कमजोर हो रहे लोगों के फेफड़े, गंभीर हैं इस सर्वे के परिणाम
सोनभद्र। जिले के औद्योगिक क्षेत्र में रह रहे लोगों के फेफड़े कमजोर हो रहे हैं। सामान्य लोगों की अपेक्षा उनके फेफड़ों की कार्यक्षमता 50 फीसदी से भी कम है। म्योरपुर के वनवासी सेवा आश्रम और दिल्ली के खतरा केंद्र के संयुक्त सर्वे में यह चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। कमजोर फेफड़ों के लिए औद्योगिक प्रदूषण को जिम्मेदार माना जा रहा है। परियोजनाओं से निकलने वाली राख, धुआं और कोयले की धूल में मिश्रित हानिकारक कण फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों पर इसका अधिक प्रभाव है। वनवासी सेवा आश्रम और खतरा केंद्र ने संयुक्त रूप से औद्योगिक क्षेत्र में रहने वाले अलग-अलग गांवों के लोगों पर मई-जून 2023 में स्वास्थ्य सर्वे किया था। अलग-अलग बिंदुओं पर सर्वे के दौरान 11 गांवों के चार सौ से अधिक लोगों के फेफड़ों की क्षमता को पीक फ्लो मीटर से नापा गया।
सर्वे में आए गंभीर परिणाम
सर्वे में पुरुषों के फेफड़ों की क्षमता औसतन भारतीय पुरुष की क्षमता से 51 फीसदी कम मिली। इन्हीं पुरुषों पर वर्ष 2011 में भी सर्वे किया गया था, तब उनके फेफड़ों की क्षमता में 43 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी। बाद के 12 वर्षों में यह बढ़कर 51 फीसदी तक पहुंच गई है। वहीं महिलाओं के मामले में स्थिति थोड़ी सुधरी है। पहले उनके फेफड़ों की क्षमता 48 फीसदी तक कम थी, जो 2023 के सर्वे में 46 प्रतिशत तक दर्ज की गई है। फेफड़े कमजोर होने की वजह इलाके में धूम्रपान के साथ ही बेतहाशा प्रदूषण को भी माना जा रहा है। तापीय परियोजनाओं से निकलने वाले धुएं, राख और कोयले की धूल में मिश्रित हानिकारक तत्वों के महीन कण हवा के जरिए पहुंचकर फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। टीम ने इस प्रारंभिक रिपोर्ट के साथ वास्तविक स्थिति के लिए स्पाइरोमेट्री व अन्य जांच की भी सिफारिश की है।
30 से 75 वर्ष वालों पर सबसे ज्यादा असर
सर्वे में अलग-अलग आयु वर्ग के आंकड़ों पर गौर करें तो फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी का असर सबसे ज्यादा 30 से 75 वर्ष की आयु वालों पर है। 30 से 44 वर्ष की आयु वालों के फेफड़े की कार्यक्षमता सामान्य लोगों के मुकाबले 49 प्रतिशत तो 45-60 वालों के फेफड़ों की कार्यक्षमता 48 प्रतिशत तक कम है। इससे अधिक आयु वालों की 50 प्रतिशत से कम कार्यक्षमता है।
ऐसे किया गया था सर्वे
टीम ने बाड़ी, गोठानी, जामपानी बकुलिया, जरहां, करहियां, कटौंधी, कोटा, लोहरा, पड़रवा, पड़रक्ष, सिरसोती सहित अन्य गांवों के 243 महिलाओं और 234 पुरुषों पर सर्वे किया था। इनमें 227 लोग ऐसे थे, जिन्हें वर्ष 2011 और 2018 में भी सर्वे में शामिल किया गया था।
वर्ष 2011 में महिलाओं के फेफड़े सामान्य 48.15 प्रतिशत तो पुरुषों के फेफड़े 43.63 प्रतिशत कमजोर पाए गए थे। वर्ष 2023 में यह अंतर क्रमश: 46.85 और 51.21 प्रतिशत का दर्ज किया गया।
कमजोर फेफड़ों का असर
फेफड़ों के कमजोर होने के चलते जिले में टीबी, अस्थमा और सांस संबंधी बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। करीब ढाई हजार टीबी मरीज चिह्नित हैं। इनकी सबसे ज्यादा संख्या औद्योगिक क्षेत्र वाले म्योरपुर और चोपन ब्लॉक में हैं। अस्थमा, सांस संबंधी बीमारियों के अलावा लंग कैंसर के मरीज भी इस क्षेत्र में हैं। स्थानीय स्तर पर स्क्रीनिंग की सुविधा न होने से ऐसे मरीजों का आंकड़ा स्वास्थ्य विभाग के पास उपलब्ध नहीं है।
बचाव के लिए यह जरूरी
फेफड़ों को सुरक्षित रखने के लिए प्रदूषित क्षेत्रों में मास्क का उपयोग कारगर है। हालांकि इसका भी प्रयोग सीमित हो तो बेहतर है। इसके अलावा प्रदूषण पर नियंत्रण वाले उपाय भी अपनाए जाने चाहिए। आसपास हरियाली होने से भी हवा साफ-सुथरी होगी।
वनवासी सेवा आश्रम म्योरपुर के संचालक डॉ. शुभा प्रेम ने बताया कि खतरा केंद्र के साथ मिलकर चिह्नित क्षेत्र में विभिन्न बिंदुओं पर स्वास्थ्य सर्वे किया गया था। इसमें प्रभावित क्षेत्र के रहवासियों के फेफड़े की कार्यक्षमता सामान्य लोगों की अपेक्षा कम मिली है। इसके लिए प्रदूषण एक बड़ा कारण है। यहां के वातावरण में 2.5 पीपीएम से छोटे कणों की अधिकता है, जो फेफड़ों में पहुंचकर नुकसान पहुंचा रही है। वातावरण को शुद्ध बनाने के लिए काम करने की जरूरत है।