कथित बाबा को जमानत पर रिहा करने पर उठ रहे सवाल

विवेचना की पारदर्शिता पर खड़े हुए सवाल, जांच अधिकारी बदले जाएंगे
वाराणसी (रणभेरी सं.)। चर्चित बाबा संजय कुमार सिंह के खिलाफ मारपीट और जबरन घुसपैठ के गंभीर आरोपों वाले केस में विवेचना की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। पीड़िता भावना सिंह की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा है कि प्रकरण की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और इसके लिए थानाध्यक्ष किसी अन्य विवेचक को विवेचना सौंपने की व्यवस्था सुनिश्चित करें। यह मामला थाना शिवपुर पर पंजीकृत मु०अ०सं० 383/2024 से जुड़ा है, जिसमें एक छात्रा ने आरोप लगाया है कि दिनांक 07 मार्च 2023 की रात करीब 10 बजे बाबा संजय सिंह अपने दो बेटों के साथ जबरन उनके घर में घुसे और मारपीट की। आरोप है कि बीच-बचाव करने पर वादिनी की दादी से भी अभद्रता की गई और जान से मारने की धमकी दी गई। इस घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट धारा 147, 323, 452, 506 भा.दं.सं. में दर्ज की गई थी, लेकिन बाद में विवेचक ने बयान और साक्ष्यों के आधार पर धारा 147 को हटा कर 458 भा.दं.सं. की बढ़ोतरी की, जिसमें 14 साल तक की सजा का प्रावधान है
गिरफ्तारी के बाद मेडिकल ड्रामा
अभियुक्त संजय कुमार सिंह को दिनांक 16 मई 2025 को उनके घर से गिरफ्तार किया गया और थाना सारनाथ लाया गया। हालांकि कुछ ही घंटों में उनकी तबीयत खराब होने का हवाला देकर उन्हें अस्पताल भेजा गया। मेडिकल रिपोर्ट में शुगर लेवल अधिक होने, चेस्ट पेन और 'प्रोटेस्ट लेवल 2' की बीमारी की कथित रूप से पुष्टि की गई। इसके बाद सीआरपीसी की धारा 437(2) का लाभ देते हुए अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
वादिनी पक्ष का आरोप : प्रभाव और रसूख के आगे झुकी पुलिस
वादिनी ने याचिका दाखिल कर आरोप लगाया कि अभियुक्त का पुलिस पर प्रभाव है और उसी दबाव में उन्हें बिना मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किए ही छोड़ दिया गया। पीड़िता ने कहा कि यह मामला गंभीर प्रकृति का है और पुलिस द्वारा उचित कार्रवाई न किए जाने से न्याय बाधित हो रहा है। पीड़िता के अधिवक्ता चेग्वेवारा रघुवंशी ने 16 मई 2025 को ही ट्विटर के माध्यम से डीजीपी, पुलिस आयुक्त और एसीपी को संदिग्ध रिहाई की आशंका जताते हुए पत्र भेजा था। उनका कहना था कि यदि अभियुक्त को प्रभाव के चलते छोड़ा गया, तो यह कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाने जैसा है। इस प्रकरण की गहनता से अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि थाना सारनाथ द्वारा प्रस्तुत आख्या पूर्ण रूप से गुमराह करने वाली है जिसमें कहा गया है कि अभियुक्त और पीड़िता आपसी रिश्तेदार हैं। संजय सिंह, भावना सिंह के फूफा हैं और इस मामले में उनके परिवार के अन्य सदस्य पहले से अलग-अलग आपराधिक मामलों में नामजद हैं।
पुलिस ने भावना के प्रकरण में संजय सिंह को लाभ पहुंचाने की बदनीयत से लीपापोती करते हुए यह भी कहा कि पीड़िता के सहयोगी चंद्रभूषण सिंह उर्फ प्रभुजी के खिलाफ 4 मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें 3 में आरोप पत्र दायर हो चुका है।
जबकि इस मामले से चंद्रभूषण सिंह का कोई सरोकार प्रतीत नहीं होता। पुलिस के अनुसार वहीं एक मामले में संजय सिंह के खिलाफ भी मुकदमा है जिसमें अंतिम रिपोर्ट लग चुकी है। थाना रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि प्रथम दृष्टया प्रकरण पारिवारिक रंजिश और मुकदमेबाजी का प्रतीत होता है। इसी आधार पर पुलिस ने मानवीय आधार पर संजय सिंह को जमानत पर छोड़ा। अदालत ने पत्रावली का अवलोकन करने के बाद पाया कि अभियुक्त को गिरफ्तार कर लाया गया था और चिकित्सा आधार पर रिहा किया गया।
मगर यह भी सत्य है कि विवेचना में पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर सवाल उठे हैं। इस पर न्यायालय ने कहा कि वादिनी द्वारा उठाए गए बिंदुओं और विवेचना में संभावित पक्षपात को देखते हुए जांच की निगरानी की जानी चाहिए। कोर्ट ने जमानत निरस्त करने की मांग को अस्वीकार करते हुए केवल विवेचना की निष्पक्षता सुनिश्चित करने का आदेश दिया है।
थानाध्यक्ष को विवेचना किसी दूसरे अधिकारी से करवाने का आदेश
अब थानाध्यक्ष को यह सुनिश्चित करना होगा कि मामले की विवेचना किसी अन्य अधिकारी को सौंपी जाए। यह कदम पीड़िता द्वारा उठाए गए आरोपों और मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। इससे यह भी स्पष्ट संकेत मिला है कि यदि जांच में लापरवाही या पक्षपात सामने आता है तो आगे कड़ी कार्यवाही हो सकती है।
भावना सिंह और उनके अधिवक्ता का कहना है कि वे उच्च न्यायालय का भी रुख करेंगे यदि उन्हें उचित न्याय नहीं मिला। उनका दावा है कि अभियुक्त लगातार उन्हें समझौते का दबाव बना रहे हैं और फोन कॉल पर जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं। अदालत का आदेश एक कदम जरूर है, लेकिन पीड़िता की न्याय यात्रा अभी लंबी प्रतीत होती है।
थाने से छोड़ने के दूसरे दिन ही खुलेआम घूमते और ठेले पर खाते-पीते दिखा था बाबा संजय सिंह
बाबा संजय कुमार सिंह को बीमारी का बहाना बनाकर थाने से रिहा कर दिया गया, लेकिन रिहाई के ठीक दूसरे दिन से वह शहर की गलियों में खुलेआम घूमते और ठेले पर खाते-पीते देखा गया। इससे साफ जाहिर होता है कि उसकी बीमारी की दलील महज एक चाल थी। सवाल यह भी उठता है कि इस मामले में संजय सिंह के अलावा अन्य अभियुक्तों की अब तक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई ? आखिर प्रशासन और पुलिस उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं ? जिन लोगों पर गंभीर आरोप हैं, वह खुलेआम शहर में घूम रहे हैं, मानो कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह न सिर्फ न्याय प्रक्रिया की अवहेलना है बल्कि आम जनता के विश्वास के साथ भी धोखा है। क्या कानून का डंडा सिर्फ आम आदमी पर चलता है, और रसूखदार आरोपियों के लिए व्यवस्था लाचार हो जाती है ?