काव्य-रचना

काव्य-रचना

     किताब तेरस         

वे जो चेतना के चिराग बुझा रहे हैं 
दीवाली मना रहे हैं और
हम भाषाओं की दिवाली देख रहे हैं

सूर्योदय और सूर्यास्त का सूर्य
अब लाल नहीं,काला है
जो अँधेरे के अधिराज हैं
सिर्फ़ उनके महलों में उजाला है

दीप-प्रकाश के साथ शब्द-प्रकाश
अवचेतन के आकाश में 
दो पंक्षियों का पथ आलोकित कर रहे हैं
ज्ञान तेरस की बात हो रही है
चर्या की चर्चा में

मजदूरी करने वाले विद्यार्थियों के ख़र्चे में
पेट का पर्चा है, किताब तेरस मना रहे हैं प्रकाशक
रॉयल्टी को लेकर रचनाकार
रो रहे हैं लगातार


गोलेन्द्र पटेल