रणभेरी मीडिया के स्टिंग ऑपरेशन में हुआ.... बड़ा खुलासा

वीडीए के भ्रष्ट अफसरों की बात-चीत के मिले दर्जनों आडियों क्लिप
रणभेरी को मिला जोनल शिवा जी मिश्रा का सनसनी खेज आडियों
- वीडीए में मची लूट का आडियों है रणभेरी के पास
- जागा एन्टी करप्शन विभाग तो कईयों को हो जायेगी जेल
- वीसी पुलकित गर्ग ने कलंकित कर दी सरकार की छवि
- जोनल अफसर शिवा जी ने खोल दिए वीडीए के बडे़ राज़
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी विशेष सं.): काशी, एक ऐसा शहर है जो अपने धार्मिक और सांस्कृतिक वैभव के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। गंगा के तट पर बसी इस प्राचीन नगरी में एक और चीज़ तेजी से पनप रही है भ्रष्टाचार का एक सुनियोजित नेटवर्क, जिसका केंद्र है वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए)। विकास के नाम पर जमीनों की खरीद-फरोख्त, नियमों की अनदेखी कर ऊंची-ऊंची इमारतों का निर्माण, अवैध नक्शों को स्वीकृति, और इन सबसे ऊपर इन सबको वैधता देने वाला एक मजबूत लेकिन भ्रष्ट तंत्र। इस तंत्र का पर्दाफाश किया है रणभेरी के स्टिंग ऑपरेशन ने। रणभेरी की खोजी पत्रकारिता टीम को हाल ही में वीडीए के एक वर्तमान जोनल अफसर शिवा जी मिश्रा के कई ऑडियो क्लिप्स हाथ लगे हैं, जिनमें वे साफ तौर पर स्वीकार करते हैं कि कैसे अवैध निर्माणों पर कार्रवाई केवल एक दिखावा होता है। वास्तविक उद्देश्य होता है मोटी रकम की वसूली। इन ऑडियो क्लिप्स में न सिर्फ अफसरों की ज़ुबानी भ्रष्टाचार की पटकथा मिलती है, बल्कि यह भी पता चलता है कि किस तरह सील-डील का खेल वीडीए के कार्यालयों में रोज़मर्रा की प्रक्रिया बन चुका है। ज़ोनल अफसर से लेकर बाबू और फील्ड इंस्पेक्टर तक हर कोई इस चक्र में हिस्सेदार है।
शिवा जी मिश्रा खुद स्वीकार करते हैं कि...“हम डील नहीं कर पाए... सचिव नहीं लेते, अपर सचिव नहीं लेते, कौन नहीं लेता? नोटिस के बाद हमने डील का किया था प्रयास।”.... इस बयान से स्पष्ट होता है कि वीडीए की कार्यप्रणाली पूरी तरह से नोटिस दो, डील करो, पैसा लो, और फाइल बंद के नियम पर चलती है। रणभेरी को मिली एक और क्लिप में राहुल त्रिपाठी नामक व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि हमें रेंडम साइट पर मिला था, हमने उसको जोनल साहब से मिलवा दिया था। यह वही राहुल त्रिपाठी है जिसे वीडीए के अधिकारियों ने खुद का पाप धुलने के लिए 95000 के रिश्वत के आरोप में बलि का बकरा बना दिया। रणभेरी की टीम ने इन तमाम ऑडियो क्लिप्स को जल्द ही एंटी करप्शन विभाग को सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, ताकि इस व्यवस्था में बैठे भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की शुरुआत हो सके। यह सिर्फ एक स्टिंग नहीं, बल्कि उस 'मौन भ्रष्टाचार' की पहली करारी चोट है, जो वर्षों से वाराणसी की आत्मा को खोखला कर रहा था।
क्यों अहम हैं ये ऑडियो क्लिप्स ?
इन ऑडियो रिकॉर्डिंग्स की अहमियत इसलिए भी महत्वपूर्व है कि यह कोई अनुमान या आरोप नहीं, बल्कि खुद अफसरों की आवाज़ में भ्रष्टाचार की स्वीकारोक्ति है। इन क्लिप्स से साबित होता है कि यह किसी एक या दो अधिकारियों की गलती नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था में फैली मिलीभगत है। अवैध निर्माणों के चलते न केवल शहर की प्लानिंग बर्बाद हो रही है, बल्कि आम लोगों की जान-माल भी जोखिम में आ रही है, जैसा कि हाल ही में मरुति नगर जैसी घटनाओं से सामने आया।
ऑडियो क्लिप नहीं, सिस्टम की कब्रगाह से आई गूंज
वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के ज़ोनल अफसर शिवा जी मिश्रा की आवाज़ में सामने आए स्टिंग ऑडियो ने वह कह दिया, जिसे अब तक लोग बस कानाफूसी में सुनते थे। यह सिर्फ एक अफसर का बयान नहीं, बल्कि एक पूरी व्यवस्था का चाल-चरित्र और चेहरा है जो अब पूरी तरह बेनकाब हो चुका है। "हम डील नहीं कर पाए..." एक वाक्य, कई अर्थ। यह स्वीकारोक्ति बहुत कुछ कहती है। यह दिखाता है कि वीडीए में कार्रवाई का आधार अवैधता नहीं, बल्कि डील की सफलता या असफलता है। यदि डील फाइनल हो जाए, तो अवैध निर्माण वैध हो जाता है। और अगर नहीं हो पाए, तो कार्रवाई का दिखावा शुरू होता है नोटिस, सीलिंग, और मीडिया में बयानबाज़ी का।
सचिव नहीं लेते, अपर सचिव नहीं लेते... कौन नहीं लेता?
रणभेरी को प्राप्त ऑडियो क्लिप में शिवा जी मिश्रा पूरे प्रशासनिक ढांचे पर अंगुली उठाते हैं। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत अनुभव नहीं, बल्कि ऐसा कथन है जो वीसी, सचिव, अपर सचिव और अन्य अधिकारियों को भी इस नेटवर्क का हिस्सा बता देता है। यह सवाल नहीं है, यह व्यवस्था पर अविश्वास की सार्वजनिक घोषणा है, वह भी उसी व्यवस्था के अंदर काम करने वाले व्यक्ति के मुंह से।
"नोटिस के बाद हमने डील का प्रयास किया था"...इस लाइन से यह स्पष्ट होता है कि विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग किस स्तर तक हो चुका है। नोटिस, जो आम जनता के लिए डर और चेतावनी का माध्यम होता है, उसे भ्रष्ट अधिकारी एक सौदे की भूमिका के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। पहले नोटिस भेजो, फिर बिल्डर या मालिक से बातचीत शुरू करो, डील फाइनल हो तो निर्माण जारी, वर्ना सीलिंग।
वीडीए का "सील" नहीं, सौदा होता है
शिवा जी मिश्रा के बयान और क्लिप्स से यह खुलासा होता है कि वीडीए में 'सीलिंग' कानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि 'बारगेनिंग टूल' बन चुका है। सीलिंग से पहले अफसर और दलाल निर्माणकर्ता को संकेत देते हैं। बातचीत होती है, रकम तय होती है। जो पैसा दे दे, उसकी बिल्डिंग दोबारा खुलवा दी जाती है। जो पैसा न दे, उसकी बिल्डिंग दिखावे के लिए बंद पड़ी रहती है। कभी-कभी मीडिया को दिखाने के लिए तोड़फोड़ भी कर दी जाती है। यह सवाल स्वाभाविक है। शिवा जी मिश्रा की क्लिप्स को सुनते हुए कुछ लोग उन्हें व्हिसलब्लोअर कह सकते हैं। एक ऐसा अधिकारी जिसने व्यवस्था की पोल खोली। लेकिन सूत्रों का कहना है कि का कहना है कि मिश्रा का यह बयान उस डील के न हो पाने की खीझ है, जिसे वे फाइनल नहीं कर सके। यानी यह कोई नैतिक उद्घोषणा नहीं, बल्कि एक विफल सौदे के बाद हुआ निजी असंतोष हो सकता है। फिर भी, चाहे इरादा जो भी हो, उनका बयान व्यवस्था को नापने के लिए काफी है।
...जब सिस्टम के दलाल बनते हैं मालिक
राहुल त्रिपाठी इस पूरे स्टिंग में उस गिरोह की वो कड़ी हैं, जिसे सिर्फ इस्तेमाल किया जाता था। चुकी वह आउटसोर्सिंग इंजीनियर था इसलिए अपने अधिकारियों का कहना मानना उसकी मजबूरी थी। राहुल को बिचौलिए और अधिकारी के बीच की कड़ी के रूप में जोनल शिवाजी मिश्रा ने खूब इस्तेमाल किया। जबकि सच ये है कि शहर में कौन बनेगा, कितना बनेगा, कैसे बनेगा, इसका निर्णय अब फाइल नहीं करती, बल्कि बिचौलियों की डीलिंग करती है।
शिवा जी मिश्रा (जोनल, वीडीए जोन -1)
सिस्टम के सबसे ऊंचे चबूतरे पर भ्रष्टाचार की छाया
रणभेरी को मिले दर्जनों ऑडियो क्लिप और फील्ड रिपोर्ट्स से यह बात अब साफ होती जा रही है कि भ्रष्टाचार सिर्फ ज़ोनल या इंजीनियर स्तर तक सीमित नहीं, बल्कि इसकी जड़ें प्राधिकरण के शीर्ष अधिकारियों सचिव, अपर सचिव और वीसी तक फैली हैं। शिवाजी मिश्रा का एक चौंकाने वाला बयान है... "सचिव नहीं लेते, अपर सचिव नहीं लेते, कौन नहीं लेता ? यह एक कटाक्ष नहीं, बल्कि एक घोषणा है। उस मौन समझौते की जिसमें पूरी व्यवस्था एक धंधा बन चुकी है। वाराणसी विकास प्राधिकरण में सचिव और अपर सचिव जैसे पद शहरी विकास और निगरानी के लिए बनाए गए थे, लेकिन ऑडियो में जिस सहजता से शिवा जी मिश्रा कहते हैं कि “कौन नहीं लेता”, वह संस्थागत भ्रष्टाचार की पुष्टि करता है। रणभेरी को ऐसे ऑडियो क्लिप मिले हैं जिनमें कुछ बिल्डरों से सचिव स्तर के अधिकारियों की डीलिंग की बातें की जा रही हैं। क्लिप में यह भी संकेत मिलते हैं कि कैसे निर्माण कार्य को अनदेखा करने के एवज में लाखों की रकम अधिकारियों तक पहुंचाई जाती है।
सवाल : वीसी या किसकी शह पर हो रहा धनउगाही का ये खेल?
वीडीए का वाइस चेयरमैन कोई साधारण पद नहीं। यह वह कुर्सी है जहां से पूरे प्राधिकरण का संचालन, निगरानी और अनुशासन तय होते हैं। लेकिन जब शीर्ष पर बैठे व्यक्ति की नियत और नीति दोनों संदिग्ध हों, तब पूरा सिस्टम गिरवी बन जाता है। मौजूदा वीसी पर सवाल क्यों? हाल के वर्षों में वाइस चेयरमैन साहब द्वारा ज़ोनल अधिकारियों को खुली छूट देने के आरोप लगते रहे हैं।
कई ज़मीन अधिग्रहण, नक्शा पासिंग और निर्माण परियोजनाओं में वीसी की सीधी स्वीकृति के बावजूद कोई जांच नहीं हुई। राहुल त्रिपाठी मामले भी जिस तरीके से कार्रवाई की गई वह सवाल खड़ा करती है। रणभेरी की रिपोर्ट में सामने आया है कि जब एक निर्माण स्थल पर शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो वीसी ने खुद फ़ाइल रोक दी, और फिर महीनों तक उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया, जब तक कि "सेटिंग" पूरी नहीं हो गई।
पुलकित गर्ग (उपाध्यक्ष ,वीडीए)
एंटी करप्शन को सौंपा जाएगा प्राप्त ऑडियो क्लिप
रणभेरी की टीम ने निर्णय लिया है कि सभी ऑडियो क्लिप्स को दस्तावेजी रूप में संलग्न कर उत्तर प्रदेश के सतर्कता अधिष्ठान (एंटीकरप्शन विभाग) को सौंपा जाएगा। साथ ही, लोकायुक्त कार्यालय और मुख्यमंत्री कार्यालय को भी सूचित किया जाएगा ताकि इस मामले पर उच्च स्तरीय जांच की जा सके। इन ऑडियो क्लिप्स ने न केवल भ्रष्टाचार को उजागर किया है, बल्कि प्रशासन की चुप्पी और मिलीभगत पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह अब सिर्फ एक मीडिया स्टोरी नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ बन चुकी है।
ऑडियो में जोनल अफसर शिवा जी ने खोल दिए वीडीए के बडे़ राज़...
शिवाजी मिश्रा : ....सचिव नहीं लेतें, अपर सचिव नहीं लेतें, कौन नहीं लेता ? हम डील नहीं कर पाए ?
शिवा जी मिश्रा :कहां मिला वो ?
राहुल त्रिपाठी : हमें रेंडम साइट पर मिला था हमने उसको जोनल साहब से मिलवा दिया था।
शिवाजी मिश्रा: सोचा नहीं था कि डिजाइन टूट जायेगा, सोचे ही नहीं थे इस एंगल से
शिवाजी मिश्रा : केके यादव है दशाश्वमेध का, चौक के सामने भी देखा की बड़ी बिल्डिंग बन रही है
तीसरा शख्स : क्या लेते हो !
चौथा शख्स : अपना चार्ज लेते हैं (मतलब कमीशन)
तीसरा शख्स : आपस में कौन कैसे जनता की कौन सी साइट कौन देख रहा !
दूसरा शख्स : नोटिस के साथ ले जाकर साइट को दिखवा देते है
तीसरा शख्स : ये नोटिस क्यों काट दिए !
शिवाजी मिश्रा : पता नहीं कैसे कट गया नोटिस
तीसरा शख्स : हम सोचे पांच हजार मिलेगा लेकिन तुम कह रहे थे आठ हजार
पार्ट- 33
रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए, भ्रष्टाचार के खिलाफ पब्लिक बोल रही है...