काव्य-रचना
इस दुनिया में, सब कुछ तो है,
इस दुनिया में,
सब कुछ तो है,
लेकिन प्यार नहीं है रे,
फूल तो खिलते हैं,
लेकिन बाहर नहीं है रे।
सब रहते तो साथ हैं,
लेकिन एक दूसरे के लिए,
बेकरार नहीं हैं रे,
साजो-सामान से भरा घर है,
लेकिन करार नहीं है रे।
सास-ससुर,बेटा बहू,
नाती-पोता,
सब पास-पास हैं,
लेकिन एक दूसरे के लिए,
विश्वास नहीं है रे।
मिठाईयां-पकवान बटती हैं,
छोटे-बड़े आयोजनों में,
रिश्तो में दिखती,
लेकिन मिठास नहीं है रे।
बातें होती हैं,
मुँह-देखी प्यारी-प्यारी,
लगती है सबको,
अलबेली न्यारी-न्यारी,
लेकिन आपस मे वो सच्ची,
जज़्बात नहीं है रे।
इस दुनिया में,
सब कुछ तो है,
लेकिन प्यार नहीं है रे,
फूल तो खिलते हैं,
लेकिन बाहर नहीं है रे।
दोष एक दूसरे पर,
मढ़ने मे सब व्यस्त हैं,
अनजाने किसी दुख से,
हाँ सभी त्रस्त हैं,
न जाने कैसे घाव हैं,
जो सीलती नहीं रे।
कैसी है यह जिंदगी,
जो गैरो को ढूंढती है,
अनजाने चेहरों को,
हर पल पूछती है,
लेकिन अपनो को जानते हुये भी,
उनसे मिलती नहीं रे।।
सत्येंद्र उर्मिला शर्मा