काव्य रचना
वंचना
मैं वंचना के भीतर भी वंचना का शिकार होती रही हूँ
दोहरी दोहित देह हूँ
स्नेह का आँसू रेह हूँ
मैंने सुना है कि
समय सूरज पर शब्द सेंकता है
किन्तु कविता की क्रीड़ा में कवि
व्यथा की कथा को कंचे की तरह फेंकता है
अर्थात् इसका अर्थ आकाश नहीं
पूर्णिमा का प्रकाश है
मेरे मन के वन में खिला पुष्प
पीड़ा का पलाश है
मेरी हड्डी, हड्डी नहीं लोहा है
मेरा जीवन दर्द का दोहा है!
गोलेन्द्र पटेल