काव्य-रचना

काव्य-रचना

    गणतंत्र दिवस फिर आया है   

आज नई सज-धज से गणतंत्र दिवस फिर आया है। 
नव परिधान बसंती रंग का माता ने पहनाया है।
भीड़ बढ़ी स्वागत करने को बादल झड़ी लगाते हैं।
रंग-बिरंगे फूलों में ऋतुराज खड़े मुस्काते हैं।
धरती मां ने धानी साड़ी पहन श्रृंगार सजाया है।
गणतंत्र दिवस फिर आया है। 
भारत की इस अखंडता को तिलभर आंच न आने पाए। 
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई मिलजुल इसकी शान बढ़ाएं।
युवा वर्ग सक्षम हाथों से आगे इसको सदा बढ़ाएं। 
इसकी रक्षा में वीरों ने अपना रक्त बहाया है।
गणतंत्र दिवस फिर आया है।

दीपक पाण्डेय रवि 
 असिस्टेंट प्रोफेसर