आत्महत्या के बढ़ते मामले हैं इसका सबूत, बच्चों को तोड़ देती है दूसरों से तुलना
पैरेंट्स द्वारा बच्चों को डराना, धमकाना, पारिवारिक समस्याएं और पढ़ाई को लेकर दबाव, बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर डालती है गंभीर असर
(रणभेरी) वाराणसी : "सुबह छह बजे उठना, सात बजे स्कूल के लिए दौड़ लगाना, दो से तीन बजे के बीच घर आना, खाना खाकर ट्यूशन जाना और फिर वहां से रात में आठ से नौ बजे के बीच घर लौटना। डिनर करके स्कूल और ट्यूशन का होमवर्क पूरा करना। रात में 12 से 1 बजे के बीच सोना।" क्या आपके टीनएज बच्चे भी इसी रूटीन को फॉलो कर रहे हैं। अगर हां, तो कहीं न कहीं ये उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। अच्छा करियर बनाने और लाखों का पैकेज पाने की दौड़ में शामिल हर बच्चा अब एक अनकही रेस में शामिल है। जहां थकना, रुकना या हारना मना है। यह बात सही है कि माता-पिता हमेशा बच्चों के सुनहरे भविष्य की मजबूत नींव बनाने के लिए सख्ती करते हैं। लेकिन इस सख्ती के बीच भावनात्मक सहारे की भी बच्चों को जरूरत होती है।
वाराणसी में मंगलवार को हाईस्कूल के एक स्टूडेंट ने सुसाइड कर लिया। वजह सिर्फ इतनी थी कि उसके पिता ने नए कपड़े दिलाने से मना कर दिया था। इसके बाद वह घर से निकला और चलती ट्रेन के आगे कूद गया। उसको बचाने के लिए आसपास के लोग दौड़े, लेकिन तब तक वह ट्रेन से कट चुका था। घर से जाते वक्त उसने अपने पिता से कहा आप लोग छोटे भाई को ज्यादा प्यार करते हैं तो इस घर में मेरी क्या जरूरत हैं। ये घटना हमें ये सोचने पर मजबूर कर देती है कि इतने छोटे बच्चे के दिमाग में ये सब बातें आई कैसे। दरअसल, ये बातें माता पिता ही अपने बच्चों के मन में मजाक में डाल देते हैं उन्हें लगता है कि वह मजाक में कह रहे हैं, लेकिन कई बातें बच्चों के मन में लग जाती है और धीरे धीरे वह उनके लिए नासूर बन जाती है। यही कारण है कि वाराणसी समेत पूरे भारत में बच्चों के सुसाइड करने के मामले थम नहीं रहे।
इसलिए बढ़ रहे हैं आत्महत्या के मामले
बच्चों में बढ़ता तनाव आत्महत्या का कारण भी बन रहा है। 25% किशोर और 50 फीसद से 75 फीसद किशोरियों की आत्महत्या का कारण मानसिक तनाव है। किशोरों में आत्महत्या की प्रवृत्ति में 6 फीसद की कमी आई है। चिंताजनक बात यह है कि किशोरियों में 7 फीसद की वृद्धि हुई है। ऐसे में साफ है कि आज के समय में तनाव में आकर बच्चे आत्मघाती कदम उठा रहे हैं।
बच्चों को तोड़ देती है तुलना
पढ़ाई को लेकर बच्चों की दूसरों से तुलना करना बहुत ही आम बात है। अक्सर पेरेंट्स और टीचर्स मानते हैं कि इससे बच्चे मोटिवेट होंगे। लेकिन अफसोस, यह तुलना बच्चों को अंदर से तोड़ देती है। वे मानसिक तौर पर एक संघर्ष की स्थिति में आ जाते हैं। वे तनाव में आ जाते हैं और खुद को कमतर समझने लगते हैं। ऐसे में बच्चों पर माता—पिता और टीचर्स की अपेक्षाओं का अत्यधिक दबाव बढ़ता है। जिसका असर उनकी मेंटल हेल्थ और नींद दोनों पर पड़ता है। एक नॉर्वेजियन अध्ययन के अनुसार लंबी और गहरी नींद सेहतमंद रहने के लिए बहुत जरूरी है। वहीं एक अन्य जर्मन स्टडी के अनुसार अगर आप हर रात आठ घंटे की पर्याप्त नींद लेते हैं तो जीवन में ज्यादा संतुष्टि महसूस करते हैं। पर्याप्त नींद के बिना आपका फोकस कमजोर होने लगेगा।
इसलिए बढ़ रहा है तनाव
आज के समय में बच्चों पर पढ़ाई का काफी प्रेशर है, जो उनके तनाव का कारण भी है। पढ़ाई में अच्छी परफॉर्मेंस का दबाव, असफलता का डर और अपेक्षाओं का बोझ उन्हें चिंता और अवसाद का शिकार बना रहा है। भारत के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, देश में डिप्रेशन से जूझ रहे 40 फीसद से 90 फीसद टीनएजर्स कई अन्य परेशानियों का सामना भी कर रहे हैं। वे कई मानसिक चुनौतियां झेल रहे हैं और कई बार मादक पदार्थों का सेवन तक करने लगते हैं। कई बार टीनएज बच्चे बुलिंग, नस्लवाद और रूढ़िवादिता का सामना करते हैं, जिससे वे अकेलापन महसूस करने लगते हैं। अधिकांश बच्चे इस विषय में किसी दूसरे की मदद भी नहीं मांगते हैं। ऐसे में ये तनाव पढ़ाई में उनका प्रदर्शन कमजोर करता है और उनका तनाव और बढ़ जाता है।
अनकहे दबाव में हैं स्टूडेंट्स
आज हर बच्चे पर पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव है। यह प्रेशर उनकी फिजिकल और मेंटल दोनों हेल्थ को कहीं न कहीं प्रभावित करता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की ओर से किए एक सर्वे में सामने आया कि भारत में 12 से 13 फीसद स्टूडेंट्स मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। पढ़ाई का दबाव बढ़ने के साथ यह संघर्ष भी बढ़ता जाता है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप समय पर बच्चों की मनोस्थिति को पहचानें और उसे संभालें।
ऐसे समझे बच्चों को, बनें सपोर्ट सिस्टम
- अपने बच्चों को चुनौतियों का आत्मविश्वास के साथ सामना करना सिखाएं।
- . शैक्षणिक संस्थाओं को स्टूडेंट्स के लिए एक मजबूत स्वस्थ माहौल देने और प्रणाली बनाने की जरूरत है।
- . बच्चों से तनाव और परेशानियों को लेकर खुलकर बात करें। उन्हें बताएं कि वो आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
- पाठ्यक्रम में माइंडफुलनेस का अभ्यास करवाएं।
- .बच्चों को लेकर लचीलापन अपनाएं। उनकी बातें समझने की कोशिश करें।
- बच्चों को तनाव प्रबंधन करना सिखाएं, इससे वे तनाव से लड़ सकेंगे।
- .अपने बच्चों की दूसरों से तुलना न करें। अगर आप उन्हें मोटिवेट करना चाहते हैं तो पॉजिटिव तरीके से करें।
इन बातों का बच्चों के मन पर पड़ता है असर
1. तुम्हें रिश्तेदारों के यहां से लाए थे : बच्चों को यह कहना कि तुम रिश्तेदारों के यहां से लाए गए हो। एक बार या दो बार कहा जाए तो अच्छा लगता है, लेकिन बार- बार यही बातें की जाएं तो बच्चों को बुरी लग सकती हैं। बच्चे इतने छोटे होते हैं कि वे बात की गंभीरता या मजाक को नहीं समझ पाते।
2. रिश्तेदारों के सामने डांटने : डराने का नाटक-अक्सर ही जब पूरे परिवार या यार-दोस्त साथ होते है तो हंसने-हंसाने के लिए बच्चे को डांटने-डपटने का नाटक किया जाता हैं। ऐसे में बच्चों को बुरा लगता है और कई बार तो बच्चे रोना भी शुरू कर देते हैं। माता-पिता के इस तरह के व्यवहार से बच्चे उनसे दूरी बनाने लगते हैं।
3. कद-काठी पर मजाक उड़ाना : पेरेंट्स कई बार बच्चे की कद-काठी या फिर उनकी रंगत पर भी मजाक करते हैं। चाहे माता-पिता बच्चों को प्यार से या मजाक में ही ये चीजें क्यों ना कहें लेकिन ये चीजें बच्चों को दुखी जरूर करती हैं।
4. हमारे बच्चे तो नालायक हैं : पेरेंट्स बच्चों को मजाक में ही कई बार नालायक कहते हैं। ऐसे में देखा यह जाता है कि बच्चे इन बातों को सच मान लेते हैं और उनके आत्मविश्वास में कमी आने लगती हैं।