भ्रष्ट अधिकारियों को जेल क्यों नहीं भेजती सरकार ?

- पीएम के संसदीय क्षेत्र को भ्रष्ट अधिकारियों ने समझ लिया लूट का खजाना
- लूट का सबसे बड़ा अड्डा बना वाराणसी विकास प्राधिकरण
- सीएम के तीन दूत भी नहीं रोक पा रहे वीडीए में व्याप्त भ्रष्टाचार
- हर निर्माण पर अवैध वसूली का अफ़सर कर रहे हैं धंधा
- ऊपर से लेकर नीचे तक सबका होता है हिस्सा
- चप्पे चप्पे पर हो रहा अवैध निर्माण, फिर भी सीएम योगी का क्यों नहीं जा रहा ध्यान
- काशी की आत्मा को निगल रही है कंक्रीट की दीवारें, गंगा तट से लेकर कुण्ड तालाबों तक सब हो रहा नीलाम
- काशी बिक रही है और सरकार मौन है, आखिर भ्रष्ट अधिकारियों पर क्यों नहीं गिरती गाज़ ?
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र, एक धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नगर, जिसे दुनिया 'काशी' के नाम से जानती है। जिस काशी को पुनर्जीवित करने के नाम पर हजारों करोड़ रुपये की परियोजनाएं चलाई गईं, उसी काशी को आज भ्रष्टाचार और अवैध निर्माण निगल रहे हैं। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) जिसे शहर के सुनियोजित विकास के लिए गठित किया गया था अब अवैध वसूली, रिश्वतखोरी और नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले अधिकारियों का अड्डा बन चुका है। सवाल है: सरकार कब तक मौन रहेगी? और ये भ्रष्ट अधिकारी कब तक लूट की छूट पाते रहेंगे ?
वाराणसी विकास प्राधिकरण मतलब भ्रष्टाचार का गढ़
वाराणसी विकास प्राधिकरण की स्थापना शहर के नियोजित और संतुलित विकास के उद्देश्य से हुई थी। लेकिन आज यह संस्था नियमों को ताक पर रखकर केवल ‘अवैध निर्माण करवाने वाली फैक्ट्री’ बन चुकी है। यह सर्वविदित है कि कोई भी निर्माण तब तक नहीं हो सकता जब तक कि जेई, एई और ज़ोनल से लेकर वीसी तक को चढ़ावा न चढ़ जाए। छोटे से मकान का नक्शा पास कराने से लेकर बहुमंज़िला कॉम्प्लेक्स तक हर मंज़िल पर रिश्वत की परत चढ़ती है। विभागीय सूत्र सहित एक स्टिंग के जरिए रणभेरी को मिले दर्जनों ऑडियो क्लिप ने यह साबित कर दिया है कि ज़ोनल अधिकारियों के अधीनस्थ जेई और सुपरवाइजर आऊट साइडरों एवं स्थानीय दलालों के ज़रिए फिक्स रेट पर निर्माण की अनुमति देते हैं, चाहे वह निर्माण पूरी तरह गैरकानूनी ही क्यों न हो। इन फिक्स रेट्स में ऊपर तक हिस्सा तय होता है। एक ऑडियो में ज़ोन 1 के जोनल अफसर शिवाजी मिश्रा को बात चीत स्पष्ट शब्दों में यह कहते हुए सुना जा रहा है कि...सचिव नहीं लेते, अपर सचिव नहीं लेते या फिर कौन नहीं लेता...? सूत्र बताते हैं कि यह बात चीत रूपये के बंटवारे के समय की है।
गंगा घाट से लेकर गली मोहल्ले तक बिक रहा
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की ज़मीनी हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे वीडीए अफ़सर हर गली, हर घाट से लेकर कुण्ड तालाब के आस पास के निर्माण हेतु प्रतिबंधित जमीनों पर भी अवैध निर्माण कराने में पूरी बेशर्मी से लगे हुए है। अफसरों की मक्कारी का आलम यह है कि शहर में हर तरह एचएफएल एरिया से लेकर सड़क के किनारे नाले के ऊपर भी अवैध निर्माण जोरों पर हो रहे हैं। गंगा किनारे बनाए जा रहे आलीशान होटल, नगवा में गंगा तट पर सुखानंद बाबा आश्रम के पास निर्मित हो रहा आलीशान इमारत, भेलूपुर में एच एफ एल पर बनाए जा रहे व्यवसायिक भवन, अस्सी और दुर्गाकुंड में संकरी गलियों में उग आईं कई चार मंज़िला इमारतें, रामघाट में गरीबों के अस्पताल को अवैध बैनामा के जरिए बेच कर बनाए जा रहे होटल, सुंदरपुर के बृज इंक्लेव कॉलोनी में कब्रिस्तान की जमीन पर निर्मित हुए सद्दाम के फ्लैट, अस्सी पर मारवाड़ी सेवा संघ के पीछे बन रहे आलिशान होटल, रविन्द्र पूरी के हाई फ्लड लैंड पर एक दर्जन अवैध इमारत, यह सब उस सुनियोजित भ्रष्टाचार की परिणति है, जिसमें कानून का डंडा केवल गरीबों पर चलता है। शहर में वीडीए की वैध अनुमति बिना या फर्जी मानचित्रों के आधार पर सैकड़ों आलीशान व्यवसायिक इमारतें खड़ी हो चुकी हैं। जिससे एक तरफ़ विभाग के कर्मचारियों से लेकर अफ़सर तक बेतहाशा चल अचल संपति के मालिक बन चुके हैं वहीं दूसरी तरफ वीसी पुलकित गर्ग के भ्रष्ट नेतृत्व में इस विभाग ने नियमों को दर किनार कर अवैध निर्माणों के जरिए सरकारी राजस्व को करोड़ों रूपये की क्षति पहुंचाने का संगीन अपराध किया है।
सूत्र बताते हैं कि जोन 1 के ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार के अधीन ऐसे कई स्पॉट हैं जिन्हें ठेके पर दे दिया गया है। वहाँ तय राशि देने वाले बिल्डरों को बिना किसी निरीक्षण के निर्माण करने की खुली छूट मिली हुई है। रणभेरी की स्टिंग में मिले दर्जनों ऑडियो क्लिप से साफ हो गया है कि वीडीए के अंदर भ्रष्टाचार संस्थागत रूप ले चुका है। मानचित्र स्वीकृति के बिना निर्माण की इजाज़त के नाम पर किसी भी बिल्डर से लाखों की डील की जाती है, जिसमें अवर अभियंता से लेकर वीसी साहब तक को हिस्सा जाता है। वीडीए में व्याप्त भ्रष्टाचार के तमाम प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष सबूतों का यदि सरकार संज्ञान ले ले तो वाराणसी विकास प्राधिकरण के कई अधिकारियों का जेल जाना तय है।
वीडीए बोर्ड में शामिल सीएम के तीन दूत भी बेबस क्यों ?
सीएम योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी में कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर निगरानी के लिए वीडीए के बोर्ड मेंबर में अपने तीन प्रतिनिधियों को नियुक्त किया। नाम है अम्बरीश सिंह भोला, साधना वेदांती और प्रदीप अग्रहरी। इन तीनों को वीडीए बोर्ड का सदस्य बनाकर उम्मीद की गई थी कि वे हर कार्रवाई पर नजर रखेंगे। लेकिन पिछले तीन वर्षों की बोर्ड बैठक की कार्यवाही देखने पर स्पष्ट होता है कि या तो इन प्रतिनिधियों को सूचित ही नहीं किया गया, या उन्होंने सवाल उठाने से परहेज़ किया।
प्राप्त जानकारी से यह भी स्पष्ट है कि जब-जब किसी प्रतिनिधि ने अवैध निर्माण या फर्जी नक्शा पास होने की शिकायत उठाई, उसे स्थानीय मामला बताकर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। सूत्र यह भी बताते हैं कि रसूखदारों के कई ऐसे अवैध निर्माण हैं जिनके बनवाने का जिम्मा सीएम के खासमखास स्वयं ले लेते हैं। अब सवाल यह है कि ये दूत भी चुप क्यों हैं ? क्या उन्हें भी कोई दबाव है या वे स्वयं भी इस चक्रव्यूह का हिस्सा बन चुके हैं ?
हाई कोर्ट और सीएम के आदेश की भी धज्जियां उड़ाते हैं भ्रष्ट अधिकारी
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कई बार वाराणसी में गंगा के किनारे हो रहे अवैध निर्माणों को रोकने का आदेश दिया है। सीएम योगी भी विकास प्राधिकरण को फटकार लगा चुके हैं, मगर ज़मीनी हकीकत यह है कि कोर्ट के आदेश के बावजूद निर्माण चलता रहता है। सीएम के आदेश को भी ठेंगे पर रख दिया जाता है। रसूख वालों को आनन फानन में बिना दस्तावेजों के सत्यापन किए मानचित्र स्वीकृत कर देना, कोर्ट में झूठी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देना, और अवमानना की चेतावनी को अनदेखा करना यह सब वीसी कार्यालय की रोजमर्रा की कहानी बन चुकी है।
पिछले वर्ष एक अवैध बिल्डिंग पर हाई कोर्ट की रोक के बावजूद उसके पांचवे फ्लोर तक का निर्माण पूरा हो गया। जब कोर्ट ने सख्ती की तो वीडीए ने कार्रवाई के नाम पर केवल एक शो कॉज नोटिस चस्पा कर दिया। न कोई गिराया गया, न कोई जिम्मेदार अधिकारी निलंबित हुआ।
प्रशासन भी वीडीए का बना है सहयोगी, सफेदपोशों का भी मौन संरक्षण
जब एक गरीब अपनी ज़मीन पर एक कमरा भी बनाता है तो स्थानीय थाने की पुलिस और वीडीए की टीम रातोंरात पहुंच जाती हैं। लेकिन जब धन्नासेठों की करोड़ों की बिल्डिंग बिना अनुमति या मानचित्र के बन रही होती है, तब प्रशासन की आंखें बंद क्यों रहती हैं ? अब सूत्र बताते हैं कि बड़े मामलों में जिला प्रशासन से लेकर स्थानीय थानों तक सबको मैनेज किया जाता है सबका 'हिस्सा’ पहुंचता है। यही वजह है कि जब भी किसी अवैध निर्माण को वीडीए सील करके पुलिस अभिरक्षा में सौंप देता है तब निर्माण रुकने के बजाए और भी तेज़ गति से दिन के साथ साथ रात में भी होने लगता है। जिससे यह साबित होता है कि अवैध निर्माणों में स्थानीय थाने को भी उसका हिस्सा मिलता है।
बिल्डरों के चंदे से चमकाते हैं नेतागिरी
बेतरतीब और अनियोजित निर्माण की बदौलत शहर की बदहाल होती तस्वीर के पीछे स्थानीय जन प्रतिनिधियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। स्थानीय विधायक हों या पार्षद कोई भी खुलकर इस मुद्दे पर न बोलता है, न कार्रवाई की मांग करता है। चुनावी फंडिंग और बिल्डरों से रिश्ते यही मौन का मुख्य कारण है। नतीजा यह है कि काशी के हर कोने कोने का भ्रष्ट व नक्कारे अफसरों ने अपने स्वार्थ में दाम लगा दिया है। वह काशी जहां हर गली में की अपनी एक गाथा और अलग पहचान होती थी, आज उन गलियों ने अपनी पहचान खो दी है। जिन गलियों से होकर गंगा की हवा गुजरती थी, वहाँ होटलों की एसी से अब गर्म हवाएं निकलती है। शहर को स्मार्ट बनाने का मास्टर प्लान असल में केवल कागज़ों में है, और ज़मीनी हकीकत सत्ता के दलालों के पास। जो इमारत ग़रीबों के अस्पताल के लिए दान में दिए गए थे, वे होटल में बदल दिए गए हैं।
भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं ?
काशी की धरती पर भ्रष्टाचारी अफसर अब खुलेआम नंगा नाच कर रहे है, और सरकार खामोश दर्शक बनी हुई है। ज़मीनों पर कब्ज़ा, अवैध निर्माण, फ़र्ज़ी नक्शों पर निर्माण की मंज़ूरी...ये सब अब सामान्य बात हो गई है। ज़िम्मेदार अधिकारी बेखौफ हैं, क्योंकि उन्हें सत्ता का अप्रत्यक्ष संरक्षण प्राप्त है। सवाल उठता है कि आखिर इन भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही ? क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति सिर्फ मंचीय भाषणों तक सीमित है ? जब जमीनी हालात इतने भयावह हैं, तो क्या उनकी ईमानदारी पर सवाल नहीं उठते ? क्या उनका प्रशासन जानबूझकर आँखें मूँद लेता है, क्योंकि भ्रष्टाचार की जड़ें सत्ता के गलियारों तक फैली हुई हैं ? काशी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। पर यहां विकास के नाम पर सिर्फ दीवारें सजाई जा रही हैं, जबकि शहर की आत्मा को खोखला किया जा रहा है। संतों की नगरी को होटल, मॉल और बहुमंज़िला इमारतों की मंडी में बदला जा रहा है। अगर जनता अब भी नहीं जागी, तो अगली पीढ़ी को एक और ‘कंक्रीट दिल्ली’ मिलेगी, जहां संस्कृति का दम घुटेगा, और संतों की परंपरा सिर्फ किताबों तक सिमट जाएगी। सरकार को बताना होगा कि भ्रष्ट अधिकारियों पर चुप्पी क्यों ? क्या काशी की विरासत बिक चुकी है ? अगर नहीं, तो कार्रवाई कब ? जनता अब सवाल कर रही है।
वीडीए में व्याप्त भ्रष्टाचार पर बोले लोग ......
वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) में भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच गया है। हर निर्माण कार्य में अधिकारियों द्वारा अवैध वसूली आम बात हो गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सख्त हिदायतों के बावजूद अधिकारी मनमानी कर रहे हैं, जिससे सरकार की छवि धूमिल हो रही है। वीसी से लेकर जोनल अफसर तक पर गंभीर आरोप हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दिखावा होता है। शासन को चाहिए कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ त्वरित और कठोर कार्रवाई करे, ताकि जनता का भरोसा कायम रहे और विकास कार्य ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ पूरे हों।
सुधा सिंह, सेंट्रल बार कोषाध्यक्ष
विकास प्राधिकरण अब भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है, जहां ईमानदारी और जवाबदेही खत्म हो चुकी है। जोनल अधिकारी, जेई और बाबू सब अवैध वसूली में लिप्त हैं। पूरे शहर में अवैध निर्माण धड़ल्ले से हो रहा है। सीलिंग की कार्रवाई महज दिखावा बन गई है, असल में इसके पीछे मोटी डील होती है और रसूखदारों को बचा लिया जाता है। नियम-कानून की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं और आम जनता के हितों की अनदेखी हो रही है। मिलीभगत का यह खेल शहर की शक्ल और कानून दोनों को बिगाड़ रहा है।
विकास सिंह, अधिवक्ता
वाराणसी विकास प्राधिकरण को चाहिए कि वह निर्माण कार्य शुरू होने से पहले ही नियमों के तहत जांच कर अवैध निर्माण रोके, लेकिन यहां उल्टा होता है। जब निर्माण लगभग पूरा हो जाता है, तभी सील की कार्रवाई की जाती है, वह भी आधी-अधूरी। कई बार सील के बावजूद अंदर निर्माण कार्य जारी रहता है, जिससे स्पष्ट होता है कि यह सब महज दिखावा है। ऐसी कार्रवाई से न तो अवैध निर्माण रुकते हैं और न ही दोषियों पर कोई प्रभाव पड़ता है। प्राधिकरण की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठते हैं।
मदन गोपाल पांडे, असि
नगर में हो रहे अवैध निर्माणों के लिए मुख्य रूप से वाराणसी विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अधिकारी जिम्मेदार हैं। यदि ये अधिकारी ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करते, तो नगर में अवैध निर्माण की गुंजाइश ही नहीं होती। लेकिन निजी लाभ और रिश्वतखोरी की प्रवृत्ति के चलते ये लोग गलत कार्यों को भी वैध रूप देने का प्रयास करते हैं। नियमों को ताक पर रखकर, यह तंत्र न सिर्फ शहर की संरचना को बिगाड़ रहा है, बल्कि आम जनता के विश्वास को भी चोट पहुंचा रहा है।
अतुल कुमार शर्मा, व्यवसायी, शिवाला
वाराणसी विकास प्राधिकरण (बीडीए) का काम अवैध निर्माण रोकना है, लेकिन आज वही प्राधिकरण अवैध कार्यों में संलिप्त दिख रहा है। काशी की गलियों और कॉलोनियों में जो भी अवैध निर्माण हो रहे हैं, उनके पीछे बीडीए के अफसरों और कर्मचारियों की मिलीभगत है। पहले ये खुद निर्माण शुरू करवाते हैं, फिर दिखावे के लिए कार्रवाई का नाटक करते हैं। अंत में लेनदेन कर मामला रफा-दफा कर देते हैं। यही वजह है कि शहर में अवैध निर्माण बेलगाम होते जा रहे हैं।
लालदास कनौजिया, नगवां
पार्ट-35
रणभेरी लड़ अगले अंक में पढियें ..... वीडीए के भ्रष्टाचारपर जनप्रतिनिधियों की चुप्पी क्यों ?