काव्य-रचना
"मेरे पापा"
मेरे बचपन के शौकों को पूरा करने में उन्होने जवानी हारी है ,
मेरे शरीर का रोम रोम उनके प्यार व दुलार का आभारी है ||
कई बार मेरी जिद पर कड़ी धूप में मुझे साइकल चलवाई है ,
माँ ने जब खींच ली थी तब उन्होने ठंड में मुझको दी रजाई है ||
मेरी हर असफलता का उन्होने बड़े ही अच्छे से जश्न मनाया है ,
हम दोनों ने मेरी बी.टेक.की सीट छोड़कर मटर पनीर खाया है ||
भाग्य से ज्यादा व वक़्त से पहले कुछ नहीं मिलता पापा ये कहते थे ,
काफ़ी मुश्किल परिस्थितियों में ये शब्द मरहम का काम करते थे ||
पापा का कहना था कमाना सीखना है तो अपने खर्चे भी बढ़ाओ तुम ,
शान से अपनी ज़िंदगी जियो पर बुरी आदतें बिल्कुल मत बढ़ाओ तुम ||
अपनी जवानी को भी उन्होने मेरी जवानी में ख़ूब खुल कर जिया है ,
हमेशा कहते थे ऐश करो अगर भगवान ने तुमको मौका दिया है ||
एक समय पर मैं और पापा कपडे व जूते भी आपस में बाँटा करते थे ,
पापा मुझे किशोर उम्र में टिपटॉप ना रहने के लिये भी डाँटा करते थे ||
पापा हमेशा मेरे पीछे मेरी मजबूत ढाल बन कर हमेशा खड़े रहते थे ,
पर मुसीबतों का सामना मैं ही करुँ इस बात पर हमेशा अड़े रहते थे ||
अब समझा हूँ कि दुनिया के लिये मुझे पापा तब से तैयार कर रहे थे ,
इस तैयारी के तहत वो मेरा मुश्किलों से सीधा साक्षात्कार कर रहे थे ||
जीवन के बारे में जो कुछ सीखा है वो मेरे पापा का ही आशीर्वाद है ,
उनका जीवन ज्ञान व मार्गदर्शन मेरे अनुभवों व चरित्र की बुनियाद है ||
आज भी अपना जीवन मेरे पापा बड़े ही जिंदादिल हो कर बिताते हैं ,
उनकी मुस्कुराहट और जिजीविषा को देख हम भी संबल पाते हैं ||
उनके आस पास होने से मुझमें एक गजब सा आत्मविश्वास रहता है ,
मैं मुसीबतों से कहता हूँ पास ना आओ मेरे संग मेरा बाप रहता है ||
विवेक पाण्डेय