्तांतरण की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक पूरे तंत्र के नैतिक पतन और संवैधानिक मूल्यांकन के पतन की दास्तान है। यह घटना इस बात का प्रतीक बन गई है कि जब जनप्रतिनिधि, सरकारी अधिकारी और पूंजीपति एकजुट होकर किसी सौदे को अंजाम देते हैं, तो समाज की सबसे कमजोर परत गरीब और वंचित को इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। वाराणसी के गंगा किनारे बना मेहता अस्पताल वर्षों से उन मरीजों के लिए आशा की एक किरण था जो निजी अस्पतालों की फीस नहीं चुका सकते थे। इस अस्पताल की जमीन दान में मिली थी,इसमे एक बड़ा हिस्सा नजूल की जमीन का भी शामिल है,जिसे गरीबों की सेवा के उद्देश्य से दिया गया था। लेकिन दलालों और भ्रष्ट अफसरशाही के गठजोड़ ने इस पुण्यस्थल को एक व्यावसायिक होटल में बदल दिया। न नक्शा वैध, न अनुमति स्पष्ट, फिर भी निर्माण हुआ, होटल खड़ा हुआ और सिस्टम मौन रहा। यह केवल एक संपत्ति की लूट नहीं, बल्कि जनता के विश्वास की हत्या है। उस जनता का, जो चुनाव के समय अपने नेताओं पर भरोसा करती है। उस सिस्टम का, जो संविधान की शपथ लेता है, और उस समाज का, जो सेवा को सर्वोच्च मूल्य मानता है। सबसे ज्यादा नुकसान उस गरीब का हुआ, जिसके पास अब इलाज के लिए न अस्पताल बचा, न कोई उम्मीद।
अब सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में गंगा के किनारे हुए इस खुलेआम भ्रष्टाचार पर कोई कार्रवाई होगी ? क्या यह मामला जांच एजेंसियों तक पहुंचेगा, या ‘विकास’ की आड़ में यह घोटाला भी दफ्न कर दिया जाएगा ? 

मुख्यमंत्री की बातें केवल भाषण तक सिमटी

लूट का आधिकारिक जरिया बन गया वाराणसी विकास प्राधिकरण। शहर मे जगह जगह मानक के विपरित जाकर लोग इमारते बनवा रहे है पर इनके कान मे जूँ तक नहीं रेंगती। सत्ता मे शामिल भ्रष्टाचारि नेता और भ्रष्टाचार अधिकारियों ने वाराणसी के अस्तित्व को मिट्टी मे मिलाने की कसम खा ली है। ये अब अब मानक नहीं देखते ये अब देखते है कि अगर आप सत्ता से जुड़े है या आप इनको रिश्वत दे रहे है तो ये आपके लिए मानक के विपरित जा कर भी कार्य करेंगे। इनके भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा उदहारण है शहर मे धड़ल्ले से खुल रहे अवैध होटल, जिनमे से अधिकांश होटल के पास इतना अप्रूवल नहीं है। यू तो मुख्यमंत्री जी भ्रष्टाचार का विरोध करते है पर वाराणसी विकास प्राधिकरण की कार्य शैली को देखकर यही लगता है कि मुख्यमंत्री जी की बातें केवल भाषण तक सिमट के रह गया है। इनका भ्रष्टाचारी रवैया देखकर यही लगता है कि इनको अब वाराणसी विकास प्राधिकरण के जगह वाराणसी विनाश प्राधिकरण नाम दे देना चाहिए।

रघुकुल यथार्थ छात्र नेता, आम आदमी पार्टी

भ्रष्टाचार का स्थायी मुख्यालय बना वीडीए

वाराणसी विकास प्राधिकरण अब भ्रष्टाचार का स्थायी मुख्यालय बन चुका है, और इसकी कमान भाजपा के संरक्षण में चल रही है। अफसर, भू-माफिया और सत्ताधारी नेता मिलकर ज़मीनों की खुलेआम लूट मचा रहे हैं। यहां बिना घूस के कोई फाइल नहीं सरकती, और आदित्यनाथ सरकार आंखें मूंदे सिर्फ कमीशन गिन रही है। जिस शहर को प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र कहा जाता है, वहां विकास नहीं...भाजपा प्रायोजित लूटतंत्र फल-फूल रहा है। डबल इंजन सरकार दरअसल डबल भ्रष्टाचार का इंजन बन चुकी है।

विवेक गुप्ता, आम आदमी पार्टी

आंख मूंदे बैठा है जिला प्रशासन

वाराणसी विकास प्राधिकरण अब भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुका है। आम नागरिकों का आरोप है कि बिना रिश्वत दिए भवन नक्शा पास कराना असंभव है। बाबू से लेकर अवर अभियंता तक की मिलीभगत से पूरे शहर में अवैध निर्माण धड़ल्ले से हो रहा है। हालत ये है कि कई नामी अस्पताल भी बिना मानचित्र स्वीकृति के बहुमंज़िला भवन खड़े कर चुके हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर प्रशासन आंख मूंदे बैठा है।

अर्पित गिरी, आम आदमी पार्टी 

अधिकारी-कर्मचारी पूरी तरह बेलगाम

वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के अधिकारी और कर्मचारी पूरी तरह बेलगाम हो चुके हैं। सत्ता के संरक्षण में यह गिरोह खुल्लमखुल्ला लूट और भ्रष्टाचार में लगा है। इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि भवन का नक्शा स्वीकृत है या नहीं, बस मोटी घूस और नोटों की गड्डी चाहिए। आम जनता की जेब काटने की खुली छूट इन भ्रष्ट अधिकारियों को मिली हुई है। शासन की छाया में इनका मनमाना शासन चल रहा है।

एड. जितेंद्र यादव मलिक, जिलाध्यक्ष समाजवादी पार्टी,बाबा साहब अम्बेडकर वाहिनी वाराणसी

अवैध निर्माण वीडीए का एक अतिरिक्त रोजगार

शहर के सभी जोन में अवैध निर्माण होते रहे। वीडीए के जोनल अधिकारियों ने केवल फाइलों फाइलों से खानापूर्ति की खुद को सुरक्षित करने के लिए भी फाइलों में सारी कार्रवाई की गई क्योंकि यदि मामला खुले और पूछा जाए कि क्या एक्शन लिया तो पूरी फाइल पेश कर दी जाए। शहर के बीचोबीच बड़ी बड़ी इमारतें तन गई।गंगा, वरुणा और असि नदी के आसपास भी निर्माणों की बाढ़ आ गई। वीडीए केवल फाइलों में ही खेल करता है। आवासीय को भी यदि छोड़ दिया जाए तो इनमें आधे से ज्यादा निर्माण तो व्यावसायिक हैं। भवन बनाने वालों ने बेसमेंट को भी बेच दिया कबीर नगर मानस नगर दुर्गाकुंड रोहित नगर, ब्रह्मनगर आदि इलाकों में छह फीट के गलियों के अंदर मल्टी स्टोरी अपार्टमेंट बनाए गए। अगर आग लग जाए या किसी के बीमार होने पर फायर ब्रिगेड की गाड़ी या एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाएगी। इतनी तंग गलियों में अपार्टमेंट होने से सीवर के जाम की भी समस्या होती है। इस तरह से व्यावसायिक बिल्डिंगों को रिहायशी दिखा कर नगर निगम के टैक्स की भी चोरी की जाती है जिससे शहर का विकास नहीं हो पाता। आजकल गली-गली में होमस्टे रेस्टोरेंट और ओयो की तर्ज पर होटल खोल दिए गए हैं जिसमें केबिन बनाकर अवैध कृत होते हैं और अपराधी भी यहां शरण लेते हैं। दुर्गाकुंड एवं कबीर नगर क्षेत्र में वारजा और बरांडा निकालकर आगे बढ़ाकर बना लेते हैं जिसमें वीडिये कोई कार्रवाई नहीं करता जिससे सड़क सकड़ी होती जाती है और जनहानि होती रहती है। अवैध निर्माण विकास प्राधिकरण का एक अतिरिक्त रोजगार का साधन बन गया है। अगर शिकायत की भी जाए तो आते हैं सील करते हैं फिर मोटी रकम लेकर कागजी कार्रवाई को पूरा करके अवैध निर्माण का परमिशन दे देते हैं।

अनीशा चटर्जी, सोशल एक्टिविस्ट

रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए....सरकार के राजस्व में सेंध लगाने वाले अफसरों का क्या होगा हुजूर !