7 मेडल पाकर विद्यार्थियों ने भरी हौसलों की उड़ान
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केंद्रीय मंत्री ने कहा- शिक्षा के इस्तेमाल से ही होता है राष्ट्र निर्माण,जल्द ही अस्पताल का होगा उद्घाटन
वाराणसी (रणभेरी सं.)। पर्यटन व सांस्कृतिक मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि हमारी मनीषी परंपरा में इसकी ऐसी संज्ञा दिया और विश्व इस बात को स्वीकार करता है कि फॉर्मल एजुकेशन सिस्टम किसी देश, किसी सभ्यता, किसी संस्कृत में प्रारंभ हुआ था तो वह भारत की धरती से हुआ था और हमारे ऋषियों-मुनियों ने यह जानते हुए कि विद्यार्थियों का विद्यार्थी भाव जीवनपर्यंत बना रहना चाहिए। उसके निरंतर नूतन भाव बना रहना चाहिए। इसके लिए इस अवसर को शिक्षांत समारोह के बजाय दीक्षांत समारोह की संज्ञा दी थी, आज आप लोग एक लक्ष्य को प्राप्त किए हैं। यह बातें उन्होंने सारनाथ स्थित केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान के अतिशा हाल में सोमवार को अयोजित 16वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि पद से कही। उन्होंने कहा कि भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति का इतिहास अनादि से है और अनंत भी है। इसमें समूचे विश्व, समाज, संस्कृति का आदरभाव, विश्व शांति, विश्व बंधुत्व, अहिंसा और अतिथि देवो भव की सर्वोच्च भावना शामिल है। हमारी भारतीय संस्कृति विश्व की प्रथम सनातन संस्कृति है।
भारतीय संस्कृति सदैव से ही चेतना मूलक होने के साथ-साथ आध्यात्मिक भी रही है। सभी विधाओं में अध्यात्म विद्या श्रेष्ठ है। भारतीय ऋषि परंपरा में अपने अनुभूतिज्ञान से प्रतिपादित किया था। यही भारतीय संस्कृति की पहचान है। भारतीय संस्कृति के उत्थान के रूप में भगवान बुद्ध के उपदेश और ज्ञान विचारों का उपयोग कर भारत ने विश्व में अपनी पहचान बनाई है। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय बुद्ध वचन से समस्त भिक्षुओं ने बिना भेदभाव के विशाल भूभाग में जाकर उसे क्षेत्र के भाषा के माध्यम से बौद्ध का संदेश देकर विश्व शांति और जन कल्याण में अपना योगदान दिया है। हम बुद्ध के संदेशों को आत्मसात करें उनके सिद्धांतों का आदर करें। भगवान बुद्ध कभी एक समुदाय या इकाई तक सीमित नहीं रहे। वर्तमान समय में बुद्ध का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है। जब पूरा विश्व गहरे तनाव और युद्ध के स्थिति से गुजर रहा है।
इस दौरान पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि वर्तमान समय मे विश्व मे बुद्ध का दर्शन व विरासत को सवर्धन करने की जरूरत है। भारत ने बुद्ध दिया है। स्वागत कुलपति प्रो वांगचुक दोरजे नेगी ने किया। संचालन प्रो. महेश शर्मा व धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव डॉ. सुनीता चन्द्रा ने किया। वही संस्कृत भाषा मे प्रो धर्मदत्त चतुवेर्दी व तिब्बती भाषा मे डॉ. लक्पा छेरिंग ने संचालन किया। इस दौरान श्रीलंका के भिक्षु पलेगाम हेमरत्न नायक थेरो, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. श्रीनिवास वराखेड़ी, भिक्षु ड्रिंकु क्याबगन चेत्संग रिनपोछे, सांस्कृतिक मंत्रालय की सयुक्त सचिव अमृता प्रसाद साराभाई, भिक्षु के सिरी सुमेध थेरो, डॉ. सुशील सिंह, महापौर अशोक तिवारी आदि मौजूद रहे। इसके पूर्व तिब्बती छात्र-छात्राओं ने तिब्बती व भोट भाषा मे मंगलाचरण किया।