काव्य रचना

काव्य रचना

    "काले मेघ"     

बरखा बिन सावन सुना
बदरी बिन बादल सुना 

हरियाली सुख रही पेड़ों पर
पतझड़ से पुष्प झरते डाली पर

सावन में सूर्य उगलता सोना
तपती धरती अम्बर तपता

खेत और खलिहान है सूखे
सखी सहेली बाग और झूले

सुने सूखे तपते सारे
काले मेघा पानी लाओ
उमड़ घुमड़ कर धूम मचाओ....

प्रीति जायसवाल