महाशिवरात्रि पर वैवाहिक रस्म: लाल लहंगे में सजाईं गौरा, महादेव के सिर सजा मउरा, शिवमय हुई काशी नगरी
वाराणसी (रणभेरी): महाशिवरात्रि पर काशीपुराधिपति के सिर मउरा सजा तो लाल लहंगे में गौरा को भी भक्तों ने सजाया। अप्रतिम युगल छवि की सुंदरता और शिव-शक्ति के विवाहोत्सव का साक्षी बनने के लिए काशी उमड़ पड़ी। काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर टेढ़ीनीम स्थित पूर्व महंत आवास पर चार प्रहर की आरती की परंपरा के साथ भोर में महादेव और मां पार्वती के विवाह की रस्मों को निभाया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर के स्वर्णमंडित मंडप में औघड़दानी त्रिपुरारी शिव शक्ति स्वरूपा मां गौरा के साथ विवाह के बंधन में बंध गए। शनिवार को साढ़े तीन सौ वर्षों से चली आ रही लोकपरंपरा के अनुसार टेढ़ीनीम स्थित आवास पर पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के निर्देशन में बाबा व गौरा की प्रतिमा का रुद्राभिषेक हुआ। रुद्र विवाह और रात्रि जागरण के साथ ही शिवभक्तों के लिए बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ धाम पूरी रात खुला रहा। आज भी रात करीब साढे 10 बजे तक पट खुला रहेगा और झांकी दर्शन होंगे। भूतभावन महादेव की नगरी काशी उत्सव के रंग में डूब गई है। आदि योगी शिव के गृहस्थ जीवन में प्रवेश का मुख्य अनुष्ठान बाबा विश्वनाथ मंदिर में किया गया। सप्तऋषि आरती के अर्चकों ने बाबा के विवाह की रस्म निभाई। फूलों से बना मौर बाबा को धारण कर दूल्हे की शक्ल में ढाला गया। अरघे में एक तरफ लाल चुनरी में सजी देवी पार्वती की मूर्ति को सुसज्जित कर प्रतिष्ठित किया गया। विश्वनाथ मंदिर में शिव विवाह चार स्टेप में पूरा हुआ। दोपहर में फलाहार का भोग लगाया गया। भोग आरती के बाद संजीवरत्न मिश्र ने बाबा और मां गौरा की चल प्रतिमा का राजसी शृंगार कर विशेष आरती उतारी।
शाम को मंगल गीतों के साथ परंपरा की शुरुआत हुई। बाबा विश्वनाथ की रजत प्रतिमाओं के साथ सभी प्रतिमाओं को महाशिवरात्रि पर पूजन के बाद महेंद्र प्रसन्ना ने शहनाई की मंगल ध्वनि पेश की। रात्रि में मंदिर में चारों प्रहर की विशेष आरती पं. शशिभूषण त्रिपाठी गुड्डू महाराज ने संपन्न कराई। मंदिर से लेकर टेढ़ीनीम तक चारों प्रहर की आरती का दीपक लाने और ले जाने का सिलसिला भी चलता रहा। पूर्व महंत के आवास पर दोपहर में मातृका पूजन से लेकर विवाह तक की परंपरा का निर्वाह हुआ। ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के बीच सभी देवी देवताओं से शिव विवाह में शामिल होने का अनुरोध किया। भोर में पांच बजे विवाह की प्रक्रिया पूरी हुई। तीन मार्च को रंगभरी (अमला) एकादशी पर माता के गौना की रस्म निभाई जाएगी।