टिकट के लिए अच्छे लगने लगते हैं दूसरे पार्टियों के सिद्धांत

टिकट के लिए अच्छे लगने लगते हैं दूसरे पार्टियों के सिद्धांत

प्रयागराज ।  राजनीति का केंद्र रहा है और समय के अनुसार दल बदलने का यह हुनर यहां के नेताओं में भी है। प्रयागराज की दोनों सीट के लिए अभी किसी भी दल ने उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। लेकिन, खास यह कि चार ऐसे बड़े नेता ऐसे हैं,जिनका नाम भाजपा के साथ इंडिया गठबंधन में भी चल रहा है। सियासत के बहुत से रंग हैं और उतने ही सियासतदारों के भी हैं। बदलते समय के साथ वह खुद को उसी रंग में ढाल लेते हैं। चुनावी समीकरणों और उतार-चढ़ाव के साथ उनकी दलगत आस्था भी बदलती रही है। कई नेता तो दो से अधिक दलों से चुनाव लड़ चुके हैं। चुनावी चौसर फिर बिछ गया है और इसी के साथ ऐसे नेताओं की दलगत आस्था भी डगमगाने लगी है। उनका हर प्रमुख दल में दखल है और टिकट के जोड़तोड़ में लगे हैं। प्रयागराज राजनीति का केंद्र रहा है और समय के अनुसार दल बदलने का यह हुनर यहां के नेताओं में भी है। प्रयागराज की दोनों सीट के लिए अभी किसी भी दल ने उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। लेकिन, खास यह कि चार ऐसे बड़े नेता ऐसे हैं,जिनका नाम भाजपा के साथ इंडिया गठबंधन में भी चल रहा है। कई बार तो अलग-अलग खेमे से उनकी दावेदारी पक्की होने की अफवाहें भी उड़ाई जा रही हैं। इनमें से कई नेताओं की पहली पसंद भाजपा है। तीन नेता तो अलग-अलग दलों से होते हुए इन दिनों भाजपा में हैं और टिकट के लिए दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। इनमें से एक नेता को भाजपा से टिकट मिलने की चर्चा भी दो दिनों से है। खास यह कि इनमें से दो नेताओं के नाम कांग्रेस व सपा से टिकट चाहने वालों की सूची में शामिल होने की बात कही जा रही है।  सपा के एक वरिष्ठ नेत का नाम भी भाजपा से टिकट की मांग करने वालों की सूची में शामिल है। इसके अलावा कांग्रेस से दावेदारों की सूची में भी उनका नाम शामिल है। कांग्रेस से उनकी दावेदारी पक्की भी हो गई है। हालांकि, कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का विरोध आड़े आ रहा है। कांग्रेस के एक बड़े नेता का कहना है कि अभी भाजपा से टिकट तय नहीं हुए हैं। भाजपा से प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही तय हो पाएगा अब किन नामों पर विचार किया जाना है। सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि सियासत में आस्था मायने नहीं रखती। कई राजनीतिक परिवार चुनाव लड़े बिना नहीं रह सकते। उनकी पहचान ही सियासी है। इसलिए उनकी तरफ से हमेशा विकल्प खुले रहते हैं।

पुरानी है दल बदलने की परिपाटी

दलगत आस्था बदलने का दौर इन दिनों बढ़ जरूर गया है, लेकिन पहले भी कई नेता पार्टी बदलकर संसद पहुंचने में सफल रहे हैं। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, जंगबहादुर पटेल, रामपूजन पटेल समेत कई बड़े नेता शामिल हैं।