नवरात्रि के चौथे दिन काशी में देवी कूष्मांडा के दर्शन के लिए उमड़े श्रद्धालु
वाराणसी (रणभेरी): आज शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन है। नवरात्रि में दुर्गाजी की उपासना के चौथे दिन की पूजा का अत्याधिक महत्त्व है। मां दुर्गा जी के चौथे स्वरुप का नाम कूष्मांडा है। नवरात्री उपासना में चौथे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधना किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में स्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और निश्छल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरुप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लग्न रहना चाहिए।
काशी में इनका मंदिर कैंट रेलवे स्टेशन से पांच किलोमीटर की दूरी पर दुर्गाकुंड क्षेत्र में है। दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा माता मंदिर में भोर से ही दर्शन-पूजन के लिए देवी कूष्मांडा के भक्तों का तांता लगा हुआ है। पौराणिक मान्यता है कि जब सृष्टि नहीं थी तो तब देवी भगवती के कूष्मांडा स्वरूप ने ही सृष्टि का विस्तार किया था। देवी कूष्मांडा प्रकृति और पर्यावरण की अधिष्ठात्री हैं। कूष्मांडा देवी की आराधना के बगैर जप और ध्यान पूरा नहीं माना जाता है।
मान्यता है कि शुंभ-निशुंभ का वध करने के बाद मां दुर्गा ने इसी मंदिर में विश्राम किया था। इस मंदिर में प्रतिमा के स्थान पर देवी भगवती के मुखौटे और चरण पादुकाओं की पूजा होती है। इय मंदिर में यांत्रिक पूजा भी होती है। इस मंदिर का स्थापत्य बीसा यंत्र पर आधारित है। बीसा यंत्र यानी बीस कोण की यांत्रिक संरचना जिसके ऊपर मंदिर की आधारशिला रखी गई है। इस मंदिर को लेकर एक और कहानी यह भी है कि अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन का विवाह काशी नरेश सुबाहु की बेटी से करवाने के लिए मां ने सुदर्शन के विरोधी राजाओं का वध करके उनके रक्त से कुंड को भर दिया था। वही रक्त कुंड कहलाता है। बाद में राजा सुबाहु ने यहां दुर्गा मंदिर का निर्माण करवाया और 1760 ईस्वी में रानी भवानी ने इसका जीर्णोद्धार कराया था।
देवी ने काशी नरेश को दर्शन देकर उनकी पुत्री का विवाह राजकुमार सुदर्शन से करने का आदेश दिया और कहा कि किसी भी युग में इस स्थल पर जो भी मनुष्य सच्चे मन से मेरी आराधना करेगा मैं उसे साक्षात दर्शन देकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करूंगी। कहा जाता है कि उस स्वप्न के बाद राजा सुबाहु ने वहां मां भगवती का मंदिर बनवाया जो कई बार के जीर्णोद्धार के साथ आज वर्तमान स्वरूप में श्रद्धालुओं की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है।