काव्य-रचना
'ये जिंदगी'
शायद ये दिन तो आना था,
बस मन ने मेरे न माना था
जीवन तो उन्मुक्त गगन सा है
एक दिन सबको उड़ जाना था ।
शायद ये दिन तो आना था !!
है मिलना और बिछड़ना तो,
जीवन का शाश्वत सत्य सदा,
भौतिक में मिलना हो न हो,
वैचारिक ही मिल जाना था ।
शायद ये दिन तो आना था!!
क्या प्रेम पाश भी पाश सा है?
या अलग सा है ये खास सा है?
जुड़ जाएगा ये टूट के पर !
एक गाँठ का तो पड़ जाना था ।
शायद ये दिन तो आना था!!
रह गई लाज जो रिश्तों की,
कुछ मधुर स्मृतियाँ किस्सों की,
बाकी तो सब क्षण भंगुर है,
क्या किसे साथ ले जाना था ?
शायद ये दिन तो आना था !!
डॉ. सत्य प्रकाश मिश्रा