काव्य-रचना
पोस्टमैन
पोस्टमैन जब चिट्ठी लाया
झूम उठा सारा परिवार
सभी बैठकर ध्यान लगाए
अन्तर्देशी के खुलने का।
बच्चे आश लगाए बैठे
मौसी की शादी पड़ी है क्या
घर का मुखिया सोच रहा
अपनी बजट पताई का।
बाबा दादी सोच रहे है
समधी के अगवानी की
अंतर्देशी जब खुला पंच में
उठा ठहाका बड़ी जोर से,
मौसी की शादी के दिन पर
मामा के तिलक का दिन भी है
उठा ठहाका और जोर से
पूरी हुई कहानी जब
मामा को जब मिला नेवर्षा
हुई खुशी दोगुनी तब,
पोस्टमैन जब चिट्ठी लाया
झूम उठा सारा परिवार।
मुखिया अब यह सोच रहा
कैसे करे अगवानीअब
ताकि रिश्ता आगे भी
यूं ही सदियों बना रहे,यूं ही सदियों बना रहे।
पोस्टमैन जब चिट्ठी लाया
झूम उठा सारा परिवार।
कितना ही वह समय मनोहर
अपनापन था हर रिश्ते में
कितना सब कुछ सिमट जाता था
सब एक नीले कागज मे...
डॉ राजेश श्रीवास्तव