श्रद्धालुओं ने गंगा की अविरल धारा में लगाई आस्था की डुबकी

श्रद्धालुओं ने गंगा की अविरल धारा में लगाई आस्था की डुबकी

वाराणसी (रणभेरी सं.)। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा नदी में पवित्र स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ वाराणसी पहुंची। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्य की पहली किरण के साथ ही श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाना शुरू कर दिया। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन गंगा में स्नान करने से पुण्य मिलता है। विजुअल्स में नदी के किनारे हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते और प्रार्थना करते हुए दिखाई दे रहे हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के लिए घाटों पर श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा। भोर से ही श्रद्धालु घाटों पर पहुंचने लगे। गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य के भागी बने। इस दौरान विधिविधान से पूजन-अर्चन करने के साथ ही पंडे-पुरोहितों को दान दिया। श्रद्धालुओं की भीड़ के मद्देनजर प्रशासन अलर्ट रहा। काशी में दशाश्वमेध घाट समेत गंगा के सभी घाटों पर श्रद्धालुओं का विशाल जनसैलाब उमड़ा हुआ है। दूर-दूर से आए लोग सुबह से ही गंगा स्नान, दान-पुण्य और ध्यान-भजन में जुटे हुए हैं। सुबह 7 बजे तक लगभग 1 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने स्नान कर लिया था। श्रद्धालुओं की भीड़ रात से ही घाटों पर आने लगी थी। 
उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ से भी बड़ी संख्या में लोग स्नान के लिए आए हैं। देव दीपावली पर आए पर्यटक भी इस पावन स्नान का हिस्सा बनने से नहीं चूके। नारायण गुरु कहते हैं कि काशी में पंचगंगा घाट पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर प्रात:काल स्नान करने से पापों का क्षय और भाग्य का उदय होता है। काशी में शाम को देव दीपावली मनाई जाएगी। वहीं सुबह में गंगा स्नान के मद्देनजर प्रशासन मुस्तैद रहा। जल पुलिस, एनडीआरएफ के साथ ही पुलिस लगातार चक्रमण कर हालात का जायजा लेती रही। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए घाटों पर प्रबंध किए गए हैं। साथ ही उन्हें गहरे पानी में न जाने के लिए भी आगाह किया जा रहा है, ताकि किसी तरह की अप्रिय घटना न होने पाए।

ये है कार्तिक पूर्णिमा का महात्म्य

कार्तिक पूर्णिमा तिथि को पुराणों में स्नान, व्रत व दान की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर असुर का संहार किया था। इसी तरह सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान व दीपदान का महत्व है।