काव्य-रचना
झूठे दहेज के मुकदमे.....
मैंने दहेज नहीं माँगा साहब मैं थाने नहीं आउंगा......
अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा.....
माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था.....
सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था.....
पर यकीन मानिए साहब मैंने दहेज नहीं माँगा.....
मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है.....
महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है.....
चाहत मेरी भी बस ये थी कि माँ बाप का सम्मान हो.....
परिवार के साथ रहना इसे पसंन्द नहीं है.....
कहती है मुझे ले चलो इस घर से दूर.....
किसी किराए के आशियाने में.....
कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में.....
शायद समय आ गया था, चैन और सुकून खोने का.....
यकींन माँनिये साहब, मैंने दहेज नहीं मांगा.....
बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फोन आया.....
बुलाने पर थाने गया, छुपकर कहीं नहीं भागा.....
मैं कहा यकींन मानिए साहब, मैंने दहेज नहीं माँगा...
अजय कुमार दूबे