वो चहचहाती गौरैया... न जाने मेरे आंगन से दूर कहां उड़ चली !

वो चहचहाती गौरैया... न जाने मेरे आंगन से दूर कहां उड़ चली !

ज्यादातर पक्षियों के खत्म होने के पीछे इंसान का हाथ पर्यावरणीय चेतना व व्यक्तिगत प्रयास से ही होगा संरक्षण 

 पर्यावरण को बेहतर बनाने में अपना योगदान देने वाली गौरैया का विलुप्त होना चिंताजनक

विश्व गौरैया दिवस 

राहुल सावर्ण

वाराणसी (रणभेरी सं.)। क्या आपको वो प्यारी सी चिड़िया याद है..जो कभी हमारे घर का हिस्सा हुआ करती थी। इतनी अपनी कि जब चाहे मुंडेर पर आ बैठे, पेड़ पर फुदकने लगे या छत पर डेरा बना ले। और हम भी उसके लिए दाना-पानी रखते थे। गौरैया..इतनी अपनी थी कि कभी लगा ही नहीं, उसे उड़ाकर भगा दिया जाए। लेकिन कब ये चिड़िया हमारे दृश्य से गायब होने लगी..पता नहीं चला। स्थिति ये हो गई है कि उसके संरक्षण के लिए ह्यविश्व गोरैया दिवसह्ण मनाया जाने लगा। आज उसी प्यारी छोटी सी चिड़िया को समर्पित दिन है। गौरैया..जो कभी हमारे घर-आंगन का अभिन्न हिस्सा थी, आज तेजी से घटती संख्या के कारण खतरे में है। ह्यविश्व गौरैया दिवसह्ण का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण संतुलन में गौरैया की भूमिका के बारे में बताना और इसे बचाने के लिए प्रेरित करना है।गौरैया इकोसिस्टम की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह कीट नियंत्रण में मदद करती है और बीज फैलाकर प्रकृति को हरा-भरा रखने में अहम योगदान देती है। लेकिन शहरीकरण, प्रदूषण, कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग और घोंसलों की कमी ने इनकी आबादी को बहुत कम कर दिया है। विश्व गौरैया दिवस हमें याद दिलाता है कि अगर हमने इस छोटी चिड़िया को नहीं बचाया तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ सकता है।

संकट में है कई पक्षियों का जीवन

जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियां जैसे वनों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण और कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग, पक्षियों के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं। तापमान में वृद्धि और मौसम में हो रहे निरंतर बदलावों से गौरैया और अन्य पक्षियों का जीवन संकट में है। यह परिवर्तन उनके भोजन, आश्रय और प्रजनन की प्रक्रियाओं को प्रभावित कर रहा है, जिससे उनकी संख्या में गिरावट हो रही है।

हरियाली को बढ़ावा देना आवश्यक

गौरैया की घटती आबादी का मुख्य कारण शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन है। जब तक हम अपनी जीवनशैली में बदलाव नहीं लायेगे, तब तक इसके संरक्षण के प्रयास अधूरे रहेंगे। घरों में गौरैया के लिए दाना पानी की व्यवस्था, कृत्रिम घोंसले बनाना, और शहरों में हरियाली बढ़ाना, इसके संरक्षण के उपाय हो सकते हैं। विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, जहां कंक्रीट की दीवारें और शीशे की खिड़कियां पक्षियों के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं, वहां हरियाली को बढ़ावा देना बेहद आवश्यक है। 

आइए मिलकर गौरैया को बचाएं

आज का दिन हमें उस छोटी सी चहकती हुई गौरैया की याद दिलाता है, जो कभी हमारे घर-आंगन की शान हुआ करती थी। विश्व गौरैया दिवस हमें जागरूक करता है कि हमारी नन्हीं दोस्त को हमारी मदद की जरूरत है। आज का दिन ये संकल्प लेने का दिन है कि इसे सिर्फ औपचारिकता में न बदल दें बल्कि एक संकल्प लें कि हम गौरैया के लिए कुछ करेंगे। हमारे घरों में उसके लिए दाना-पानी रखेंगे। वो आए तो उसका स्वागत करेंगे और उसे महसूस कराएंगे कि यहां उसका भी एक हिस्सा है। उसकी चहचहाहट से हमारा घर भी खिल जाएगा। और हमारा छोटा सा प्रयास न सिर्फ गौरैया को बचाएगा, बल्कि पर्यावरण को भी हरा-भरा और खुशहाल रखेगा।

ज्यादातर पक्षियों के खत्म होने के पीछे इंसान का हाथ

ज्यादातर पक्षियों के खत्म होने के पीछे इंसान का हाथ है। मसलन, दुनिया का इकलौता 'राब्स फ्रीज-लिब्ड ट्री फ्राग-टफी' मेढक 2016 में मर गया। उसे अटलांटा बोटेनिकल गार्डेन में रखा गया था। मगर उसके प्रजनन के लिए उसकी प्रजाति का कोई मेढक नहीं था। अब उसकी पीढ़ी धरती पर नहीं है। अफ्रीका में जेब्रा की एक उप-प्रजाति थी, जिसका नाम था क्वाग्गा। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक शिकारियों ने इनका इतना शिकार किया कि ये हमेशा के लिए विलुप्त हो गए। 1971 में इक्वाडोर में खोजा गया पिंटा आइलैंड टारटाय यानी कछुआ भी खत्म हो चुका है। दुनिया का आखिरी थाईलैसीन, जिसका नाम बेंजामिन था, जिसे तस्मानिया टाइडर कहते थे, वह भी 1936 में खत्म हो गया।

पर्यावरणीय चेतना व व्यक्तिगत प्रयास हों

गौरैया सहित पक्षियों की घटती आबादी केवल पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि हमारे जीवन से जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र में गहरी गड़बड़ी का संकेत है. इसके संरक्षण के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा। हमें पुराने दिनों की तरह अपने घरों और आंगन में गौरैया को वापस लाने के लिए अपने प्रयासों को तेज करना होगा। हमें अपने घरों के आसपास छोटे-छोटे कदम उठाने होंगे, जैसे कि पक्षियों के लिए दाना-पानी रखना और उनके आवास के अनुकूल वातावरण तैयार करना। इसके अलावा, पेड़-पौधों को बढ़ावा देना और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना भी आवश्यक है। इस तरह के प्रयास से हम गौरैया और अन्य पक्षियों को सुरक्षित रख सकते हैं।

सबसे अधिक प्रजातियां अफ्रीका और दक्षिण एशिया की हैं

विलुप्त जीव-जंतुओं में पक्षी-वर्ग की विशेष प्रजातियां शामिल हैं। सबसे अधिक प्रजातियां अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों में लुप्त हुई हैं। भारत में एक समय था, जब चिड़ियों की बारह सौ प्रजातियां पाई जाती थीं, लेकिन अब इनमें से पचास से अधिक प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। एक अध्ययन के अनुसार पिछले पचास वर्षों में पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां धरती से लुप्त हो गईं और कई लुप्त होने के कगार पर हैं। गिद्ध और कठफोड़वा जैसे पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। विकास संबंधी अस्थायी नीतियों और प्रकृति के प्रति बढ़ती असंवेदशीलता इसकी वजह बताई जा रही है।

गोल्डन ईगल, बाज, गौर, गोडावन, सारस, तिलोर पर भी संकट

हिमालय के तलहटी क्षेत्र, पश्चिमी हिमालय के ऊंचे क्षेत्र, पूर्वी हिमालय का क्षेत्र, दक्षिण भारत तथा गंगा बेसिन क्षेत्र, भारतीय मरुस्थल थार रेगिस्तान, इंडोमलाया उपखंड जैसे क्षेत्रों में पाए जाने वाले अनेक पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है। गोल्डन ईगल, बाज, गौर, गोडावन, सारस, तिलोर, हाक, निकोबारी कबूतर के अस्तित्व पर खतरा दिख रहा है। हिमाचल प्रदेश भारत का ऐसा हरियाली संपन्न प्रदेश है, जहां जैव विविधताएं मौजूद हैं। यहां पक्षियों की अनेक प्रजातियां निवास करती हैं। इनका संरक्षण लगातार चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। यहां पौंग बांध में हर साल मध्य एशिया और यूरोप की चौवन पक्षी प्रजातियां आती हैं।