न्याय की आस में दर-दर भटक रही दुर्गा

न्याय की आस में दर-दर भटक रही दुर्गा

वाराणसी (रणभेरी सं.)।  भुल्लनपुर में रहने वाली दुर्गावती इस उम्मीद के सहारे जी रही है कि उसे भविष्य में इंसाफ मिलेगा! कानून के नुमाइंदे उसकी दर्द भरी फरियाद सुनकर उसे न्याय दिलाकर दबंगों द्वारा किये गए अत्याचारों से निजात दिलाएंगे । बीते दो माह से इंसाफ की आस में वाराणसी के लंका थाने का चक्कर लगाते-लगाते टूट चुकी दुर्गा की आँखों में इन्साफ की आस तब जगी जब पुलिस की हर चौखट पर हारने के बाद उसकी मुलाकात पुलिस कमिश्नरेट वाराणसी के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर डॉ. के. एजिलेरासेन से हुई। हैरत इस बात की है कि जेसीपी डॉ. एजिलेरासेन के निर्देश के बावजूद लंका थाने के एसएचओ न केवल दबंगों पर मेहरबान है बल्कि इस पूरे मामले के पहले दिन दबंगों को खुला संरक्षण दे रखा है। लंका थाना के एसएचओ की कार्यशैली संदेह के घेरे में है। दुर्गा की कहानी दुर्गा की जुबानी सुनने के बाद इस संदेह में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अपराधियों पर लंका थाने की पुलिस अगर यूं ही मेहरबान रही तो दलित परिवार से आने वाली बिन माँ-बाप की बेटी दुर्गा का दर्द पुलिस और अदालत के चंद पन्नों की कहानी बनकर सिमट जायेगी! 

नहीं हुई आरोपितोंं की गिरफ्तारी 

दो माह की जद्दोजहद के बाद ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर डॉ. के. एजिलेरासेन के हस्तक्षेप पर वाराणसी के लंका थाने में दुर्गावती की शिकायत पर दबंगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज तो हो गया लेकिन एफआईआर के बावजूद दोषियों की गिरफ्तारी के लिए कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं होना कानून व्यवस्था पर कई सवाल खड़े करता है। लंका थाने की पुलिस का रवैया भी 27 वर्षीय युवती दुर्गावती के प्रति ठीक नहीं है। 

माँ-बाप के नाम से दुर्गा ने खोला था रेस्टोरेंट 

बता दें कि विगत 18 वर्षों से वाराणसी के भुल्लनपुर में रहने वाली दुर्गावती ने बड़े अरमानों के साथ बीते वर्ष अपने स्वर्गीय माँ-बाप के नाम से लंका क्षेत्र में जीएसडी किचन के नाम से एक रेस्टोरेंट खोला था, दुर्गावती ने जिस भवन के प्रथम तल पर रेस्टोरेंट खोला था उसके भवन स्वामी का नाम संजय खत्री है। हालांकि दुर्गावती की बात हमेशा संजय खत्री की पत्नी इन्दुबाला खत्री से ही होती थी। दुर्गावती के अनुसार भवन के जिस प्रथम तल पर वह रेस्टोरेंट बनाना चाहती थी वहां पूर्व में पैथोलोजी का संचालन होता था। ऐसे में उस स्थान को रेस्टोरेंट का रूप देने के लिए वहां 4 माह तक निर्माण एवं इंटीरियर का कार्य दुर्गावती ने ही इन्दुबाला खत्री की सहमति से कराया। इस निर्माण व सुन्दरीकरण कार्य में दुर्गावती ने अपनी जिंदगी की सारी जमा पूंजी (जो कुछ भी उसकी माँ की सर्विस के दौर में कमाया था और मृत्यू के बाद सर्विस का जो पैसा मिला था) लगभग 28 लाख रुपए लगा दिये।

7 वर्ष की उम्र में पिता तो कोरोना काल में माँ की हो गयी थी मौत 

दुर्गावती बताती है कि उनके पिता गौरी शंकर प्रसाद रेलवे में गेटमैन के पद पर कार्यरत थें। दुर्गावती जब 7 वर्ष की थी उसी समय बीमारी की वजह से उसके पिता की मृत्यू हो गयी। जिसके बाद दुर्गावती अपनी मां देवकली देवी और एक छोटे भाई के साथ वाराणसी आ गयी। वर्ष 2006 में दुर्गावती की मां को पिता के स्थान पर नौकरी मिल गयी और दुर्गावती ने अपना मन पढ़ाई-लिखाई में लगाया। कक्षा 6 से 10 तक की पढ़ाई कमलापति गर्ल्स इण्टर कालेज एवं 12 वीं की पढ़ाई अग्रसेन महिला इण्टर कालेज मैदागिन से पूरी करने के बाद दुर्गावती ने धीरेन्द्र महिला पीजी कालेज से स्नातक (बी.ए.) तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के बसंत कन्या कालेज से स्नातकोत्तर (एम.ए.) की पढ़ाई पूरी किया। यह विडम्बना ही थी कि इसी बीच कोरोना काल में दुर्गावती के सर से माँ का भी साया उठ गया। मां देवकली देवी की दु:खद मृत्यू कोरोना होने की वजह से हो गयी। जिसके बाद दुर्गावती के कन्धों पर एक मात्र छोटे भाई की परवरिश के साथ-साथ घर की सारी जिम्मेदारी आ गयी।

जिंदगी की सारी जमा पूंजी से खोला था रेस्टोरेंट 

यही से दुर्गावती ने पढ़ाई छोड़कर कुछ करने का निर्णय लिया और अपने सपने को साकार करने की सोच के साथ ग्रेटर नोएडा दिल्ली से होटल मैनेजमेंट की ट्रेनिंग लेने चली गयी। वापिस आकर दुर्गावती लंका क्षेत्र में रेस्टोरेंट के लिए जगह की तलाश में लग गयी। एक ब्रोकर ने उसकी मुलाकात खत्री काम्प्लेक्स के मालिक संजय खत्री की पत्नी इन्दुबाला खत्री से करायी। जिसने अपनी बिल्डिंग के प्रथम तल पर दुर्गावती को 55 हजार रुपए प्रतिमाह किराये पर जगह दे दिया। 4 माह तक जब दुर्गावती ने उस स्थान पर दिन-रात एक करके एक खूबसूरत रेस्टोरेंट का रूप दिया और अपनी जिंदगी की सारी जमा पूंजी संजय खत्री के मकान के प्रथम तल पर लगाती रही तब तक इन्दुबाला खत्री उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और कभी-कभी खाना भी खिलाती थी।

बाबा साहब की तस्वीर लगाकर किया था शुभारम्भ 

28 सितम्बर 2023 को जब दुर्गावती ने अपने रेस्टोरेंट में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की तस्वीर लगाकर बौद्ध रीती से शुभारम्भ करा दिया तो यह बात संजय खत्री और उनकी पत्नी इन्दुबाला खत्री को नागवार लगी और रेस्टोरेंट की शुरूआत के साथ ही विरोध की नींव पड़ गयी।
दुर्गा बताती है कि महज तीन माह बीतने के साथ ही इन्दुबाला खत्री और उनके सहयोगी शत्रुघन सिंह उर्फ सनी सिंह उसे तरह-तरह से परेशान करने लगे और यह कहने लगे कि तुम अकेले यह रेस्टोरेंट नहीं चला पाओगी। दुर्गावती पर इन्दुबाला खत्री इस बात का दबाव देने लगी की सनी सिंह को अपना पार्टनर बना लो या फिर इस जगह को खाली कर दो। जबकि दुर्गावती ने उस स्थान पर काफी पैसा लगा दिया था। 

व्यापार मंडल की चांदनी श्रीवास्तव ने बंद किया था ताला 

दुर्गावती के अनुसार इन्दुबाला खत्री ने शत्रुघन सिंह उर्फ सनी सिंह के साथ आये दिन उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। शत्रुघन सिंह उर्फ सनी सिंह अपने दोस्तों के साथ शराब पीकर आ जाता था और उसे परेशान करने लगा था। कभी रेस्टोरेंट का रास्ता रोका गया तो कभी जबरिया बोर्ड हटाया गया। इसी बीच 28 मई 2024 को इन्दुबाला खत्री ने अपनी मित्र व्यापार मंडल की चांदनी श्रीवास्तव सहित कुछ अन्य महिलाओं को भेजकर जबरिया रेस्टोरेंट पर ताला बंद करवा दिया। 

बिल्डिंग के बेसमेंट में हुआ था अभद्र व्यवहार 

दुर्गावती को 6 जून को यह सूचना मिली की संजय खत्री और शत्रुघन सिंह उर्फ सनी सिंह उसके रेस्टोरेंट का सामान बाहर निकालकर बेसमेंट में फेंक रहे है। यह खबर पाकर जब दुर्गावती मौके पर पहुची तो बेसमेंट में संजय खत्री और शत्रुघन सिंह उर्फ सनी सिंह वहीँ बैठकर शराब पी रहे थे दुर्गावती को देखते ही ये लोग उसकी तरफ गंदी-गंदी जातिसूचक गालियाँ देते हुये आगे बढ़े। शत्रुघन सिंह उर्फ सनी सिंह ने उसके साथ जो अभद्र व्यवहार किया वह बताते हुए दुर्गा की आँखों से आंसू गिरने लगते है। इसके बाद किसी तरह से वहा से भागकर यह अकेली युवती बाहर सड़क पर आयी और पुलिस को फोन किया। 112 डायल करने के बाद जो पुलिसकर्मी मौके पर आते है उन्होंने मालिकान से बात करने के बाद दुर्गावती को थाने पर जाने की नसीहत दी और चलते बने। न्याय की उम्मीद से डरी-सहमी दुर्गा जब लंका थाना पहुची तो वहां भी संजय खत्री और शत्रुघन सिंह उर्फ सनी सिंह का वर्चस्व दिखा। किसी तरह से अपनी जान और इज्जत बचाकर थाने तक मदद की गुहार लेकर पहुँची दुर्गावती थर-थर काँप रही थी लेकिन लंका थाना के एसएचओ को इस अकेली लड़की पर रहम नहीं आया बल्कि अगले दिन आने की बात बोलकर चलता कर दिया। दुर्गा के लिए यह मुश्किल दौर था जब उसकी सुनाने वाला कोई नहीं था थोड़ी देर के लिए उसे न्याय,कानून और संविधान की बातें भी झूठी लगने लगी। वह टूट गयी थी और खुद को अकेला देख रही थी। क्योंकि उसे हिम्मत देने के लिए उसके सिर पर न ही बाप का साया है और ना ही गोद में सिर रखकर मन हल्का करने के लिए माँ का सहारा है। 

...इस लायक भी नहीं छोड़ेंगे कि दो कदम चल सको! 

दबंगों ने बेसहारा जानकर न केवल हैवानी नियत के साथ उस पर हाथ लगाया बल्कि उसे जाति सूचक गालियाँ देते हुए डराने के साथ ही जान से मारने की धमकी तक दे डाला। दुर्गा को बेबस,लाचार और अकेली लड़की समझकर यहाँ तक कह दिया कि इस लायक भी नहीं छोड़ेंगे कि दो कदम भी चल सको! 

2 माह में 20 बार  लगाया थाने का चक्कर 

अपराधियों को सलाखों के पीछे डालने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में एक 27 वर्षीय बिन माँ-बाप की अकेली बेटी के साथ जो बरताव किया वह निहायत शर्मनाक है। लंका थाना के निरीक्षक शिवाकांत मिश्रा ने चमार जाति में पैदा हुयी लड़की दुर्गावती को पूरे 2 माह में लगभग 20 बार दौड़ाया लेकिन उसकी एफआईआर नहीं लिखा। न्याय की आस लिए दर-दर भटकती दुर्गावती एसीपी भेलूपुर के पास भी जाती है लेकिन उसे वहा भी केवल आश्वासन ही मिलता रहा। हारकर जब किसी तरह दुर्गा पुलिस कमिश्नर से मिलने जाती है और उसकी मुलाकात संयुक्त पुलिस कमिश्नर डॉ. के.एजिलेरासेन से होती है जिन्होंने दुर्गा के साथ 2 माह में घटित हुये पूरे घटनाक्रम को सुना और मामले की गंभीरता को समझते हुये तत्काल मुकदमा कायम करने हेतु स्थानीय थाने को निर्देशित किया। तब जाकर दुर्गावती की शिकायत दर्ज हुई।

एडीसीपी नीतू मैडम ने कराया रेस्टोरेंट को सील 

इस मामले में हैरत इस बात की है कि मुकदमा कायम होने के बाद दोषियों को पुलिस ने गिरफ्तार तो नहीं किया लेकिन यह जरूर हुआ कि दुर्गावती के रेस्टोरेंट को भवन स्वामी ने सामान सहित किसी अन्य विशाल चौबे शुभम चौबे नाम के व्यक्ति को किराये पर दे दिया। यह सूचना पाकर दुर्गा फिर व्यथित हुई और थाने पर गयी लेकिन लंका पुलिस का रवैया पहले जैसा ही था। अंतत: दुर्गावती ने संयुक्त पुलिस कमिश्नर डॉ. के.एजिलेरासेन को फोन किया जिसके बाद इसी माह की पहली तारीख को मौके पर एडिशनल डीसीपी नीतू मैडम ने पहुचकर उस रेस्टोरेंट का अवैध रूप से संचालन कर रहे लोगों को बाहर करते हुये अपने सामने सील कराया।

पुलिस के रवैये ने तोड़ा दुर्गा का हौसला 

बाबा साहब को अपना आदर्श मानने वाली दुर्गा को संविधान से ताकत मिलती है लेकिन पुलिस का रवैया उसे कमजोर करता है।आँखों में कामयाबी के सपने के साथ जिस रेस्टोरेंट में दुर्गा ने जिंदगी की सारी जमा पूंजी लगा दी दबंगों के कब्जे के बाद अब वहा पुलिस का ताला लगा है। भविष्य को लेकर वह बेहद चिंतित है! चमार जाति का होने के चलते समाज का कोई भी उसकी मदद के लिए सहज आगे आने को तैयार नहीं है। 

एजिलेरासेन सर ने निभाई फरिश्ते की भूमिका

वो कहती हैं कि जेसीपी डॉ. एजिलेरासेन सर से अगर मुलाकात न हुई होती तो शायद आत्महत्या ही उसके सामने आखिरी रास्ता था। दबंगों के साथ मिलकर लंका पुलिस ने भी उसके साथ ठीक नहीं किया। दुर्गा कहती है कि प्रताड़ना के इस बुरे दौर के बीच संयुक्त पुलिस कमिश्नर एजिलेरासेन सर और एडिशनल डीसीपी नीतू मैडम ने मेरी जिंदगी में फरिश्ते की भूमिका निभाई है। बतौर दुर्गा, उसकी बेबसी, लाचारी और उसके साथ हुए ज्यादती को पुलिस विभाग के इन दो अफसरों के सिवा किसी ने नहीं समझा। बल्कि ऐसा लगता है कि सब के सब संजय खत्री,शत्रुघ्न सिंह उर्फ सनी सिंह, इन्दुबाला खत्री और  चांदनी श्रीवास्तव से मिले हुए है। 

सभी दोषियों को मिले सख्त से सख्त सजा 

दुर्गा इन्साफ चाहती है वो चाहती है कि दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिले। अन्यथा उसे आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ेगा जिसकी समस्त जिम्मेदारी संजय खत्री,शत्रुघ्न सिंह उर्फ सनी सिंह, इन्दुबाला खत्री और चांदनी श्रीवास्तव सहित लंका थाने के निरीक्षक शिवाकांत मिश्रा की होगी। उसकी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं कब यह सिस्टम उसका अंत कर दें ! दबंगों की प्रताड़ना से वह आहत है। सबने मिलकर उसका मानसिक, आर्थिक, सामाजिक के साथ-साथ शारीरिक तौर पर भी शोषण किया। खुद पर हुए अत्याचारों से त्रस्त आज वो जी रही हैं तो खुद से छोटे अपने एक मात्र भाई को देखकर। वो चाहती है कि समाज में किसी अकेली लड़की के साथ ऐसा कभी न हो, कोई लड़की भरोसा करके किसी का शिकार न हो और कानून सभी दोषियों को सख्त से सख्त सजा दें ताकि उसकी तरह किसी और लड़की की जिंदगी बर्बाद न हो! वो कहती है कि आजादी के 77 सालों के बाद भी समाज का ऐसा बरताव उसे अन्दर तक झकझोर देता है संविधान से मिले अधिकारों के बावजूद जब आज भी इन्साफ के लिए भीख माँगने की नौबत है तो समझ में आता है कि बाबा साहब के दौर में हमारे समाज की क्या हकीकत रही होगी? 

महंगा पड़ा दुर्गावती को बौद्ध रीति से रेस्टुरेंट का उद्घाटन