काव्य-रचना
ग़ज़ल
रास्ते में प्यार के ठहर गया है आदमी
नफ़रतों का ज़ह्र दिल में भर गया है आदमी
तीरगी में रह रहा ये इक ज़माने से यहाँ
रौशनी को देखते ही डर गया है आदमी
मुफ़्त में होने लगा है राजनीति का शिकार
बेबसी में टूटकर बिखर गया है आदमी
देखिये कैसा नशा अँगूर की बेटी में है
मैकदे से कब निकल के घर गया है आदमी
दिन दहाड़े नफ़रतों के हाथों होता क़त्ल है
ख़ून होते देखकर सिहर गया है आदमी
चाँद को कोई फ़लक से तोड़ पाया है नहीं
बार - बार तोड़ने मगर गया है आदमी
पत्थरों का दिल लगा है आदमी के ज़िस्म में
दर्द होता है नहीं ये मर गया है आदमी
देखिये 'ऐनुल' मियाँ चेहरे बदल-बदल के अब
आइने को देखकर सँवर गया है आदमी
डाॅ 'ऐनुल' बरौलवी