काव्य-रचना

काव्य-रचना

   दोस्त बिछड़ गए है   

दोस्त बिछड़ गए है 
दुनिया की इस भीड़ में
कहीं खो गए है
करते थे जो खुद से ज्यादा परवाह
वो दोस्त अब बिछड़ गए है।

कोई कमाने तो कोई पढ़ने
कोई बनने तो कोई बसने
सबने अलग अलग वजहें दिए
आखिर में गांव छोड़ शहर गए
मजबूरी कहो या बदकिस्मती
हम यहीं रह गए है
करते है खूब शेरो शायरी
मानो जैसे कवि बन गए है
बढ़ने लगी 
उलझनें सबकी है
मुस्किल से मिलती
अब खबरें उनकी है
जब मैं फ्री होता
वो काम पर होते है
जब वो फ्री होते 
तो हम व्यस्त रहते है
बाकी भी अपने दिनचर्या में खूब मस्त है
हम भी अपनी डायरी और कविता में मस्त है
इसी अस्त-व्यस्तता में
अब कट रही सबकी ज़िंदगी है
बिरले ही हो पाती है अब बातें
फिर भी कुछ लोगों से दिललगी है।।।।

राज कुमार