शिवपुर तालाब को कब्जा मुक्त करने में सिस्टम फेल!
वाराणसी(रणभेरी)। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी में एक समय अनगिनत जलाशय थे। कारण-पहले तालाब- पोखर खोदवाने का चलन था। प्रकारांतर से पहले चलन रुका। फिर सार्वजनिक स्थानों पर स्थित तालाब-पोखरों पर कब्जे होने लगे। पानी की जगह कांक्रीट दिखने लगा। इन हालात ने एक ओर तो गंगा किनारे बसे शहर को पानी के संकट का सामना कराया। दूसरी तरफ समूचे सिस्टम का नंगा सच भी सामने आ गया। खासकर शिवपुर तालाब के मामले ने सिस्टम को पूरी तरह नंगा कर दिया है। यह सच सामने लाने वाले पूर्व पार्षद डॉ. जितेंद्र सेठ ने तीन-तीन बार मिनी सदन में इलाके का प्रतिनिधित्व किया है। इसके बावजूद लंबे समय से तालाब बचाने के लिए लड़ रहे डॉ. सेठ को कामयाबी नहीं मिली है। हां इसके एवज में उनके खिलाफ रंगदारी का मुकदमा गैर जनपद में जरूर दर्ज हो गया। हालांकि इस मामले में अब पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी है। इस उत्पीड़नात्मक स्थिति से गुजरने के बावजूद उनकी लड़ाई जारी है। अब उन्होने मद्रास हाई कोर्ट के मदुराई बेंच के जीआर स्वामीनाथन जी एवं बी. पुगलेंधी के न्यायादेश का हवाला देते हुए तालाब बचाने की लड़ाई में जनसहयोग की अपील की है।एक प्रेस नोट में डॉ. जितेंद्र सेठ ने बताया हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी भी प्रकार का जलस्त्रोत जैसे तालाब, पोखरा, कुंडो को सुनिश्चित करे कि उस पर किसी प्रकार का कोई अतिक्रमण तो नहीं हैं। अगर कुछ ऐसा है तो उसे तुरंत मुक्त कराए एवं उसे उसके मूल अवस्था में पुनः स्थापित करे। किसी भी प्रकार का तालाब, कुंड, पोखरे किसी की निजी संपत्ति नहीं है। यह प्रकृति का दिया हुआ तोहफा हैं जो वृक्षों, जर जानवरों, मनुष्यों के लिए हैं और सार्वर्जानक हैं। वर्तमान समय में जिस तरह देश के हर शहरो, हर कस्बों में जल स्रोतो की दिक्कत हो रही हैं, लोग पानी के लिए दिक्कत का सामना कर रहे हैं, ऐसे में हमें बचे हुए तालाबो, कुंडो, पोखरो को संरक्षित करना चाहिए यही हमारे समाज को, हमारे वातावरण को, हमारे दिन चर्या का संतुलन करेगा। उन्होंने बताया-शिवपुर तालाब पर कुछ भूमाफियाओं ने तालाब को पाटकर उसकी मूल स्थिति को परिवर्तित करने की कोशिश की। कुछ हद तक वे कामयाब भी हुए परन्तु शिवपुर की सारी जनता ने एकजुट होकर विरोध किया। तत्कालीन कमिश्नर नीतीश रमेश गोकर्ण के निर्देशानुसार तालाब की खुदायी भी कराई गई परन्तु राजनैतिक हस्तक्षेप एवं भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत के कारण खुदाई बंद करवा दी गई। तब से अब तक तालाब की खुदायी नहीं हो पायी है।