जितिया व्रत कल: संतान की लंबी आयु के लिए मनाया जाएगा पर्व, माताएं रखेंगी 24 घंटे का निर्जला उपवास

जितिया व्रत कल: संतान की लंबी आयु के लिए मनाया जाएगा पर्व, माताएं रखेंगी 24 घंटे का निर्जला उपवास

(रणभेरी): हिंदू धर्म में किए जाने वाले सबसे कठिन व्रतों में से एक जीतिया व्रत माना जाता है। यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखती हैं। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में यह व्रत बड़े श्रद्धा भाव से किया जाता है।

करीब 36 घंटे तक माताएं बिना कुछ खाए-पिए निर्जला उपवास करती हैं। यह व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है। इसकी शुरुआत एक दिन पहले सप्तमी तिथि को नहाय-खाय की परंपरा से होती है। इस वर्ष नहाय-खाय 13 सितंबर को और मुख्य व्रत 14 सितंबर को होगा।

व्रत की परंपराएं और नियम

  • सप्तमी तिथि को व्रती महिलाएं स्नान कर सात्विक भोजन करती हैं।
  • इसके बाद ओठगन की परंपरा निभाई जाती है और फिर निर्जला उपवास शुरू होता है।
  • अष्टमी तिथि पर माताएं पूजा-अर्चना कर संतान के कल्याण की प्रार्थना करती हैं।
  • पारण के बाद सरसों का तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद स्वरूप लगाया जाता है।


व्रत की पौराणिक कथा

द्वापर युग में जब कौरव पराजित हुए तो अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को ब्रह्मास्त्र से नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उस मृत शिशु को गर्भ में ही पुनः जीवन प्रदान किया। इस कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया, जो आगे चलकर राजा परीक्षित कहलाए। इसी प्रसंग के आधार पर इस व्रत का नाम जीतिया या जीवितपुत्रिका व्रत पड़ा।

विशेष आहार और पारण

व्रत शुरू करने से पहले महिलाएं नोनी का साग खाती हैं, जिसमें आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है। इससे लंबे उपवास के दौरान शरीर को आवश्यक पोषण मिलता है। इस तरह आस्था और परंपरा के साथ मनाया जाने वाला यह व्रत मातृत्व की संतान के प्रति अटूट ममता और विश्वास का प्रतीक माना जाता है।