चारों भाइयों का मिलन देख सजल हुए नैन

चारों भाइयों का मिलन देख सजल हुए नैन

हजारों नयनों से बह उठी अश्रुधार, 501 निनाद से गूंज उठा क्षेत्र, जय श्रीराम व हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंजता रहा वातावरण

वाराणसी (रणभेरी सं.)।  एक ओर अस्ताचल में डूब जाने को कुछ ही शेष बचा था सूर्य का अंश तो दूसरी ओर भ्रातृ प्रेम का अनुपम आदर्श गढ़ रहा था सूर्यवंश। रविवार शाम संपूर्ण ब्रह्मांड मानो ब्रह्मांड नायक की अनोखी भावलीला और भातृभाव के आदर्श का सर्वोत्कृष्ट स्वरूप देखने को ठहर सा गया था।श्रीराम-भरत मिलाप की विश्वप्रसिद्ध लीला का 481वां संस्करण नाटी इमली के मैदान में आयोजित हुआ तो शिव की काशी में त्रेता का वह पावन क्षण सजीव हो उठा। लक्खा मेला में चारों भाइयों के भावपूर्ण मिलन देख लाखों श्रद्धालुओं की पलकों से खुशियों के अनगिन मोती छलक उठे तो हजारों कंठों से 'चारों भइयन की जय' 'जय श्रीराम' व 'हर-हर महादेव' का उद्घोष फूट पड़ा। गले मिल चारों भाइयों के साथ ही जनकनंदिनी सीता मइया ने भक्तों को दर्शन दिए। चारों भाइयों के मिलन की दुर्लभ छवि हमेशा के लिए सहेज लेने को आतुर काशीवासियों की सजल आंखों ने समूचे दृश्य को हृदय में बसाया तो सहज ही जुड़ उठे दोनों हाथ, झुक उठे माथ। ढलती सांझ की बेला में इस भावपूर्ण दृश्य की सरस गरिमा को अनंत ब्रह्मांड ने अपने हृदय पटल पर अंकित कर लिया। परंपरानुसार काशिराज परिवार के अनंत नारायण सिंह ने भी लीला स्थल पहुंच कर इस दृश्य को निहारा तो श्रीराम व लक्ष्मण बने प्रभु स्वरूपों को गिन्नी भेंट कर तुलसीदल व पुष्प प्रसाद ग्रहण किया।

शाम ठीक चार बजे हैं। श्रीराम के अयोध्या की सीमा पर आने का संदेशा देकर हनुमान अयोध्या से लौट चुके हैं। हनुमान बने रत्नाकर त्रिपाठी को पुन: पुष्पक विमान तक पहुंचने के लिए भारी भीड़ के कारण जद्दोजहद करनी पड़ रही है। आखिर में अपनी गदा से भीड़ को हटाते हुए वह पुष्पक विमान तक पहुंचे और भगवान को उनके अनुजों के पधारने की सूचना दी। लोगों की निगाह एक बार फिर मैदान के दक्षिण-पूर्व के कोने की ओर है। काशिराज परिवार के अनंत नारायण सिंह आ चुके हैं। उनका हाथी देख हजारों-हजार की भीड़ ने एक साथ हर-हर महादेव का घोष करना शुरू कर दिया। हाथ जोड़ कर हाथी पर बैठे अनंतनारायण पुष्पक विमान पर सवार भगवान श्रीराम, जानकी और लक्ष्मण की ओर बढ़ रहे हैं। उनके हाथी के चारों ओर यदुवंशियों का समूह घेरा बनाए है। शाम 4 बजकर 27 मिनट पर अनंत नारायण का हाथी प्रभु के पुष्पक विमान के सामने है। हाथी पर बैठे-बैठे पहले उन्होंने 228वीं दक्षिणा के रूप में पं. अभिनव उपाध्याय को गिन्नी भेंट की। इसके बाद लीला व्यवस्थापक पं. मुकुंद उपाध्याय से प्रसाद स्वरूप तुलसीदल ग्रहण किया। मुख्य लीला स्थल की परिक्रमा के बाद काशिराज परिवार का हाथी परंपरागत स्थान पर खड़ा हो चुका है।

इसमें करीब पांच मिनट बीते हैं कि एक बार फिर मैदान के दक्षिण-पूर्व के कोने से ढोल-तासे की ध्वनि आने लगी है। लीला प्रेमी संकेत समझ भरत और शत्रुघ्न का जयकारा लगाने लगे हैं। शाम चार बजकर 35 मिनट पर भरत और शत्रुघ्न का लीला स्थल पर प्रवेश हुआ। एक बार फिर डमरुओं की निनाद तेज हो गई है। चार बजकर 38 मिनट पर भरत और शत्रुघ्न मिलन स्थल पर चढ़े।  मुख्य मंच पर दोनों अनुज और करीब सौ मीटर की दूरी पर पुष्पक विमान में श्रीराम-लक्ष्मण हार हैं। लीला व्यवस्थापक घड़ी पर सवार बार-बार दृष्टि दौड़ा रहे हैं। शाम चार बजकर चालीस मिनट पर उन्होंने अपना दाहिना हाथ नीचे की ओर किया। इधर श्रीराम लक्ष्मण के पुष्पक विमान से उतरने का इशारा हुआ उधर बादलों की ओट से सूर्य नारायण भी बाहर निकल आए। लीला स्थल पर सूर्य की किरणें पड़ते लाखों की भीड़ एक साथ हरहर महादेव का जयघोष करने लगी। भगवान श्रीराम-लक्ष्मण के पुष्पक विमान से उतरते मिलन स्थल पर दोनों अनुज लेट गए हैं। उनके लेटते ही इघर पश्चिम दिशा में पुष्पक विमान से उतर कर श्रीराम और लक्ष्मण पूरब की ओर दौड़ पड़े हैं। 

आगे-आगे भगवान और पीछे-पीछे यदुवंशियों का समूह। श्रीराम और लक्ष्मण के चरण जैसे मुख्यमंच पर पड़े मानस मंडली ने चिरपरिचित दोहा गाना शुरू किया 'परे भूमि नहिं उठत उठाए, बर करि कृपासिंधु उर लाए।' इस दोहे का गान पूर्ण होते-होते चारों भ्राता गले मिले। अस्ताचल से सूर्य नारायण की किरणें चारों पर पड़ने लगी हैं। श्रीचित्रकूट रामलीला समिति की ओर से होने वाली भरत मिलाप की इस लीला के उद्धारक मेघा भगत को भगवान ने वरदान दिया था कि भरत मिलाप की लीला के वक्त वह सूर्य नारायण के रूप में अवश्य उपस्थित होते रहेंगे।

विभीषण ने किया रावण का दाह संस्कार, संभाली लंका की गद्दी

 रामनगर की यहां की विश्व प्रसिद्ध रामलीला में शनिवार को श्रीराम-रावण के बीच घोर युद्ध हुआ। अनेक प्रयासों के बाद भी जब रावण नहीं मरता तब विभीषण श्रीराम को उसकी नाभि में एक वाण मारने की सलाह देते हैं। श्रीराम रावण की नाभि में बाण मारते हैं और रावण के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं। वह भूलुंठित होकर गिर पड़ता है। फिर श्रीराम के कहने पर विभीषण ने भाई रावण को मुखाग्नि देकर दाह संस्कार किया। पूरा वातावरण राममय हो उठा। विभीषण को श्रीराम ने लंका की राजगद्दी सौंपी। इसके पश्चात श्रीराम आती संग लीला संपन्न हुई।

दुर्ग से निकला काशिराज परिवार का विजय जुलूस

अधर्म पर धर्म की विजय का उल्लास चहुंओर छाया। दुर्ग से निकले शाही जुलूस ने इसका रंग चटक किया और हर हर महादेव के उदघोष से सड़कें गूंज उठीं। दोपहर बाद से ही रामनगर से लंका मैदान तक सड़कों के किनारे कतार लगनी शुरू हो गई। हर एक को इंतजार था काशिराज परिवार के विजय जुलूस का। दुर्ग में विजय दिवस समारोह दोपहर 2:30 बजे शुरू हुआ। अनंत नारायण सिंह के बाहर निकलते ही बैंड दल ने धुन बजाई और 36वीं वाहिनी पीएसी के जवानों ने सलामी दी। अनंत नारायण सिंह पालकी में बैठे, दुर्ग स्थित काली मंदिर गए और पूजन किया। इसके बाद 4:36 बजे पर शाही काफिला दुर्ग से बाहर आया। विजय जुलूस में सबसे आगे हाथी पर सवार स्टेट के मुसाहिब राम कृष्ण बघेल और इसके बाद समानांतर दो हाथियों पर अनंत नारायण सिंह समेत अन्य सवार चल रहे थे। मेला में भगदड़, चौकी प्रभारी निलंबित

 नाटी इमली के भरत मिलाप लीला स्थल पर भीड़ को सुविधाजनक तरीके से नियंत्रित करने में रविवार को पुलिस व्यवस्था विफल रही। भीड़ का अचानक दबाव बढ़ने पर उसे संभालने की बजाय पुलिस प्रभु श्रीराम का विमान उठाने वाले यादव कुमारों से ही धक्का-मुक्की करने लगी। दोनों पक्ष कुछ पल के लिए लगा कि आमने-सामने आ गए, फिर तो पुलिस के जवानों ने लाठियां भांजकर लोगों को खदेड़ना आंरभ कर दिया। इससे लीला मैदान में कुछ देर के लिए भगदड़ मच गई। भागते हुए लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। इस दौरान कुछ लोग चोटिल भी हो गए। पुलिस ने मुख्य गेट पर वैरियर लगाकर भीड़ को रोक रखा था। जब भगवान राम का छह टन वजनी विमान उठाए यादव बंधु वहां पहुंचे और उनके लिए वैरियर खोला गया तो उसके साथ ही बाहर जमा भीड़ भी अंदर घुसने लगी। भीड़ को रोकने के लिए विमान वाहकों व भीड़ के बीच में वैरियर बनने की बजाय पुलिस के जवान यादव बंधुओं को ही धकियाने लगे। फिर तो दोनों तरफ से नॉक्झोंक होने लगी। इस पर कुछ पुलिस के जवानों ने लाठियां चलानी शुरू कर दीं। इससे भगदड़ जैसी स्थिति बन गई। लोगों का कहना था कि पुलिस ने यदि भीड़ को बाहर रोका था तो उसे मेन गेट से कुछ दूर भीड़ का प्रबंध करना चाहिए था।