अवैध निर्माणों पर संजीव कुमार की चुप्पी क्यों ?

 अवैध निर्माणों पर संजीव कुमार की चुप्पी क्यों ?
  • "यहाँ तहजीब बिकती हैं, यहाँ फरमान बिकते हैं, जरा तुम दाम तो सही बोलो, यहाँ ईमान बिकते हैं..."
  • जेई,जोनल वीसी सबके सब अंजान, रवींद्रपुरी, नगवां, अस्सी में बन गए सैकड़ो व्यवसायिक  मकान 
  • क्या हर एक अवैध निर्माण को पूरा कराने का जोनल संजीव कुमार ने ले रखा है ठेका
  • निर्माण के शुरुआती दौर में ही सील के बाद आखिर कैसे बन कर तैयार हो जाता है अवैध निर्माण 
  • भ्रष्टाचार की गंगा में कबतक गोता लगाएंगे संजीव  साहब ?
  • क्या वीडीए के उच्चाधिकारियों को भी पहुंचाते है हिस्सा, वीसी साहब की चुप्पी बता रही बंदरबाट का किस्सा 

                                                                                                                             अजीत सिंह 

वाराणसी (रणभेरी): बनारस... वह शहर है जहाँ हवाओं में भी भक्ति घुली रहती है, जहाँ गंगा के घाटों पर आरती की गूंज सुनाई देती है, जहाँ हर गली-मोहल्ले में इतिहास के पदचिह्न बिखरे हुए हैं। पर अफसोस ! आज वही वाराणसी विकास के नाम पर अवैध निर्माणों की गंगा में डूब रहा है। "यहाँ तहजीब बिकती हैं, यहाँ फरमान बिकते हैं, जरा तुम दाम तो सही बोलो, यहाँ ईमान बिकते हैं..." इन पंक्तियों में छुपी पीड़ा आज हर काशीवासी के दिल से निकली चीख बन गई है।

गंगा के तट पर बसी काशी आजकल अपनी सांस्कृतिक पहचान से ज्यादा अवैध निर्माणों के लिए चर्चा में है। एक ओर प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट ने "काशी विश्वनाथ धाम" से लेकर "गंगा कॉरिडोर" तक का काम कर काशी को एक नया रूप दिया वहीं दूसरी ओर शहर के भीतर खासकर वीडीए के जोन 4 में भेलूपुर के रवींद्रपुरी, नगवां, अस्सी और सुंदरपुर जैसे इलाकों में अवैध निर्माणों की इस कदर बाढ़ आई कि काशी की सुंदर काया ही धूमिल होने लगी। बीते चंद माह का आलम यह रहा कि जो अवैध निर्माण अधूरे थे वह सब लगभग बन कर पूरे हो गए।

इन क्षेत्रों में होने वाले सैकड़ो अवैध निर्माण के विरूद्ध जारी सारे के सारे नोटिस धरे के धरे रह गए। अब विभागीय सूत्र बता रहे है कि जोन नं 4 अंतर्गत भेलूपुर एवं नगवा वार्ड में सैकड़ो अवैध निर्माण को पूरा कराने में भेलूपुर जोनल संजीव कुमार ने पूरी ताकत के साथ निर्माण कर्ताओं को खुली छूट दे रखा है। जिसके एवज में सभी अवैध निर्माण कर्ता भवन स्वामियों ने जोनल साहब के ईमान की खूब बोली लगाई है। अवैध कमाई की हवस में अपना आपा खो चुके जोनल साहब ने भी अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी से बेमुख होकर जमकर कुर्सी का फायदा उठाया और बदले में तमाम अवैध निर्माण को पूरा होने तक अपनी आंख बंद कर लिए। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या संजीव कुमार ने हर अवैध निर्माण को पूरा कराने का ठेका ले लिया है ? क्या उच्चाधिकारियों की मिलीभगत से यह सारा गोरखधंधा फल-फूल रहा है ? क्यों सीलिंग के बावजूद इमारतें बनकर तैयार हो जा रही हैं ? अब तो वीसी साहब की भी चुप्पी दाल में कुछ काला होने का संकेत दे रही है ? यह सवाल अब सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक गूँज रहा है, पर जवाबदेही का कहीं कोई अता-पता नहीं।

वाराणसी में अवैध निर्माणों की बढ़ती फेहरिस्त

जब हमारी नजर वीडीए के जोन 4 में भेलूपुर वार्ड के रवींद्रपुरी क्षेत्र पर जाती है तो देखकर ऐसा लगता मानो न कोई सिस्टम है न उस सिस्टम का कोई माई-बाप। है तो बस एक चीज वह है सिर्फ और सिर्फ पैसा। पैसों के दम पर नियम कानून और उसके रक्षक के ईमान की बोली लगाकर अवैध कामों को बिना किसी भय के अंतिम अंजाम तक पहुंचा दिया जाता है। रवींद्रपुरी क्षेत्र में दर्जनों ऐसे निर्माण है जो अवैध है। कुछ के निर्माण या तो पूरे हो चुके हैं या फिर कुछ निर्माणों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। रवींद्रपुरी जैसे एच एफ एल एरिया में सड़क किनारे पुराने मकानों को गिराकर बहुमंजिला इमारतें तैयार हो रही हैं। फुटपाथ गायब, नालियाँ चौपट, और पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं। स्थानीय नागरिक शिकायत करते हैं कि "यहाँ हर दिन बिना किसी अनुमति या नक्शा के ही निर्माण शुरू हो जाता है, और विकास प्राधिकरण के जिम्मेदार अधिकारी सब कुछ देखते हुए भी अपनी आँखें मूँद लेते हैं।" बावजूद इसके जहां एक तरफ भ्रष्ट सिस्टम के भ्रष्ट अधिकारी अपने ईमान को बेचकर अपनी जवाबदेही तय करने नज़र चुराते  हैं। वहीं दूसरी तरफ गंगा तट के समीप नगवां क्षेत्र में दर्जनों अवैध गेस्ट हाउस, लॉज, और होटल बन रहे हैं या बन चुके हैं। यूं कहिए कि निर्माणकर्ताओं द्वारा शहर की सुंदरता और सुरक्षा से खुलेआम खिलवाड़ कर गंगा किनारे कंक्रीट के जंगल उगाए जा रहे हैं। निर्माणाधीन भवनों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर महज नोटिसबाज़ी होती है, पर हकीकत में धड़ल्ले से दिन रात काम जारी है। वहीं अस्सी घाट से चंद कदमों की दूरी पर कई अवैध भवन और रेस्टोरेंट बनाए जा रहे हैं। "नो कंस्ट्रक्शन जोन" के तमाम नियम ध्वस्त कर दिये गये हैं।

शहर की ऐतिहासिक और धार्मिक छवि को धूमिल करने में वीडीए के भ्रष्ट व निकम्मे अधिकारियों के खुले संरक्षण में इन व्यवसायिक भवनों के निर्माण कर्ताओं ने अपनी अग्रणी भूमिका निभाई है। ना नक्शा, ना अनुमति...बस पैसा और पहुंच का खेल और जीरो टॉलरेंस का दावा फेल।

जोनल अधिकारी की चुप्पी लापरवाही या मिलीभगत?

वाराणसी विकास प्राधिकरण में जोन नं 4 के जोनल अधिकारी संजीव कुमार को अवैध कमाई की इतनी भूख है कि वो अपने जिम्मेदारी और जवाबदेही भूल चुके हैं। पैसे की हवस ने इन्हे इस कदर अंधा बना दिया है कि किसी भी निर्माण के शुरू होते ही ये साहब एक औपचारिक नोटिस भेजकर खानापूर्ति कर लेते हैं। और फिर यही से शुरू हो जाता है भवन स्वामी और वीडीए के जोनल के बीच सेटिंग गेटिंग का पूरा खेल। नोटिस, सील और  डील से लेकर निर्माण पूरा होने तक वीडीए के ये जिम्मेदार अधिकारी लाखों की काली  कमाई कर रहे है जिसके एवज में पूरी ईमानदारी के साथ अवैध निर्माण पर चुप्पी साध लेते हैं। अब तो यह तथ्य सर्वविदित हो चूका है कि विभागीय अफसरों द्बारा अवैध निर्माणकर्ताओं से मोटी रकम लेकर खुल्लम खुल्ला  ‘समझौता’ कर लिया जाता है।और यही वजह है कि सीलिंग के बाद भी हर तरफ अवैध भवन तैयार हो जाते हैं।

शुरुआती दौर में सील के बाद  भी कैसे हो जाता है निर्माण पूरा ?

जब कोई व्यक्ति मकान बनाने को सोचता तो सबसे पहले मानचित्र स्वीकृत करानी होती है। कुछ ऐसे भी  प्रतिबंधित क्षेत्र है जहां किसी कीमत पर नियमानुसार भवन निर्माण हेतु मानचित्र स्वीकृत हो ही नहीं सकता. ऐसे में व्यवसायिक भवन स्वामी अथवा ठेकेदार बिना नक्शा पास कराए ही निर्माण कार्य शुरू कर देता है। और किसी जागरूक नागरिक द्वारा जब शिकायत की जाती है तो वीडीए की टीम मौके पर पहुँचती है, निर्माणाधीन भवन पर ‘सीलिंग’ का नोटिस चिपकाया जाता है, तस्वीरें खींची जाती हैं और सरकार को गुमराह करने वाला खेल, खेल लिया जाता है। इसके बाद विभाग के ही सुझाव पर रात के अंधेरे में, पैसे के दम पर सील तोड़ दी जाती है। जिसके बाद नियम क़ानून को दर किनार कर निर्माण कार्य दोबारा चालू हो जाता है और इमारत खड़ी हो जाती है। बाद में फर्जी दस्तावेजों के जरिए निर्माण को वैध ठहराने की कोशिश की जाती है। और यह सब जानते हुए भी जोनल साहब मौन धारण किये रहते हैं।

उच्चाधिकारी अंजान या दाल में है कुछ काला ?

सूबे की सरकार के तमाम दावे के बावजूद फल फूल रहे भ्रष्टाचार से वाराणसी विकास प्राधिकरण के उच्चाधिकारी भी संदेह के घेरे में हैं। यह जग जाहिर है कि कोई भी कार्रवाई ऊपर के आदेश के बिना संभव नहीं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दावे को खुलेआम झूठा साबित करने वाले जोनल अधिकारी संजीव कुमार की कार्यशैली पर जिले के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अब तक कोई सवाल नहीं उठाया गया। प्राधिकरण के वीसी पुलकित गर्ग  भी चुप्पी साधे हुए हैं। ऐसे में अब यह सवाल भी उठ रहा है कि  क्या भ्रष्टाचार की गंगा में सब मिलकर गोते लगा रहे हैं? क्या नीचे से ऊपर तक अवैध वसूली में बंदरबाट हो रही है ? जनता के बीच अब यह धारणा बनती जा रही है कि प्रशासन की चुप्पी उनकी संलिप्तता की ओर इशारा करती है। परंतु जब संरक्षक ही भक्षक बन जाएँ तो कानून सिर्फ किताबों में सिमट कर रह जाता है।

कानून क्या कहता है?

  • बिना स्वीकृत नक्शे के कोई भी निर्माण अवैध है।
  • अवैध निर्माण पर तत्काल रोक लगाने और उसे ध्वस्त करने का अधिकार वीडीए को है।
  • दोषी अधिकारियों पर निलंबन और विभागीय कार्रवाई का प्रावधान है।
  • आपराधिक मामला भी दर्ज हो सकता है।

काशी को बचाना है तो भ्रष्टाचार से लड़ना होगा

  • काशी सिर्फ इमारतों का शहर नहीं है, यह भारत की आत्मा है, विरासत है, आस्था है। अगर आज हम चुप रहे तो कल हमारी आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी।
  • संजीव कुमार जैसे अफसरों को जवाबदेह बनाना होगा।
  • वीडीए में व्यापक सुधार की जरूरत है। काशी को बचाना है तो भ्रष्टाचार की गंगा को रोकना ही होगा। आज जरूरत है आवाज उठाने की, सवाल करने की और जिम्मेदारों को कटघरे में खड़ा करने की। काशी की पहचान को बचाने के लिए हर एक जिम्मेदार नागरिक को भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ रणभेरी बजानी ही होगी...और यह रणभेरी अब रुकेगी नहीं।

रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए......
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