ठगी का नया धंधा ... ‘डिजिटल अरेस्ट’
वाराणसी (रणभेरी सं.)। साइबर ठगों ने लोगों को अपने चंगुल में फंसाने के लिए इन दिनों एक और नया तरीका अपनाया है, जिसका नाम है ह्यडिजिटल अरेस्टह् । इसमें ठगी करने वाले लोगों को फंसाने के लिए हब्लैकमेलिंगह् या भयादोहन का खेल खेलते हैं और लोग उनके जाल में फंस जाते हैं। इसमें ठग पुलिस, सीबीआइ या आबकारी अधिकारी बनकर लोगों को फोन करते और डराकर उन्हें घर पर ही बंधक बना लेते हैं। सबसे पहले, ठग फोन करके बताते हैं कि आपका आधार कार्ड, सिम कार्ड, बैंक खाता आदि का उपयोग किसी गैरकानूनी काम के लिए हुआ है। यहां से लोगों को डराने-धमकाने का खेल शुरू होता और फिर ठगी का लक्ष्य पूरा किया जाता है। ठग ह्वीडियो कालह् में अपनी तस्वीर के पीछे के दृश्य को किसी पुलिस स्टेशन की तरह बना लेते हैं, जिसे देखकर पीड़ित डर कर उनकी बातों में आ जाता है। ठग जमानत की बात कहकर लोगों से ठगी शुरू करते हैं। वे व्यक्ति को ह्यवीडियो कालह् से न तो हटने देते हैं और न ही किसी को फोन करने देते हैं।
ताजा मामला वाराणसी का है जहां 67 वर्षीय वृद्ध महिला को डिजिटल अरेस्ट कर साइबर अपराधियों ने 32.5 लाख रुपए लूट लिए। महिला को साइबर अपराधियों ने पुलिस की वर्दी पहनकर वीडियो काल की और फेक ऋकफ कॉपी भी भेजी। जिसके बाद महिला को बताया कि उसके नाम से एक परसल सिंगापुर गया है जिसमें नशीला पदार्थ मिला है। गिरफ्तारी का डर दिखाकर महिला को 24 घंटे डिजिटल अरेस्ट रखा गया। फिलहाल महिला की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस की जांच में सामने आया है कि पैसा देश भर के 200 खातों में भेजा जा चुका है। फिलहाल मामले की जांच की जा रही है।
भुक्तभोगी महिला नीना ने अपनी तहरीर में बताया की 15 अक्टूबर को उनके मोबाइल नंबर पर काल आयी। फोन व्हाट्सएप्प पर वीडियो काल थी। उधर बैठा आदमी पुलिस की वर्दी में था। उसने खुद को मुंबई के अंधेरी पुलिस स्टेशन का अधिकारी बताया। उसने बोला आप के नाम से एक कूरियर सिंगापुर में पकड़ा गया है। जिसमें ड्रग्स, फर्जी पासपोर्ट और एटीएम कार्ड है। सुरक्षा एजेंसियों ने उसकी जांच शुरू की है। 67 वर्षीय महिला नीना चंद्रा रेजिडेंसी में अकेले रहती हैं। उन्होंने आगे बताया- इसके बाद उस व्यक्ति ने बताया कि मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी वारण्ट जारी किया गया है। और दो दिन में आप को मुंबई आना होगा। इसके बाद उसने फेक ऋकफ कॉपी भी फोन पर भेजी। इसके बाद सीबीआई अधिकारी से बात करने की बात कहकर उसने फोन काल अनिल यादव नामक व्यक्ति को ट्रांसफर कर दी। महिला ने आगे बताया की उक्त व्यक्ति ने सीबीआई आॅफिसर बनकर बात की और कहा कि किसी को इस विषय में कुछ नहीं बताना है। यदि बताया तो जान को खतरा हो सकता है। गिरफ्तारी से बचने के लिए आप को संपत्ति की जानकारी देनी होगी। जिसके बाद मैंने फ्लैट, कार और बैंक में जमा 32 लाख 40 हजार रुपए के बारे में भी बता दिया। महिला को उक्त व्यक्ति ने डराया कि जितने पैसे अकॉउन्ट में हैं सब हमारे दिए गए खाते में आरटीजीएस कर दो कोई गिरफ्तारी नहीं होगी। जांच एक बाद पैसे वापस मिल जाएंगे। इसपर 16 अक्टूबर की सुबह बैंक जाकर आरटीजीएस किया पर घर पहुँचने पर वो फेल हो गया। इसपर उसने बहुत डांटा और दोबारा करवाया। फोन पर बात कर रहे अधिकारी ने आश्वासन दिया था कि पैसे 24 घंटे में वापस आ जायेंगे पर ऐसा नहीं हुआ। पैसे वापस नहीं आने पर नीना ने अपने नागपुर में रह रहे बेटे से सम्पर्क किया तो उन्हें साइबर ठगी का पता चला। इसपर पुलिस से सम्पर्क किया गया। साइबर पुलिस की मानें तो ऋकफ दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है। प्रारंभिक जांच के अनुसार पैसा यस बैंक की तिनसुकिया शाखा में ट्रांसफर कराया गया था। जहां से इसे 200 अलग-अलग खातों में अलग-अलग अमाउंट ट्रांसफर कर दिया गया। जांच की जा रही है। जल्द ही अपराधियों को पकड़ लिया जाएगा।
क्या है डिजिटल अरेस्ट ?
इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि नई तकनीक ने काम को आसान बना दिया है। लेकिन इसने साइबर अपराध को भी जन्म दिया है। साइबर अपराधी इन्हीं तकनीकों के जरिये नए-नए हथकंडे अपनाकर लोगों को शिकार बना रहे हैं और उनके जीवन भर की कमाई लूट रहे हैं। डिजिटल अरेस्ट आनलाइन ठगी का ऐसा ही एक तरीका है। साइबर अपराधी वीडियो कॉल और दूसरे आनलाइन माध्यमों से लोगों से संपर्क करते हैं और उन्हें डरा-धमका कर या लालच देकर घंटों या कई दिन तक कैमरे के सामने बैठे रहने के लिए मजबूर करते हैं। वे पीड़ित को कैमरे के सामने से हटने ही नहीं देते। पीड़ित से कहा जाता है कि जब तक अधिकारी उससे जरूरी पूछताछ पूरी नहीं कर लेते, तब तक वह अपनी जगह बैठा रहे। इस बीच, वे धमकाते रहते हैं कि अगर फोन काटा तो, इसे कानून का उल्लंघन माना जाएगा और इसके लिए उसे गिरफ्तार भी किया जा सकता है। पीड़ित व्यक्ति यह सोचकर बैठा रहता है या उनके सवालों के जवाब देता रहता है कि उसने जब कुछ किया ही नहीं है, तो जांच में सहयोग करने में क्या दिक्कत है। सामने वाला कैमरे के सामने रहने के लिए ही तो कह रहा है। अधिकांश लोग पुलिस के नाम से ही डर जाते हैं, इसलिए अपराधी जैसा कहते हैं, वैसा करते रहते हैं।
अमूमन वे लोग डिजिटल अरेस्ट होते हैं, जो बदलती प्रौद्योगिकी के प्रति जागरूक नहीं होते। प्राय: ऐसे लोग अपराधियों के झांसे में आकर डिजिटल अरेस्ट हो जाते हैं। एक बार जब व्यक्ति साइबर अपराधियों की गिरफ्त में आ जाता है, तो वे उससे जरूरी व्यक्तिगत सूचनाएं हासिल कर अपने खाते से पैसे हस्तांतरित कर लेते हैं। कई बार तो अपराधी पीड़ित को इतना डराते हैं कि वे दबाव में आकर पैसे उनके बताए खाते में हस्तांतरित कर देते हैं। व्हाट्सएप करने वाले अपराधी अक्सर अपने प्रोफाइल में किसी पुलिस अधिकारी की फोटो लगाते हैं। वीडियो कॉल पर सामने वाले व्यक्ति को भरोसा दिलाने के लिए साइबर अपराधी बाकायदा पुलिस थाने का सेटअप भी तैयार रखते हैं, जिसे देखकर व्यक्ति डर जाता है। उसे विश्वास हो जाता है कि उससे पुलिस या किसी जांच एजेंसी का अधिकारी ही पूछताछ कर रहा है। इसलिए भोले-भाले लोग डर कर उनकी बातों में आ जाते हैं। अपराधी यह कह कर लोगों को अपने झांसे में लेते हैं कि उनके आधार कार्ड, सिम कार्ड, बैंक खाते का उपयोग अवैध गतिविधियों में हो रहा है। इससे वह व्यक्ति इतना डर जाता है कि फोन भी नहीं
काट पाता।